सोमनाथ चटर्जी

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विगत वर्षों में भारतीय संसद के कई प्रमुख अध्यक्ष हुए हैं, जिन्होंने अध्यक्षपीठ को गरिमा और सम्मान प्रदान किया है। श्री सोमनाथ चटर्जी 4 जून, 2004 को इस सम्माननीय पद के लिए निर्विरोध निर्वाचित होकर अध्यक्षों के दीप्ति मंडल में सम्मिलित हुए। जैसा कि पंडित जवाहरलाल नेहरू ने कहा है कि, अध्यक्ष राष्ट्र, उसकी स्वतंत्रता और आज़ादी का प्रतिनिधित्व करता है। 25 जुलाई, 1929 को श्री एन.सी. चटर्जी और श्रीमती वीणापाणि देवी के सुपुत्र के रूप में तेजपुर, असम में जन्मे श्री चटर्जी की शिक्षा-दीक्षा कलकत्ता और युनाइटेड किंगडम में हुई। उन्होंने स्नातकोत्तर (कैंटब) तथा यू.के. में मिडिल टैंपल से बैरिस्टर-एट-लॉ किया। श्री चटर्जी की धर्मपत्नी का नाम श्रीमती रेणु चटर्जी है। उनके एक पुत्र और दो पुत्रियाँ हैं।

राजनीतिक में पदार्पण

श्री सोमनाथ चटर्जी ने एक अधिवक्ता के रूप में अपने कैरियर की शुरूआत की तथा 1968 में वे भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) के सदस्य बनने के बाद सक्रिय राजनीति में शामिल हुए। राष्ट्रीय राजनीति में उनका अभ्युदय प्रथम बार 1971 में लोक सभा के लिए निर्वाचित होने के साथ हुआ। तब से लेकर उन्होंने सभी लोक सभाओं में एक सदस्य के रूप में निर्वाचित होकर सेवा की है, वर्ष 2004 में वर्तमान 14वीं लोक सभा में वे दसवीं बार निर्वाचित हुए। वर्ष 1989 से 2004 तक वे लोक सभा में सीपीआई(एम) के नेता रहे। लोक सभा चुनाव में उनकी बारंबार अधिक मतों के साथ विजय जनता के बीच उनकी लोकप्रियता, पार्टी में उनके स्थान तथा सांसद के रूप में उनके कद्दावर व्यक्तित्व को प्रमाणित करता है।

सांसद

संसदीय लोकतंत्र में आबद्धकारी आस्था के साथ श्री सोमनाथ चटर्जी ने साढ़े तीन दशकों तक एक विशिष्ट सांसद के रूप में सेवा की। एक प्रखर वक्ता तथा एक प्रभावी विधायक के रूप में उन्होंने अपने लिए एक अलग स्थान बनाया। भारत की संसदीय प्रणाली को सुदृढ़ बनाने में उनके अपरिमित व अमूल्य योगदान को स्वीकार करते हुए उन्हें वर्ष 1996 में "उत्कृष्ट सांसद पुरस्कार" प्रदान किया गया। वर्ष 1971 से महत्वपूर्ण विषयों पर वाद-विवाद में भाग लेकर उन्होंने सदन में विचार-विमर्श में समृद्ध योगदान दिया। श्री चटर्जी ने कामगार वर्ग तथा वंचित लोगों के मुद्दों को प्रभावी ढंग से उठाकर उनके हितों के लिए आवाज बुलंद करने का कोई भी अवसर नहीं गंवाया। उनका वाद-विवाद कौशल, राष्ट्रीय और अन्तर्राष्ट्रीय मुद्दों की स्पष्ट समझ, भाषा के ऊपर पकड़ तथा जिस हास्य विनोद के साथ सदन में वे अपना दृष्टिकोण रखते थे, जिन्हें सभा दतचित्त होकर सुनती थी, वे उन्हें एक सुविख्यात सांसद बनाते हैं।

अपने पूरे संसदीय जीवन में सोमनाथ चटर्जी ने सदन की गरिमा को बढ़ाने वाले मूल्यों तथा परम्पराओं का निर्वहन करने तथा संसद की संस्था को सुदृढ़ता प्रदान करने में एक उदाहरण प्रस्तुत किया। श्री चटर्जी ने सभापति तथा सदस्य के रूप में अनेक संसदीय समितियों की शोभा बढ़ायी। उन्होंने अधीनस्थ विधान संबंधी समिति तथा सूचना प्रौद्योगिकी संबंधी समिति (2 कार्यकाल), विशेषाधिकार समिति, रेल संबंधी समिति, संचार संबंधी समिति (3 कार्यकाल) की विशिष्टता सहित अध्यक्षता की। वे कई समितियों के सदस्य रहे हैं, जिनमें से कुछ एक नियम समिति, सामान्य प्रयोजनों संबंधी समिति, कार्य मंत्रणा समिति आदि हैं। वे अनेक संयुक्त समितियों तथा प्रवर समितियों विशेषतः विधि के क्षेत्र में विशेषज्ञता की आवश्यकता वाली समितियों से सम्बद्ध रहे। एक बैरिस्टर तथा एक वरिष्ठ अधिवक्ता के रूप में उन्होंने सदन तथा इसकी समितियों दोनों ही जगहों पर विधान के क्षेत्र में अपनी क़ानूनी सिद्धहस्तता का प्रयोग किया।

