अगस्त्याश्रम

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  • तत: सम्प्रस्थितो राजा कौंतेयो भूरिदक्षिण: अगस्त्याश्रममासाद्य दुर्जयायामुवास ह।[1]
  • 'पांडव अपनी तीर्थयात्रा के प्रसंग में गया (बिहार) से आगे चलकर अगस्त्याश्रम पहुंचे थें यही मणिमती नगरी की स्थिति थी।
  • शायद यह राजगृह के निकट स्थित था।
  • अगस्त्यतीर्थ जो दक्षिण समुद्रतट पर स्थित था इससे भिन्न था।
  • जान पड़ता है कि प्राचीनकाल में अगस्त्य के आश्रमों की परंपरा, बिहार से नासिक एवं दक्षिण समुद्रतट तक विस्तृत थी।
  • पौराणिक साहित्य के अनुसार अगस्त्य-ऋषि ने भारत की आर्य-सभ्यता का सुदूर दक्षिण तथा समुद्रपार के देशों तक प्रचार किया था।


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