अलकनन्दा (नृत्यांगना)
अलकनन्दा (अंग्रेज़ी: Alakananda, जन्म- ?; मृत्यु- 12 मई, 1984) भारत की कत्थक नृत्यांगना थीं। वह प्रसिद्ध भारतीय कत्थक नृत्यांगना सितारा देवी की बड़ी बहन थीं। कला, साहित्य एवं सांस्कृतिक की राजधानी कही जाने वाली काशी या बनारस ‘जिसे आज कल वाराणसी कहा जाता है,’ की थीं अलकनंदा। लेकिन आज वही अलकनंदा अपनी ही काशी की गलियों में न जाने कहाँ गुम हो गई हैं, जिन्हें लोग जानते तक नहीं हैं। इतना ही नहीं अब तो वे इतिहास के पन्नों से भी मिटती जा रही हैं । यहाँ तक कि गूगल बाबा के पास भी कोई जानकारी उनके बारे में उपलब्ध नहीं है। बात केवल हिन्दी में ही नहीं अँग्रेज़ी में भी एक शब्द आप को नहीं मिलेगा। मिलेगा तो केवल इतना कि वह कत्थक नृत्यांगना सितारा देवी की बड़ी बहन थीं।[1]
परिचय
19वीं सदी के आरंभ में वाराणसी के कबीरचौरा मोहल्ले में उस समय के कत्थक नृत्य असाधारण मर्मज्ञ पंडित सुखदेव महराज के यहाँ अलकनंदा जी का जन्म हुआ था।अलकनंदा, तारा एवं सितारा तीन बहनें थीं । सुखदेव महराज स्वयं राजाओं- महाराजाओं के दरबार में नाच-गाकर अपनी कला का प्रदर्शन किया करते थे। उनकी बड़ी इच्छा थी कि वह राजाओं के दरबारों में अपनी बेटियों के कला का भी प्रदर्शन करें । परिवार में नृत्य का माहौल होने के कारण अलकनंदा का इस ओर आकर्षित होना स्वाभाविक था ही । छोटी सी उम्र में ही अलकनंदा के पाँव स्वत: थिरकने लगे थे। जिसे देख कर पंडित सुखदेव महराज ने लखनऊ के अच्छन महराज से ‘गण्डा’ (गुरु-दीक्षा) बँधवा दिया। इस तरह कत्थक से जुड़ गई छह वर्षीय फूल सी कोमल अलकनंदा ।
बेजोड़-कुशल नृत्यांगना
उम्र के साथ-साथ अलकनंदा के नृत्य में निखार आता गया । वह अपने समय की दादरा एवं भाव नृत्य की सिद्धहस्त नृत्यांगना साबित हुईं । जब वह अपना नृत्य प्रस्तुत करती थीं तो दर्शक सकते में आ जाते थे । नृत्य में उनकी सलामी का तरीका, भाव-भंगिमाएँ और अंगविन्यास आज के कत्थक शैली से एकदम भिन्न थे। बताते हैं कि उनके दो नृत्य, 'तलवार की धार' एवं 'थाली की बारी' पर नृत्य की तुलना में आज तक कोई कलाकार हुआ ही नहीं।[1]
गुमनामी तथा मृत्यु
अर्थाभाव, लोगों तथा सरकारी उपेक्षा के चलते आज से कई साल पहले कत्थक की बेजोड़ कोहिनूर गुमनामी के अँधेरों में ऐसा गुम हुईं कि उन्हीं के शहर के आबो हवा में उनका नाम नहीं । 80 वर्ष की उम्र में वाराणसी के शिव प्रसाद गुप्त जिला चिकित्सालय के महिला वार्ड में 12 मई, 1984 की शाम लगभग 8.30 बजे अलकनन्दा को दिल का दौरा पड़ा और घुंघुरुओं की छन-छन के साथ पैरों की थाप सदा के लिए थम गई । जहां पर उनके गुर्दे का ईलाज चल रहा था । ताज्जुब तो इस बात का है कि उस समय उनके अगल-बगल के मरीजों तक को यह नहीं मालूम था कि उनके बगल में नृत्य की एक धरोहर जीवन मृत्यु से संघर्ष कर रही है ।
अभिनय
अलकनंदा जी ने फिल्मों में भी काम किया था । जिसके बारे में पूछने पर वे कह पड़ी थीं कि फिल्म, हाँ याद आया। शंकर भट्ट की फिल्म 'सूर्य कुमारी' में हीरोइन थी। सोहराब मोदी की फिल्म 'हुमायूँ' में नृत्य किया था। महबूब भट्ट की भी एक फिल्म में काम किया था, नाम याद नहीं आ रहा । सोहराब मोदी और भट्ट साहब के काम लेने के तरीके से मैं बहुत संतुष्ट थी।[1]
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ 1.0 1.1 1.2 कत्थक नृत्यांगना अलकनंदा (हिंदी) pranamparyatan.in। अभिगमन तिथि: 14 अक्टूबर, 2021।