क़ब्ज़

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परिचय

कब्ज अमाशय की स्वाभाविक परिवर्तन की वह अवस्था है, जिसमें मल निष्कासन की मात्रा कम हो जाती है या मलक्रिया में कठिनाई होती है, मल कड़ा हो जाता है, उसकी आवृति घट जाती है या मल निष्कासन के समय अत्यधिक बल का प्रयोग करना पड़ता है और पेट में गैस बनती है। सामान्य आवृति और अमाशय की गति व्यक्ति विशेष पर निर्भर करती है। एक सप्ताह में 3 से 12 बार मल निष्कासन की प्रक्रिया सामान्य मानी जाती है।

कब्ज आज के समय का एक साधारण रोग है। आज बहुत से लोग कब्ज रोग से परेशान रहते हैं। कब्ज रोग व्यक्ति के स्वयं के खान-पान में असावधानी रखने का ही परिणाम है। कब्ज उत्पन्न होने का मुख्य कारण अधिक मिर्च-मसाले वाला भोजन करना, कब्ज बनाने वाले पदार्थों का सेवन करना, भोजन करने के बाद अधिक देर तक बैठना, तेल व चिकनाई वाले पदार्थों का अधिक सेवन करना आदि है।

कब्ज रोग होने की असली जड़ भोजन का ठीक प्रकार से न पचना होता है। यदि पेट रोगों का घर होता है तो आंत विषैले तत्वों की उत्पति का स्थान होता है। यह बहुत से रोगों को जन्म देता है जिनमें कब्ज प्रमुख रोग होता है। कब्ज में अधिक मात्रा में मल का बड़ी आंत में जमा हो जाना। कब्ज के कारण अवरोही आंतों में तरल पदार्थो के अवशोशण में अधिक समय लगने के कारण उनमे शुष्क (ठंडा) व कठोर मल अधिक एकत्रित होने लगता है। कब्ज उत्पन्न होने का एक आम कारण है जीवन में मल त्याग की साधारण क्रिया का रुकना।

कब्ज एक प्रकार का ऐसा रोग है जो पाचनशक्ति के कार्य में किसी बाधा उत्पन्न होने के कारण होता है। इस रोग के होने पर शारीरिक व्यवस्था बिगड़ जाती है जिसके कारण पेट के कई रोग उत्पन्न हो जाते हैं। इस रोग के कारण शरीर में कार्य करने की क्षमता कम हो जाती है। इस रोग के कारण शरीर के अन्दर जहर भी बन जाता है जिसके कारण शरीर में अनेक बीमारी पैदा हो सकती है जैसे- मुंह में घाव, छाले, अफारा, थकान, उदरशूल या पेट मे दर्द, गैस बनना, सिर में दर्द, हाथ-पैरों में दर्द, अपच तथा बवासीर आदि। कब्ज बनने पर शौच खुलकर नहीं आती, जिससे पेट में दर्द होता रहता है।

यदि कब्ज का इलाज जल्दी से न कराया जाए तो यह फैलकर अन्य रोग उत्पन्न करने का कारण बन सकता है। जब कब्ज का रोग काफी बिगड़ जाता है तो मनुष्य के मलद्वार पर दरारें तक पड़ जाती है और घाव बन जाते है। यदि इस रोग का इलाज जल्दी नहीं कराया गया तो यह रोग आगे चल कर बवासीर, मधुमेह तथा मिर्गी जैसे रोग को जन्म दे सकता हैं।

कभी-कभी छोटे बच्चे को होने वाले मल में गेंद जैसे गोल-गोल तथा छोटे-छोटे ढेले होते है। इस अवस्था को संस्थम्भी कब्ज कहते है तथा बच्चों को इस अवस्था में बहुत तेज दर्द होता है जिसके कारण वह अपने मल को रोक लेते है और उन्हे कब्ज की शिकायत हो जाती है। किसी नवजात शिशु को शायद ही कभी कब्ज होती है परन्तु उसके विकास के पहले वर्ष में उसे मलत्याग क्रिया सिखाई जाती है, जिससे वह मलत्याग क्रिया को प्रतिदिन होने वाली क्रिया के रूप में मानने लगता है।

कब्ज रोग का लक्षण

  • कब्ज रोग से पीड़ित रोगी को रोजाना मलत्याग नहीं होता है। कब्ज रोग से पीड़ित रोगी जब मल का त्याग करता है तो उसे बहुत अधिक परेशानी होती है। कभी-कभी मल में गांठे बनने लगती है। जब रोगी मलत्याग कर लेता है तो उसे थोड़ा हल्कापन महसूस होता है।
  • कब्ज रोग से पीड़ित रोगी के पेट में गैस अधिक बनती है। पीड़ित रोगी जब गैस छोड़ता है तो उसमें बहुत तेज बदबू आती है।
  • कब्ज रोग से पीड़ित रोगी की जीभ सफेद तथा मटमैली हो जाती है। कब्ज के रोग से पीड़ित व्यक्ति के मुंह से भी बदबू आती रहती है।
  • रोगी व्यक्ति के आंखों के नीचे कालापन हो जाता है तथा रोगी का जी मिचलता रहता है। इस रोग में रोगी को बहुत कम भूख लगती है।
  • कब्ज रोग से पीड़ित रोगी को कई प्रकार के और भी रोग हो जाते हैं जैसे - पेट में दर्द होना या सूजन हो जाना, सिर में दर्द, मुंहासे निकलना, मुंह के छाले, अम्लता, चिड़चिड़ापन, गठिया, आंखों का मोतियाबिन्द तथा उच्च रक्तचाप आदि।

