चाय

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सूचना साँचा लगाने का समय → 17:43, 24 जनवरी 2011 (IST)
असम के चाय के बाग़ान में लड़कियाँ

चाय एक पेय पदार्थ है। इसमें थीन नामक तत्व पाया जाता है जिसके कारण इसे पीने पर हल्का नशा हो जाता है और स्फूर्ति आती है।

इतिहास

सबसे पहले सन् 1815 में कुछ अँग्रेज़ यात्रियों का ध्यान असम में उगने वाली चाय की झाड़ियों पर गया जिससे स्थानीय क़बाइली लोग एक पेय बनाकर पीते थे। भारत के गवर्नर जनरल लॉर्ड बैंटिक ने 1834 में चाय की परंपरा भारत में शुरू करने और उसका उत्पादन करने की संभावना तलाश करने के लिए एक समिति का गठन किय। इसके बाद 1835 में असम में चाय के बाग़ लगाए गए। कहते हैं कि एक दिन चीन के सम्राट शैन नुंग के सामने रखे गर्म पानी के प्याले में, कुछ सूखी पत्तियाँ आकर गिरीं जिनसे पानी में रंग आया और जब उन्होंने उसकी चुस्की ली तो उन्हें उसका स्वाद बहुत पसंद आया। बस यहीं से शुरू होता है चाय का सफ़र। ये बात ईसा से 2737 साल पहले की है। सन् 350 में चाय पीने की परंपरा का पहला उल्लेख मिलता है। सन् 1610 में डच व्यापारी चीन से चाय यूरोप ले गए और धीरे-धीरे ये समूची दुनिया का प्रिय पेय बन गया। [1]

विश्व वितरण

विश्व में लगभग 26 लाख हेक्टेयर भूमि पर चाय की कृषि की जाती है। विश्व में इसका वार्षिक उत्पादन 20 लाख टन है। चाय उत्पादक देशों में भारत, श्रीलंका, चीन, जापान आदि प्रमुख हैं। अन्य देशों में रूस, जार्जिया, तुर्की, कीनिया, मलावी, युगांडा तथा मोजाम्बिक प्रमुख उत्पादक देश हैं। भारत लगभग 4 लाख हेक्टेयर भूमि में फैले लगभग 1300 बाग़ानों से 7000 लाख किग्रा0 चाय प्रतिवर्ष उत्पादन का लगभग 50% अकेले असम में उत्पादित किया जाता है। असम में ब्रह्मपुत्र घाटी, सूरमा घाटी तथा सदिया क्षेत्र मुख्य चाय उत्पादक क्षेत्र हैं। दूसरे स्थान पर पश्चिम बंगाल है- यहाँ दार्जिलिंग और जलपाईगुड़ी ज़िले प्रमुख उत्पादक क्षेत्र हैं। दक्षिणी भारत में प्रमुख चाय उत्पादक राज्य क्रमशः तमिलनाडु, केरल, कर्नाटक आदि है। यहाँ नीलगिरि, अन्नामलाई और कार्डेमम पहाड़ी मुख्य उत्पादक क्षेत्र हैं।

प्रमुख निर्यातक देश-

  1. भारत (21%)
  2. श्रीलंका (17%)
  3. कीनिया (11%)
  4. चीन (10%)
  5. इण्डोनेशिया (8%)
  6. बांग्लादेश (3%) आदि।

चाय के प्रकार

मोटे तौर पर चाय दो तरह की होती है :

  1. प्रोसेस्ड या सीटीसी (कट, टीयर और कर्ल)
  2. ग्रीन टी (नैचरल टी)।

सीटीसी टी (आम चाय)

यह विभिन्न ब्रैंड्स के तहत बिकने वाली दानेदार चाय होती है, जो आमतौर पर घर, रेस्तरां और होटेल आदि में इस्तेमाल की जाती है। इसमें पत्तों को तोड़कर कर्ल किया जाता है। फिर सुखाकर दानों का रूप दिया जाता है। इस प्रक्रिया में कुछ बदलाव आते हैं। इससे चाय में टेस्ट और महक बढ़ जाती है। लेकिन यह ग्रीन टी जितनी नैचरल नहीं बचती और न ही उतनी फायदेमंद।

