हब्शी
तेरहवीं सदी में भारत स्थानीय राजाओं के महल में 'ग़ुलामों' का चलन था, जिन्हें 'हब्शी' कहा जाता था। मुस्लिम देश अरब और अफ्रीका से भारत के पुराने व्यापारिक रिश्ते थे, इन्हीं देशों से भारत में ग़ुलाम लाये जाते थे। अफ्रीका से आने वाले ग़ुलाम को ही 'हब्शी' कहा जाता था। इनका क़द ऊंचा क़द और शरीर की गठन सुगढ़ होती थी। इनका रंग गहरा और बाल घुंघराले होते थे। हिन्दी साहित्य और इतिहास में 'हब्शी' शब्द का प्रयोग मिलता है।
- मूल शब्द
हब्शी शब्द मूल रूप से सेमेटिक शब्द है । इसके कई रूप है मसलन हब्शी, हबशी, हबसा आदि। अरबी में इसका एक रूप है हबासत जो सेमेटिक धातु हब्स्त का रूप है। आमतौर पर यह शब्द उत्तर पूर्वी अफ्रीकी समुदाय के लोगों के लिए इस्तेमाल होता था। ख़ासतौर पर इथियोपिया, इरिट्रिया आदि के संदर्भ में। अरबी में एक शब्द है अल-हबाशात यानी इथियोपिया के लोग। अलहबाशा ने ही यूरोपीय भाषाओं में जाकर अबीसीनिया का रूप लिया। गौरतलब है कि इथियोपिया का पुराना नाम अबीसीनिया ही था। गौरतलब है कि ग़ुलाम वंश की रजिया सुल्तान के प्रेमी का नाम याकूत था जो एक 'अबीसीनियाई ग़ुलाम' ही था। रजिया तेरहवीं सदी में दिल्ली के तख्त पर बैठी थीं। [1]
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ रज़िया,हब्शी और अबीसीनिया (हिन्दी)। । अभिगमन तिथि: 1जुलाई, 2011।