रोहिताश्व

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  • सत्यवादी हरिश्चन्द्र डोम के हाथ बिक गये थे और तारामती एक ब्राह्मण के यहाँ दासी का काम करने लगीं।
  • वहाँ रोहिताश्व की सर्प-दंश से मृत्यु हो गयी।
  • अत: इनकी माता इन्हें श्मशान लेकर पहुँची, जहाँ डोम द्वारा नियुक्त हरिश्चन्द्र ने 'कर' माँगा।
  • शैव्या के पास कर चुकाने के लिए बालक का कफ़न भी नहीं था किन्तु कर्त्तव्यारूढ़ हरिश्चन्द्र बिना 'कर' लिये दाह नहीं करने दे रहे थे।
  • उनकी सत्यनिष्ठा से प्रसन्न होकर इन्द्र प्रकट हुए और विश्वामित्र ने परीक्षा में सफल हरिश्चन्द्र के पुत्र को रोहिताश्व को जीवित कर दिया।[1]


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