इंडियन प्रीमियर लीग

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DrMKVaish (वार्ता | योगदान) द्वारा परिवर्तित 20:43, 13 अप्रैल 2011 का अवतरण
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क्रिकेट की दुनिया में इंडियन प्रीमियर लीग (आईपीएल) (Indian Premier League / IPL) की शुरुआत एक अहम मोड़ थी। भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड (बीसीसीआई) ने धूम-धड़ाके से आईपीएल को 14 सितंबर 2007 को शुरुआत की। जिस ट्वेन्टी-20 मुक़ाबले का भारतीय बोर्ड शुरू से ही विरोध करता था, उसकी पहले तो पैरवी और फिर आईपीएल जैसी बड़ी प्रतियोगिता का आयोजन ये साबित करने के लिए काफ़ी था कि अब ट्वेन्टी-20 मुक़ाबलों को नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता।

ट्वेन्टी-20 के प्रति भारतीय क्रिकेट बोर्ड का प्रेम उस समय जगा जब भारत ने 2007 में ट्वेन्टी-20 विश्व कप में ख़िताबी जीत हासिल की। डगर कठिन थी लेकिन कप्तान महेंद्र सिंह धोनी की सेना ने हार न मानी और टी20 क्रिकेट वर्ल्ड कप के पहले संस्करण में टीम को जीत दिलाई। हर जीत की तरह इस जीत के साथ एक नए अध्याय की शुरुआत हुई। हमारे देश में वैसे भी क्रिकेट का एक अलग मुकाम है और इस जीत के बाद यहां भी टी20 क्रिकेट की लोकप्रियता बढ़ने लगी। फिर तो क्रिकेट की आर्थिक महाशक्ति इसका अर्थशास्त्र भी समझने लगी। बीसीसीआई ने इस लोकप्रियता को व्यर्थ न जाने दिया और शुरुआत हुई आईपीएल ( इंडियन प्रीमियम लीग ) की। जिसमे बीसीसीआई ने अन्य देशों की ट्वेन्टी-20 प्रतियोगिता की चैम्पियन टीमों को दावत दी।

इसका अध्‍यक्ष ललित मोदी को बनाया गया जिन्‍होंने आईपीएल की सफलता को शिखर तक पहुंचाने में अहम भूमिका निभाई। हालांकि उन्‍होंने 1996 में बीसीसीआई के सामने अपने इस विचार को रखा था लेकिन घरेलू क्रिकेट को देखते हुए बोर्ड ने इसे लागू करने से मना कर दिया। लेकिन 'जी ग्रुप' द्वारा अप्रैल 2007 में आईसीएल के नाम से इसी तरह की एक लीग की शुरुआत करने के बाद आईपीएल जल्‍दी से लांच किया गया। आईपीएल ज़ी-समूह के इंडियन क्रिकेट लीग (आईसीएल), यूरोप में क्लब फ़ुटबॉल की प्रतियोगिता चैम्पियंस लीग और नेशनल बॉस्‍केटबॉल लीग को ध्‍यान में रखकर शुरू की गई। अगर आईसीएल नहीं होती, तो शायद बोर्ड आईपीएल लाने से पहले कुछ सोचता, योजना बनाता, सलाह-मशविरा करता। लेकिन बोर्ड के आका ये समझ गए थे कि अगर देर हुई तो ट्वेन्टी-20 क्रिकेट की लोकप्रियता कहीं आईसीएल को क्रिकेट की दुनिया में स्थापित ही न कर दे, जिस पर बोर्ड ने पाबंदी लगा रखी है।

तो फिर फटाफट क्रिकेट के लिए आयोजन भी फटाफट हुआ। युद्धस्तर पर काम हुआ। टीमें बनीं, टीमों की बोली लगी और फिर खिलाड़ी भी नीलाम हुए।

आईपीएल की शुरुआत में सबसे पहला कदम टीम बनाने का था। इसके लिए आठ टीमों पर बोली लगाई गई जिसे आठ अलग-अलग फ्रेंचाइजी ने ख़रीदा।

यह टीमें थीं --- 1. चेन्नई सुपर किंग्स 2. डेक्कन चार्जर्स 3. कोलकाता नाइट राइडर्स 4. मुंबई इंडियंस 5. किंग्स इलेवन पंजाब 6. देलही डेयर डेविल्स 7. रॉयल चैलेंजर्स बेंगलुरू 8. राजस्थान रॉयल्स

इसके बाद शुरू हुआ टीम बनाने का कदम। जब आईपीएल शुरू हुआ था तब यह तय किया गया था कि तीन साल तक हर टीम में एक–एक आइकन खिलाड़ी होगा। इस आधार पर सचिन तेंदुलकर, सौरभ गांगुली, राहुल द्रविड़, महेंद्र सिंह धोनी, शेन वार्न, वी.वी.एस लक्ष्मण और युवराज सिंह को विभिन्न टीमों का आइकन खिलाड़ी चुना गया। इसके बाद हुई खिलाड़ियों की नीलामी।