लोक सभा अध्यक्ष का पद

4 जून, 2004 को 14वीं लोक सभा के अध्यक्ष के रूप में श्री सोमनाथ चटजी का सर्वसम्मति से निर्वाचन कर सदन एक इतिहास रच रहा था। प्रथम बार सामयिक अध्यक्ष का लोक सभा के अध्यक्ष के रूप में निर्वाचन किया जा रहा था। 4 जून, 2004 को कांग्रेस पार्टी की नेता श्रीमती सोनिया गांधी ने अध्यक्ष के रूप में श्री सोमनाथ चटर्जी के निर्वाचन का प्रस्ताव प्रस्तुत किया। रक्षा मंत्री श्री प्रणव मुखर्जी द्वारा इस प्रस्ताव का अनुमोदन किया गया। यह महत्वपूर्ण है कि लोक सभा में 17 अन्य दलों के नेताओं ने भी इनके नाम का प्रस्ताव किया, जिसका समर्थन अन्य दलों के नेताओं द्वारा किया गया। जब विचार और मतदान हेतु इस प्रस्ताव को सदन के समक्ष रखा गया, तब सभा ने सर्वसम्मति से इसे स्वीकार किया तथा श्री सोमनाथ चटर्जी निर्विरोध अध्यक्ष निर्वाचित किए गए। अध्यक्ष के इस प्रतिष्ठित पद पर निर्वाचित होने पर श्री चटर्जी को बधायी देते हुए प्रधानमंत्री, विपक्ष के नेता तथा लोक सभा में सभी राजनैतिक दलों के नेताओं ने देश में संसदीय लोकतंत्र की उच्च परंपराओं, जिनके विकास में उन्होंने काफी महत्वपूर्ण योगदान दिया है, को बनाए रखते हुए सभा की कार्यवाही को निष्पक्ष और गौरवपूर्ण तरीके से चलाने की उनकी योग्यता में विश्वास व्यक्त किया। अध्यक्ष के रूप में श्री सोमनाथ चटर्जी लोक सभा तथा समस्त संसदीय लोकतंत्र प्रणाली की प्रतिष्ठा और विश्वसनीयता के प्रतीक हैं।

कुशल संचालक

श्री सोमनाथ चटर्जी ने सभा की कार्यवाही के संचालन को सुधारने में पहल की और उन्होंने इस संबंध में कई महत्वपूर्ण विनिर्णय और निर्णय दिए। 22 जुलाई, 2008 को विश्‍वास मत के दौरान किए गए सभा के संचालन के लिए उनको देश के विभिन्‍न वर्गों के नागरिकों तथा विदेशों से काफी सराहना मिली। सभा में महत्वपूर्ण मुद्दो पर सुव्यवस्थित वाद-विवाद सुनिश्चित करने के लिए श्री चटर्जी सभी सत्रों से पहले और सत्र के दौरान राजनैतिक दलों के नेताओं के साथ नियमित रूप से बैठकें करते रहे हैं। दुराचरण के मामलों सहित कई महत्वपूर्ण मामले विशेषाधिकार समिति को सौंपे गए, जिनके परिणामस्वरूप संसद सदस्य निष्कासित और निलंबित हुए हैं। अध्यक्ष की पहल पर ही संसद सदस्यों को दुराचरण और समय-समय पर होने वाले अन्य संबंधित मुद्दों के आरोपों की जांच के लिए एक विशेष समिति गठित की गयी। उन्होंने राज्य सभा के सभापति के साथ परामर्श करके समिति के दौरों संबंधी नियमों को संशोधित किया। अंतरराष्ट्रीय दौरों, सम्मेलनों और संसदीय शिष्टमंडल के विदेशी दौरों संबंधी प्रतिवेदनों को अब सभा पटल पर रखा जाता है।