ग्रीन टी

इसे प्रोसेस्ड नहीं किया जाता। यह चाय के पौधे के ऊपर के कच्चे पत्ते से बनती है। सीधे पत्तों को तोड़कर भी चाय बना सकते हैं। इसमें एंटी-ऑक्सिडेंट सबसे ज्यादा होते हैं। ग्रीन टी काफी फायदेमंद होती है, खासकर अगर बिना दूध और चीनी पी जाए। इसमें कैलरी भी नहीं होतीं। इसी ग्रीन टी से हर्बल व ऑर्गेनिक आदि चाय तैयार की जाती है। ऑर्गेनिक इंडिया, ट्विनिंग्स इंडिया, लिप्टन कुछ जाने-माने नाम हैं, जो ग्रीन टी मुहैया कराते हैं।

हर्बल टी

ग्रीन टी में कुछ जड़ी-बूटियां मसलन तुलसी, अश्वगंधा, इलायची, दालचीनी आदि मिला देते हैं तो हर्बल टी तैयार होती है। इसमें कोई एक या तीन-चार हर्ब मिलाकर भी डाल सकते हैं। यह मार्किट में तैयार पैकेट्स में भी मिलती है। यह सर्दी-खांसी में काफी फायदेमंद होती है, इसलिए लोग दवा की तरह भी इसका यूज करते हैं।

ऑर्गेनिक टी

जिस चाय के पौधों में पेस्टिसाइड और केमिकल फर्टिलाइजर आदि नहीं डाले जाते, उसे ऑर्गेनिक टी कहा जाता है। यह सेहत के लिए ज्यादा फायदेमंद है।

वाइट टी

यह सबसे कम प्रोसेस्ड टी है। कुछ दिनों की कोमल पत्तियों से इसे तैयार किया जाता है। इसका हल्का मीठा स्वाद काफी अच्छा होता है। इसमें कैफीन सबसे कम और एंटी-ऑक्सिडेंट सबसे ज्यादा होते हैं। इसके एक कप में सिर्फ 15 मिग्रा कैफीन होता है, जबकि ब्लैक टी के एक कप में 40 और ग्रीन टी में 20 मिग्रा कैफीन होता है।

ब्लैक टी

कोई भी चाय दूध व चीनी मिलाए बिना पी जाए तो उसे ब्लैक टी कहते हैं। ग्रीन टी या हर्बल टी को तो आमतौर पर दूध मिलाए बिना ही पिया जाता है। लेकिन किसी भी तरह की चाय को ब्लैक टी के रूप में पीना ही सबसे सेहतमंद है। तभी चाय का असली फायदा मिलता है।

इंस्टेंट टी

इस कैटिगरी में टी बैग्स आदि आते हैं, यानी पानी में डालो और तुरंत चाय तैयार। टी बैग्स में टैनिक एसिड होता है, जो नैचरल एस्ट्रिंजेंट होता है। इसमें एंटी-वायरल और एंटी-बैक्टीरियल गुण होते हैं। इन्हीं गुणों की वजह से टी-बैग्स को कॉस्मेटिक्स आदि में भी यूज किया जाता है।

लेमन टी

नीबू की चाय सेहत के लिए अच्छी होती है, क्योंकि चाय के जिन एंटी-ऑक्सिडेंट्स को बॉडी एब्जॉर्ब नहीं कर पाती, नीबू डालने से वे भी एब्जॉर्ब हो जाते हैं।

मशीन वाली चाय

रेस्तरां, दफ्तरों, रेलवे स्टेशनों, एयरपोर्ट आदि पर आमतौर पर मशीन वाली चाय मिलती है। इस चाय का कोई फायदा नहीं होता क्योंकि इसमें कुछ भी नैचरल फॉर्म में नहीं होता।