सभी टीमों ने बहुत पैसा खर्च किया और अपनी टीम को मजबूत बनाने के लिए एक से बढकर एक धुरंधरों की सेना खड़ी की। आईपीएल के नियम के अनुसार इन खिलाड़ियों को तीन सालों के लिए अनुबंधित किया गया।

आईपीएल के बाज़ार में दुनिया के शीर्ष खिलाड़ी बिकने को तैयार थे। क्या रिकी पोंटिंग, क्या शोएब मलिक, क्या मैथ्यू हेडन और क्या एंड्रयू साइमंड्स। इन सब खिलाड़ियों की बोली लगी, लेकिन बाज़ी मारी भारतीय टीम के कप्तान महेंद्र सिंह धोनी ने। चेन्नई सुपरकिंग्स ने धोनी को सबसे ज़्यादा छह करोड़ में ख़रीदा। दूसरे स्थान पर रहे एंड्रयू साइमंड्स।

टीम ख़रीदने वालों में भी सितारों का ताँता लगा। शाहरुख़ को कोलकाता की टीम मिली तो प्रीति ज़िंटा ने पंजाब की टीम को ख़रीदा। मुकेश अंबानी के हिस्से में मुंबई की टीम आई, तो विजय माल्या ने बंगलौर की टीम पर दाँव लगाया।

टीम और खिलाड़ियों की ख़रीदारी के बाद सारा ध्यान आयोजन पर टिका था। मीडिया, मार्केटिंग, टीवी राइट्स, प्रायोजक और विज्ञापन। लगा जैसे भारत में क्रिकेट की आँधी चलने लगी हो। आईपीएल शुरू हुआ। मैच हुए और खिलाड़ियों के विस्फोटक प्रदर्शन भी हुए।

प्रतियोगिता के बाद आईपीएल के चेयरमैन ने दावा किया कि कुल मिलाकर बोर्ड और टीमों के मालिकों को ख़ूब लाभ हुआ और खिलाड़ी तो पहले से ही मालामाल थे।

इंडियन प्रीमियम लीग भारत और भारतीय क्रिकेट को नई पहचान देने के साथ साथ एक ऐसा काम भी कर रहा है, जो दुनिया के लिए एक मिसाल साबित होगा। देशी-विदेशी खिलाड़ियों का एक टीम में एक साथ खेलना, एक साथ रहना, खाना-पीना, जीत के लिए मिलकर रणनीति बनाना और वो भी नस्लभेद, रंगभेद, उंच- नीच, जात-पात जैसी कुरीतियों से दूर। भले ही आईपीएल बाजार की पैदाईश हो, लेकिन इस बात से भी इंकार नहीं किया जा सकता कि ये भारत को एक नया मुकाम दिला रहा है। ये आईपीएल ही है जिसे अमेरिका, ब्रिटेन जैसे तमामतर विकसित देशों के सिनेमाघरों में दिखाया जा रहा है। ये दुनिया के सबसे महंगे खेल फुटबॉल को भी पीछे छोड़ने लगा है। भारत के ही नहीं, विदेशी अख़बारों में भी आईपीएल बराबर जगह पा रहा है। बाहरी खिलाड़ी यहां के लोगों के करीब आ रहे हैं। कहीं ना कहीं आई पी एल वो काम भी कर रहा है जिसका तसव्‍बुर इसे शुरू करते वक्त नहीं किया गया होगा। ये आई पी एल का ही कमाल है कि जो खिलाड़ी पहले मैदान पर प्रतिद्वंद्वी बन कर उतरते थे, वो आज एक साथ जीत के लिए खेल रहे हैं। क्या कभी किसी सोचा होगा कि धोनी छक्का लगाकर मैच जिताएगें और पवेलियन से श्रीलंकाई फिरकी गेंदबाज़ मुरलीधरन उछलते कूदते धोनी को बधाई देने के लिए इस कदर भागेगें। ऐसे उदाहरण तमाम हैं। इससे उम्मीद की जा सकती कि जब विदेशी खिलाड़ी स्वदेश लौटेंगे, तो अपने देश के लोगों से मुख़ातिब होते हुए ये बताएगें कि हमें हिन्दुस्तानियों से काफी प्यार मिला। वहां हमारे कई सारे फैन हैं और कई नए दोस्त भी बने हैं, तो क्या इससे कुछ हद तक ये नस्लवाद की समस्या दूर नहीं होगी। खेल तो शुरू से ही मेल करता आया है और कराता रहेगा, चाहे वो कितना ही बाज़ारवाद में डूब क्यों ना जाए।


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