सार्वभौमिक वयस्क मताधिकार
सार्वभौमिक वयस्क मताधिकार अथवा सार्वभौम मताधिकार
उन्नीसवीं सदी में लोकतंत्र के लिए होने वाले संघर्ष अकसर राजनैतिक समानता, आज़ादी और न्याय जैसे मूल्यों को लेकर ही होते थे। एक मुख्य माँग यह रहा करती थी कि सभी वयस्क नागरिकों को मतदान का अधिकार हो। यूरोप के जो देश तब लोकतांत्रिक व्यवस्था को अपनाते जा रहे थे वे सभी लोगों को वोट देने की अनुमति नहीं देते थे। कुछ देशों में केवल उन्हीं लोगों को वोट का अधिकार था, जिनके पास सम्पत्ति थी। अकसर महिलाओं को तो वोट का अधिकार मिलता ही नहीं था। संयुक्त राज्य अमेरिका में पूरे देश में अश्वेतों को 1965 तक मतदान का अधिकार नहीं था। लोकतंत्र के लिए संघर्ष करने वाले लोग सभी वयस्कों-औरत या मर्द, अमीर या गरीब, श्वेत या अश्वेत-को मतदान का अधिकार देने की माँग कर रहे थे। इसे 'सार्वभौमिक वयस्क मताधिकार' या 'सार्वभौम मताधिकार' कहा जाता है।
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ http://books.google.co.in/books?id=fglji5_9oKcC&pg=PA5&lpg=PA5&dq=reduction+of+voting+age+in+india&source=bl&ots=bIjquOlzZs&sig=_obznWJft9NTsmhgoM_BYNV_kjE&hl=en&ei=4jJeTqTHKJHOrQfb_rm4Dw&sa=X&oi=book_result&ct=result&resnum=7&sqi=2&ved=0CFAQ6AEwBg#v=onepage&q=reduction%20of%20voting%20age%20in%20india&f=false गूगल बुक्स
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