ओड़छा मध्य प्रदेश
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- किंवदंती के अनुसार मध्यकाल में यहां पड़िहार राजपूतों का राज्य था और उन्होंने अपनी राजधानी यहीं बनाई थी।
- चंदेलों के परास्त होने पर ओड़छा भी श्रीहत हो गया किंतु बुंदेलों का प्रभुत्व स्थापित होने पर राजा रुद्रप्रताप ने पुन: एक बार ओड़छा को राजधानी बनाकर उसकी श्रीवृद्धि की।
- वे ही वर्तमान ओड़छा के बसाने वाले माने जाते हैं।
- उन्होंने सोमवार 3 अप्रैल 1531 ई0 में इस नगर को पुन: बसाया था।
- यहाँ के क़िले को बनने में आठ वर्ष लग गए थे।
- इनके पुत्र और उत्तराधिकारी भारतीचंद्र के समय ही में ओड़छा के महल बनकर तैयार हुए थे (1539 ई0)।
- इसी वर्ष राजधानी भी गढ़कुंडार से पूरी तरह से ओड़छा में ले आई गई थी।
- अकबर के समय यहां के राजा मधुकर शाह थे जिनके साथ मुग़ल सम्राट के कई युद्ध किए थे।
- जहांगीर ने वीरसिंहदेव बुंदेला को जो ओड़छा राज्य की बड़ौनी जागीर के स्वामी थे पूरे ओड़छा राज्य की गद्दी दी थी।
- वीरसिंहदेव ने ही अकबर के शासनकाल में जहांगीर के कहने से अकबर के विद्वान् दरबारी अबुलफजल की हत्या करवा दी थी।
- शाहजहां ने बुन्देलों से कई असफल लड़ाइयां लड़ीं। किंतु अंत में जुझारसिंह को ओड़छा का राजा स्वीकार कर लिया गया।
- बुन्देलखण्ड की लोक-कथाओं का नायक हरदौल वीरसिंहदेव का छोटा पुत्र एवं जुझारसिंह का छोटा भाई था।
- औरंगजेब के राज्यकाल में छत्रसाल की शक्त् बुंदेलखंड में बढ़ी हुई थी।
- ओड़छा की रियासत वर्तमान काल तक बुंदेलखंड में अपना विशेष महत्त्व रखती आई है।
- यहाँ के राजाओं ने हिन्दी के कवियों को सदा प्रश्रय दिया है।
- महाकवि केशवदास वीरसिंहदेव के राजकवि थे।
- ओड़छे में जिन पुरानी इमारतों के खंडहर हैं, उनमें मुख्य हैं- जहांगीर-महल जिसे वीरसिंहदेव ने जहांगीर के लिए बनवाया था यद्यपि जहांगीर इस महल में वीरसिंहदेव के जीवनकाल में कभी न ठहर सका, केशवदास का भवन, प्रवीण राय का भवन (प्रवीण राय, वीरसिंह देव के दरबार की प्रसिद्ध गायिका थी जिसकी केशवदास ने अपने ग्रंथों में बहुत प्रशंसा की है)।
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