लॉर्ड कॉर्नवॉलिस

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 लॉर्ड कॉर्नवॉलिस को दो बार भारत का गवर्नर-जनरल बनाया गया था। पहली बार वह 1786-1793 ई. तक तथा दूसरी बार 1805 ई. में गवर्नर-जनरल बनाया गया। किन्तु अपने दूसरे कार्यकाल 1805 ई. में लॉर्ड कॉर्नवॉलिस अधिक समय तक गवर्नर-जनरल नहीं रहा, क्योंकि कुछ समय बाद ही उसकी मृत्यु हो गई। कॉर्नवॉलिस ने अपने कार्यों से सुधारों की एक कड़ी स्थापित कर दी। उसने अपने शासन काल में निम्नलिखित सुधार किये- 

सर्वप्रथम अपने ‘न्यायिक सुधारों’ के अन्तर्गत कार्लवालिस ने जिले की समस्त शक्ति कलेक्टर के हाथों में केन्द्रित कर दी व 1787 ई. में जिले के प्रभारी कलेक्टरों को दीवानी अदालत कादीवानी न्यायधीश नियुक्त कर दिया। 1790-92 ई. के मध्य भारतीय न्यायाधीशों से युक्त जिला फौजदारी अदालतों को समाप्त कर उसके स्थान पर चार भ्रमण करने वाली अदालते- तीन बंगाल हेतु व एक बिहार हेतु नियुक्त की गई। इन अदालतों की अध्यक्षता यूरोपीय व्यक्ति द्वारा भारतीय काजी व मुफ्ती के सहयोग से की जाती थी। कॉर्नवॉलिस ने ‘कानून की विशिष्टता’ का नियम जो इससे पूर्व नहीं था, भारत में लागू किया।

कॉर्नवॉलिस ने 1793 ई. में प्रसिद्ध ‘कॉर्नवॉलिस कोड’ का निर्माण करवाया जो ‘शक्तियों के पृथकीकरण’ सिद्धान्त पर आधारित था। कॉर्नवॉलिस संहिता से कलेक्टरों की न्यायिक एवं फौजदारी से सम्बन्धित शक्ति का हनन हो गया और अब उनके पास मात्र ‘कर’ सम्बन्धित शक्तियां ही रह गयी थी। उसने वकालत पेशा को नियमित बनाया। 1790-93 ई. के मध्य कॉर्नवॉलिस ने फौजदारी कानून में कुछ परिवर्तन किये जिन्हे अंग्रेजी संसद ने 1797 ई. में एक अधिनियम द्वारा प्रमाणित कर दिया। इन सुधारों के अन्तर्गत हत्या के मामले में हत्यारे की भवना पर अधिक बल दिया गया न कि हत्या के अस्त्र अथवा ढंग पर। इसी प्रकार मृतक के अभिभावकों की इच्छा से क्षमा करना अथवा ‘रक्त का मूल्य’ निर्धारित करना बन्द कर दिया गया तथा अंग विच्छेदन के स्थान पर कड़ी कैद की सजा की आज्ञा दी गयी। इसी प्रकार 1793 ई. में यह निश्चित किया गया कि साक्षी के धर्म विशेष के मामले पर कोई असर नहीं पड़ेगा।

कॉर्नवॉलिस ने ‘पुलिस सुधार’ के अन्तर्गत कम्पनी के अधिकारियों के वेतन में वृद्धि की और ग्रामीण क्षेत्रों में पुलिस अधिकार प्राप्त जमीदारों को इस अधिकार से वंचित कर दिया। अंग्रेज मजिस्ट्रेटों को जिले का पुलिस का भार दे दिया गया। जिलों को 400 वर्ग मील क्षेत्र में विभाजित कर दिया गया। जिलों में पुलिस थाना की स्थापना कर एक दरोगा को उसका प्रभारी बनाया गया। कॉर्नवॉलिस को पुलिस व्यवस्था का जनक भी कहा जाता है।


प्रशासनिक सुधार के अन्तर्गत कम्पनी के अधिकारियों एवं कर्मचारियों के वेतन में वृद्धि की गई और व्यक्तिगत व्यापार पर पाबन्दी लगा दी गई। कॉर्नवॉलिस ने प्रशासनिक व्यवस्था का यूरोपीयकरण किया। भारतीय के लिए सेना में सूबेदार, जमादार, प्रशासनिक सेवा में मुसिफ, सदर, अमीर या डिप्टी कलेक्टर से ऊंचे पद नहीं दिये जाते थे।


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