बरमूडा त्रिकोण
बरमूडा त्रिकोण / बरमूडा त्रिभुज / ( बारमूडा ट्रायएंगल / Bermuda Triangle ) अटलांटिक महासागर का वो भाग है, जिसे दानवी त्रिकोण / शैतानी त्रिभुज / मौत के त्रिकोण / भुतहा त्रिकोण ( डेविल्स ट्राइएंगल ) भी कहा जाता है क्योकि वर्ष 1854 से इस क्षेत्र में कुछ ऐसी घटनाऍं / दुर्घटनाऍं घटित होती रही हैं। यह एक रहस्यमयी जलक्षेत्र जो उत्तरी अटलांटिक महासागर में स्थित है, जिसकी गुत्थी आज तक कोई नहीं सुलझा सका है। यहाँ अब तक सैकड़ों - हजारों की संख्या में विमान, पानी के जहाज तथा व्यक्ति गये और संदिग्ध रूप से लापता हो गये और लाख कोशिशों के बाद भी उनका पता नहीं लगाया जा सका है। ऐसा कभी-कभार नहीं, बल्कि कई बार हो चुका है। यही वह कारण है कि आज भी इसके आस-पास से गुजरने वाले जहाजों और वायुयानों के चालक दल के सदस्य व यात्री सिहर उठते हैं। सैकडॊं वर्षों से यह त्रिकोण वैज्ञानिकों, इतिहासकर्ताओं और खोजकर्ताओं के लिए भी एक बड़ा रहस्य बना हुआ है।
अटलांटिक महासागर के इस भाग में जहाजों और वायुयानों के गायब होने की जो घटनाएं अब तक हुई हैं उनमें पाया गया है कि जब भी कोई जहाज या वायुयान यहां पहुंचता है, उसके राडार, रेडियो वायरलेस और कम्पास जैसे यन्त्र या तो ठीक से काम नहीं करते या फिर धीरे-धीरे काम करना ही बन्द कर देते हैं। जिस से इन जहाजों और वायुयानों का शेष विश्व से संपर्क टूट जाता है। उनके अपने दिशासूचक यन्त्र भी खराब हो जाते हैं। इस प्रकार ये अपना मार्ग भटक कर या तो किसी दुघर्टना का शिकार हो जाते हैं या फिर इस रहस्यमय क्षेत्र में कहीं गुम होकर इसके रहस्य को और भी अधिक गहरा देते हैं। कुछ वैज्ञानिकों का मानना है कि इस क्षेत्र में भौतिक के कुछ नियम बदल जाते हैं, जिस कारण ऐसी दुर्घटनाएं होती हैं। कुछ लोग इसे किसी परालौकिक ताकत की करामात मानते हैं, तो कुछ को यह सामान्य घटनाक्रम लग रहा है। यह विषय कितना रोचक है, इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि इस पर कई किताबें और लेख लिखे जाने के साथ ही फिल्में भी बन चुकी हैं। तमाम तरह के शोध भी हुए लेकिन तमाम शोध और जांच - पड़ताल के बाद भी इस नतीजे पर नहीं पहुंचा जा सका है कि आखिर गायब हुए जहाजों का पता क्यों नहीं लग पाया, उन्हें आसमान निगल गया या समुद्र लील गया, दुर्घटना की स्थिति में भी मलबा तो मिलता, लेकिन जहाजों और विमानों का मलबा तक नहीं मिला ।
बरमूडा त्रिकोण की स्थित
संयुक्त राज्य अमेरिका के दक्षिण पूर्वी अटलांटिक महासागर के अक्षांश 25 डिग्री से 45 डिग्री उत्तर तथा देशांतर 55 से 85 डिग्री के बीच फैले 39,00,000 वर्ग किमी0 के बीच फैली जगह, जोकि एक काल्पनिक त्रिकोण जैसी दिखती है, बरमूडा त्रिकोड़ अथवा बरमूडा त्रिभुज के नाम से जानी जाती है। इस त्रिकोण के तीन कोने बरमूडा, मियामी तथा सेन जआनार, पुतौरिका को स्पर्श करते हैं तथा बरमूडा ट्राएंगल फ्लोरिडा, यूर्टोरिको एवं बरमूदा नामक द्वीप के मध्य स्थित है। सदियों से चर्चा का विषय रहे इस त्रिकोण के क्षेत्रफल को लेकर भी तरह - तरह की बातें कही और लिखी गई हैं। इस मसले पर शोध कर चुके कुछ लेखकों ने इसकी परिधि फ्लोरिडा, बहमास, सम्पूर्ण केरेबियन द्वीप तथा महासागर के उत्तरी हिस्से के रूप में बाँधी है। कुछ ने इसे मैक्सिको की खाड़ी तक बढ़ाया है। शोध करने वालों में इसके क्षेत्रफल को लेकर सर्वाधिक चर्चा हुई है।
कोलंबस और बरमूडा त्रिकोण
बरमूडा ट्राइएंगल में न जाने ऐसी कौन सी रहस्यमय शक्ति है जो बड़े से बड़े जहाज और हवा में उड़ते विमानों को भी अपनी ओर खींच लेती है और फिर पलक झपकते ही सब कुछ गायब हो जाता है। बरमूडा ट्राइएंगल अबतक 100 से भी ज्यादा हवाईजहाजों को निगल चुका है, हैरानी की बात है कि यहां गायब होने वाले सैकड़ों लोगों की लाशें तक नहीं मिली है। पिछले 500 से सालों से रहस्यमय शक्ति का केन्द्र बने इस जलक्षेत्र के बारे में सबसे पहले अमेरिका को खोजने वाले क्रिस्टोफर कोलंबस ने दुनिया को बताया था। कोलम्बस ही वह पहले नाविक - खोजकर्ता थे, जिनका सामना बरमूडा ट्राइएंगल से हुआ था। 15 वीं शताब्दी के अन्त में क्रिस्टोफर कोलंबस पहला ऐसा व्यक्ति था जिसने सन् 1492 की अपनी समुद्री यात्रा के दौरान बरमूदा त्रिकोण में कम्पास के विचित्र व्यवहार की बात कही थी। जानकारों का मानना है कि जब कोलम्बस का जहाज बरमूडा ट्राइएंगल के करीब पहुंचा, तो उसके कम्पास ( दिशा बताने वाला यंत्र ) ने गड़बड़ी करना शुरु कर दी। इसके बाद उसके नाविकों में हड़कंप मच गया। ऐसा कहा जाता है कि इसके बाद कोलम्बस को आसमान से एक रहस्यमयी बिजली गिरती दिखाई दी और दिखाई दिया आग का एक बहुत बड़ा गोला, जो आसमान से निकलकर सीधे समुद्र में समा गया। हालांकि आधुनिक विद्वानों ने इसे भ्रम करार दिया है। कोलम्बस का जहाज जैसे-तैसे इस रहस्यमयी क्षेत्र से आगे तो बढ़ा लेकिन तब से लेकर अब तक करीब एक हजार लोग यहां लापता हो चुके हैं। परन्तु इस क्षेत्र में जहाजों और वायुयानों के गायब होने की ज्ञात घटनाएं 19 वीं और 20 वीं सदी में ही ज्यादा हुईं।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