स्वतन्त्र प्रान्तीय राज्य

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भारत में अनेक प्रान्तीय राज्यों की स्थापना भिन्न-भिन्न शासकों के द्वारा की गई। इन शासकों ने अपने समय में कई महत्वपूर्ण कार्यों को सम्पन्न किया। इन शासकों के द्वारा भारत में स्थापत्य की दृष्टि से अनगिनत इमारतों का निर्माण किया गया। इस समय भारत की राजनीति और इसमें होने वाले परिवर्तनों को सारे संसार के द्वारा बड़ी एकाग्र दृष्टि से देखा जा रहा था। भारत में जो स्वन्त्र राज्य राज कर रहे थे, उनमें से कुछ निम्नलिखित थे-

जौनपुर

बनारस के उत्तर पश्चिम में स्थित जौनपुर राज्य की नींव फ़िरोजशाह तुग़लक़ ने डाली थी। सम्भवतः इस राज्य को फ़िरोज ने अपने भाई 'जौना ख़ाँ' या 'जूना ख़ाँ' (मुहम्मद बिन तुग़लक़) की स्मृति में बसाया था। यह नगर गोमती नदी के किनारे स्थापित किया गया था। 1394 ई. में फ़िरोज तुग़लक़ के पुत्र सुल्तान महमूद ने अपने वज़ीर ख्वाजा जहान को ‘मलिक-उस-शर्क’ (पूर्व का स्वामी) की उपाधि प्रदान की। उसने दिल्ली पर हुए तैमूर के आक्रमण के कारण व्याप्त अस्थिरता का लाभ उठा कर स्वतन्त्र शर्की राजवंश की नींव डाली। इसने कभी सुल्तान की उपाधि धारण नहीं की। 1399 ई. में उसकी मृत्यु हो गई। उसके राज्य की सीमाएँ 'कोल', 'सम्भल' तथा 'रापरी' तक फैली हुयी थीं। उसने 'तिरहुत' तथा 'दोआब' के साथ-साथ बिहार पर भी प्रभुत्व स्थापित किया।

मलिक करनफूल मुबारकशाह (1399-1402 ई.)

ख्वाजा जहान के बाद उसका दत्तक पुत्र मुबारक शाह सुल्तान की उपाधि के साथ जौनपुर के राजसिंहासन पर बैठा। उसने अपने नाम से 'खुतबे' (उपदेश या प्रशंसात्मक रचना) भी पढ़वाये। उसके शासन काल में सुल्तान महमूद तुग़लक़ के वज़ीर 'मल्लू-इकबाद ख़ाँ' ने जौनपुर पर आक्रमण किया, परन्तु उसका प्रयास असफल रहा। 1402 ई. में मुबारकशाह की मृत्यु हो गई।

इब्राहिमशाह शर्की (1402-1440 ई.)

मुबारकशाह की मृत्यु के बाद 1402 ई. में इब्राहिम ‘शम्सुद्दीन इब्राहिमशाह’ की उपाधि से गद्दी पर बैठा। राजनैतिक उपलब्धि के क्षेत्र में शून्य रहते हुए भी सांस्कृतिक दृष्टि से उसका समय काफ़ी महत्वपूर्ण रहा। इसके समय में जौनपुर एक महान सांस्कृतिक केन्द्र के रूप में उभरा। उसे स्थापत्य कला के क्षेत्र में जौनपुर व शर्की शैली का जन्मदाता माना जाता है। लगभग 1440 ई. में इब्राहिम शाह की मृत्यु हो गई। इसके समय में स्थापत्य कला की एक नवीन शैली 'जौनपुर' अथवा 'शर्की शैली' का उद्भव एवं विकास हुआ।

महमूदशाह (1440-1457 ई.) - इब्राहिम की मृत्यु के बाद के बाद जौनपुर की गद्दी पर उसका पुत्र महमूदशाह बैठा ।उसने चुनार किले को अपने अधिकार में किया, परन्तु कालपी किलें एवं दिल्ली पर किये गये आक्रमण से बुरी तरह असफल हुआ।

मुहम्मदशाह शर्की (1457-1458 ई.) - मुहम्मद शर्की मुहमूद शाह का पुत्र था। दिल्ली पर आक्रण के दौरान वह बहलोल से पराजित हुआ। परन्तु अमीरों से संघर्ष के दौरान उसका वध कर दिया गया और उसके छोटे भाई हुसैनशाह शर्की को सिंहासन पर बैठाया गया।

हुसैनशाह शर्की (1458-1485 ई.) - मुहम्मद शर्की की हत्या के बाद उसका भाई हुसैनशाह शर्की 1457 ई. में गद्दी पर बैठा। उसने त्ता प्राप्त करने के बाद बहलोलों से संधि कर ली। यह शर्की वंश कां अंतिम सुल्तान था। इसके समय में दिल्ली और जौनपुर का संघर्ष अपने चरम पर पहुंच गया था। इसके काल में अन्ततः बहलोल लोदी ने जौनपुर पर 1483-1484 ई. में अधिकार कर लिया।


लगभग 75 वर्ष तक स्वतन्त्र रहने के उपरान्त जौनपुर को सिकन्दर लोदी ने पुनः दिल्ली सल्तनत में मिला लिया। शर्की शासन के अन्तर्गत, विशेष कर इब्रहिमशाह के समय में जौनपुर में साहित्य एवं स्थापत्य कला के क्षेत्र में हुए विकास के कारण जौनपुर को ‘भारत का सिराज’ कहा गया।





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