अन्य चाय

आजकल स्ट्रेस रीलिविंग, रिजूविनेटिंग, स्लिमिंग टी व आइस टी भी खूब चलन में हैं। इनमें कई तरह की जड़ी-बूटी आदि मिलाई जाती हैं। मसलन, भ्रमी रिलेक्स करता है तो दालचीनी ताजगी प्रदान करती है और तुलसी इमून सिस्टम को मजबूत करती है। इसी तरह स्लिमिंग टी में भी ऐसे तत्व होते हैं, जो वजन कम करने में मदद करते हैं। इनसे मेटाबॉलिक रेट थोड़ा बढ़ जाता है, लेकिन यह सपोर्टिव भर है। सिर्फ इसके सहारे वजन कम नहीं हो सकता। आइस टी में चीनी काफी होती है, इसलिए इसे पीने का कोई फायदा नहीं है।

चाय के फायदे

  • चाय में कैफीन और टैनिन होते हैं, जो स्टीमुलेटर होते हैं। इनसे शरीर में फुर्ती का अहसास होता है।
  • चाय में मौजूद एल-थियेनाइन नामक अमीनो-एसिड दिमाग को ज्यादा अलर्ट लेकिन शांत रखता है।
  • चाय में एंटीजन होते हैं, जो इसे एंटी-बैक्टीरियल क्षमता प्रदान करते हैं।
  • इसमें मौजूद एंटी-ऑक्सिडेंट तत्व शरीर की प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाते हैं और कई बीमारियों से बचाव करते हैं।
  • चाय में फ्लोराइड होता है, जो हड्डियों को मजबूत करता है और दांतों में कीड़ा लगने से रोकता है।

चाय के नुकसान

  • दिन भर में तीन कप से ज्यादा पीने से एसिडिटी हो सकती है।
  • आयरन एब्जॉर्ब करने की शरीर की क्षमता को कम कर देती है।
  • कैफीन होने के कारण चाय पीने की लत लग सकती है।
  • ज्यादा पीने से खुश्की आ सकती है।
  • पाचन में दिक्कत हो सकती है।
  • दांतों पर दाग आ सकते हैं लेकिन कॉफी से ज्यादा दाग आते हैं।
  • देर रात पीने से नींद न आने की समस्या हो सकती है।

चाय की मेडिसनल वैल्यू

चाय को कैंसर, हाई कॉलेस्ट्रॉल, एलर्जी, लिवर और दिल की बीमारियों में फायदेमंद माना जाता है। कई रिसर्च कहती हैं कि चाय कैंसर व ऑर्थराइटस की रोकथाम में भूमिका निभाती है और बैड कॉलेस्ट्रॉल (एलडीएल) को कंट्रोल करती है। साथ ही, हार्ट और लिवर संबंधी समस्याओं को भी कम करती है।

चाय बनाने का सही तरीका

ताजा पानी लें। उसे एक उबाल आने तक उबालें। पानी को आधे मिनट से ज्यादा नहीं उबालें। एक सूखे बर्तन में चाय पत्ती डालें। इसके बाद बर्तन में पानी उड़ेल दें। पांच-सात मिनट के लिए बर्तन को ढक दें। इसके बाद कप में छान लें। स्वाद के मुताबिक दूध और चीनी मिलाएं। एक कप चाय बनाने के लिए आधा चम्मच चाय पत्ती काफी होती है। चाय पत्ती, दूध और चीनी को एक साथ उबालकर चाय बनाने का तरीका सही नहीं है। इससे चाय के सारे फायदे खत्म हो जाते हैं। इससे चाय काफी स्ट्रॉन्ग भी हो जाती है और उसमें कड़वापन आ जाता है।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. चाय की खेती कब, कहाँ और कैसे? (हिन्दी) (एच टी एम एल) बीबीसी हिन्दी। अभिगमन तिथि: 24 जनवरी, 2011