कूटनीतिज्ञ

चीन यात्रा के दौरान भारतीय संसद ने चीन की संसद के साथ प्रथम समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए, जिसमें संसदीय लेनदेन एवं सहयोग को बढ़ाने के लिए समझौता किया गया है। विदेशों में भारत की प्रतिष्ठा में वृद्धि करने, महत्वपूर्ण अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलनों यथा राष्ट्रमंडल संसदीय एसोसिएशन (सीपीए), अंतर्संसदीय संघ (आईपीयू) तथा अन्य सेमिनारों एवं कार्यशालाओं में प्रस्तुतिकरणों की गुणवत्ता में सुधार के लिए माननीय अध्यक्ष महोदय द्वारा विशेष प्रयास किए गए हैं। मुख्यतः लोक सभा के माननीय अध्यक्ष द्वारा किए गए विशेष कूटनीतिक प्रयासों के कारण पश्चिम बंगाल विधान सभा के अध्यक्ष 'हाशिम अब्दुल हलीम' को 2 सितम्बर, 2005 को सीपीए सम्मेलन, नादी (फिजी) में 3 वर्ष के कार्यकाल के लिए राष्ट्रमंडल संसदीय संघ की कार्यकारी समिति का अध्यक्ष भारी बहुमत से चुना गया। किसी भारतीय प्रतिनिधि को यह सम्मान 20 वर्षों के बाद प्राप्त हुआ। इसके साथ ही लोक सभा के माननीय अध्यक्ष को नादी (फिजी) में राष्ट्रमंडल संसदीय संघ का उपाध्यक्ष चुना गया तथा भारत को 53वें सीपीए सम्मेलन की मेजबानी करने का सम्मान प्राप्त हुआ। सितम्बर 2006 में श्री चटर्जी को अबुजा, नाइजीरिया में राष्ट्रमंडल संसदीय संघ का अध्यक्ष चुना गया। उनके नेतृत्व तथा समर्थ दिशानिर्देश में भारत ने सितम्बर, 2007 के दौरान नई दिल्ली में 53वें सीपीए सम्मेलन की सफलतापूर्वक मेजबानी की, जिसमें 52 देशों को विविध क्षेत्रों में भारत की उपलब्धियों से अवगत कराया गया। श्री चटर्जी ने जेनेवा (5-10 अक्तूबर, 2007) में अंतर्संसदीय संघ की 117वीं सभा में भारतीय संसदीय शिष्टमंडल का नेतृत्व किया।

सदन की कार्यवाही का प्रसारण

श्री चटर्जी की पहल पर "शून्यकाल" की कार्यवाही का 5 जुलाई 2004 से सीधा प्रसारण किया गया है। श्री चटर्जी का मानना है कि, यह क़दम लोगों के जानने के अधिकार के स्वीकरण में शुरू किया गया है, इसका उद्देश्य सदस्यों को अनुशासित करना नहीं था, न ही उनका ऐसा मानना है कि, इससे संसद की आलोचना होगी। संसदीय कार्यवाही को अधिक व्यापक मीडिया कवरेज प्रदान करने के लिए 24 जुलाई 2006 से पूरे 24 घंटे के लिए लोक सभा का एक टेलीविजन चैनल शुरू किया गया है। इसके परिणामस्वरूप सभा की दर्शक दीर्घा का विस्तार वास्तव में पूरे देश में हो गया है तथा इससे लोगों के संसद के निकट आने की आशा की जाती है। विश्व में यह अपने आप में अकेला प्रयास है।

महत्वपूर्ण पहल

विभागों से संबद्ध स्थायी समितियों (डीआरएससी) के कार्यकरण के संबंध में श्री चटर्जी ने एक और महत्वपूर्ण पहल की है। निदेश 73क में यह प्रावधान किया गया है कि, संबंधित मंत्री छः महीने में एक बार लोक सभा की विभागों से संबद्ध स्थायी समितियों (डीआरएससी) के प्रतिवेदनों में निहित सिफारिशों के कार्यान्वयन की स्थिति के बारे में अपने मंत्रालय के संबंध में एक वक्तव्य देगा। इससे समितियों की सिफारिशों, जो कि सामान्यतया एकमत से की जाती हैं, के कार्यान्वयन में काफी सहायता मिली है। 14वीं लोक सभा के दौरान "ध्यानाकर्षण प्रस्तावों" तथा "स्थगन प्रस्तावों" की संख्या में सुस्पष्ट वृद्धि हुई है। 14वीं लोक सभा के दौरान आज की तिथि तक कुल 103 ध्यानाकर्षण प्रस्ताव और 7 स्थगन प्रस्ताव लाए गए हैं। माननीय अध्यक्ष महोदय ने इस बात की वकालत की कि, स्वयं सदस्यों को अपने वेतन और भत्तों के संबंध में सुझाव नहीं देना चाहिए और यह कार्य एक स्वतंत्र आयोग द्वारा किया जाना चाहिए। सभी दलों के नेताओं ने इस सुझाव का समर्थन किया। तदनुसार समय-समय पर माननीय सदस्यों के वेतन और भत्तों के निर्धारण के लिए संस्थागत तंत्र बनाने के लिए प्रधानमंत्री के पास एक प्रस्ताव भेजा गया। इस प्रस्ताव पर सरकार विचार कर रही है।




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