अदालत -अवतार एनगिल

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साक्षी

एक अदद
चश्मदीद गवाह
गंगा राम
वल्द गीता राम
असुरक्षा के बेपैंदे धरातल पर खड़ा
साक्षी देता है
और कहता है
हवा को आग----आग को हवा
कितना झूठा है 'आंखों देखा सच्च
कितना सच्चा है कविता का झूठ ।

वकील

एक अदद वकील
काले लबादे वाला भील
कानून का भाला लिए
कितावों का हवाला लिए
देखता है सिर्फ
अभियुक्त का गला
लहराते हैं 'तथ्य'
दनदनाता है टाईपराईटर
ठीक करते हैं आप
गले बंधे झूठ की गांठ ।

न्यायाधीश

एक अदद न्यायाधीष
लंच के बाद
निकालते हैं
टूथ प्रिक से
जाने किसका
दांतों फंसा मांस
कुछ ही दिनों में
बदली के साथ-साथ
हो जाएगी तरक्की भी

जानते हैं खूब
कि वकील की दलील ने
पेशियों की तारीखें ही बदलनी हैं
जस्टिस डिलेड इज़ दा जस्टिस अवार्डिड ।

अभियुक्त

एक अदद अभियुक्त्
कटघरे में नियम बंधा
चौंधिया गया था
और फिर बिंध गईं थीं उसकी आँखें
शब्दों की शमशीरों से

प्रतिलिपियों के खर्चों झुका
तर्कों के घ्रेरों रुका
पगला गया है
इस व्यूह में
धनुषधारी अर्जुन का बेटा ।

अदालत

एक अदद चश्मदीद गवाह----गंगा राम
एक अदद वकील----काले लबादे वाला भील
एक मांसाहारी न्यायाधीष
देते हैं निर्णय :
एक अदद शाकाहारी अभियुक्त निश्चय ही दोषी है।



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