रूपक अलंकार
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जिस जगह उपमेय पर उपमान का आरोप किया जाए, उसे रूपक अलंकार कहा जाता है, यानी उपमेय और उपमान में कोई अन्तर न दिखाई पड़े।[1]
- उदाहरण
बीती विभावरी जाग री। अम्बर-पनघट में डुबों रही, तारा-घट उषा नागरी।
यहाँ अम्बर में पनघट, तारा में घट तथा उषा में नागरी का अभेद कथन है।
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