कब्ज होने के कारण

खान-पीने में असावधानी -- कब्ज व्यक्तियों में गलत खान-पान के कारण उत्पन्न होता है। भोजन में ऐसे पदार्थों का प्रयोग करना जिन्हे पाचनतंत्र आसानी से नहीं पचा पाता जिससे आंत से मल पूर्ण रूप से साफ नहीं हो पाता और अन्दर ही सड़ने लगता है। अधिक मिर्च-मसालेदार तथा गरिष्ठ भोजन करने से भी कब्ज बनता है। अधिकतर व्यक्तियों में कब्ज के ऐसे लक्षण होते हैं जिसमें आंतों की अपने-आप क्रियाशीलता तथा कब्ज के रचनात्मक असामान्यताओं की कमियों को नज़रअंदाज नहीं किया जा सकता। वैज्ञानिकों द्वारा प्रतिदिन भोजन में प्रयोग किये जाने वाले पदार्थो की जांच से पता चला है कि व्यक्ति अपने भोजन में रेशेदार व तरल पदार्थो का प्रयोग नहीं करते, जिससे मिलने वाली प्रोटीन व विटामिन लोगों को नहीं मिल पाता और जिससे कब्ज उत्पन्न होता है। वैज्ञानिकों के अनुसार सभी व्यक्तियों को प्रतिदिन 10 से 12 ग्राम रेशेदार शाक-सब्जियां तथा 1 से 2 गिलास तरल पदार्थों का सेवन करना चाहिए। साथ ही खाने के बाद या किसी भी समय मल त्याग करने का अनुभव हो तो आलस्य के कारण उसे टालना नहीं चाहिए, बल्कि मलत्याग की इच्छा होने पर मल त्याग जरुर करें।

संरचनात्मक असामान्यताएं -- आंतों में उत्पन्न घाव आदि के कारण मल त्याग के मार्ग में रूकावट उत्पन्न होती है, जिससे मल त्यागते समय जोर लगाने से दर्द उत्पन्न होता है। दर्द के कारण मल का त्याग न करने से मल आंतों में सड़कर कब्ज पैदा करता है।

व्यवस्थाग्रस्त बीमारी -- आंत्रिक नली की तंत्रिकाओं की कुप्रणाली, पेशियों की खराबी, इंडोक्राइन विसंगतियों तथा विद्युत अपघट्य की असामान्यतायें आदि उत्पन्न होकर आंतों में कब्ज बनाते हैं।

  • मनुष्य की पाचन क्रिया मन्द पड़ना, कम मात्रा में मल आना, सुबह के समय में मल करने में आलस्य करना, कम मात्रा में भोजन करने से मल न बनना, भूख न लगना आदि कारणों से यह रोग मनुष्य को हो जाता है।
  • मल तथा पेशाब के वेग को रोकने, व्यायाम तथा शारीरिक श्रम न करने के कारण, शरीर में खून की कमी तथा अधिक सोने के कारण भी कब्ज रोग हो जाता है।
  • कम रेशायुक्त भोजन का सेवन करना, बासी भोजन का सेवन करने और समय पर भोजन न करने के कारण भी कब्ज रोग हो सकता है।
  • तली हुई चीजों का अधिक सेवन करने, गलत तरीके से खान-पान के कारण और मैदा तथा चोकर के बिना भोजन खाने के कारण कब्ज का रोग हो सकता है।
  • ठंडी चीजे जैसे- आइसक्रीम, पेस्ट्री, चाकलेट तथा ठंडे पेय पदार्थ खाने, कम पानी पीने के कारण और तरल पदार्थों का सेवन अधिक करने के कारण भी कब्ज रोग हो सकता है।
  • दर्दनाशक दवाइयों का अधिक सेवन और अधिक धूम्रपान तथा नशीली दवाइयों का प्रयोग करने के कारण भी कब्ज रोग हो सकता है।
  • बड़ी आंत में घाव या चोट के कारण यानि बड़ी आंत में कैंसर होना, थॉयरायड का कम बनना, कैल्सियम और पोटैशियम की कम मात्रा होना, मधुमेह के रोगियों में पाचन संबंधी समस्या होना, कंपवाद (पार्किंसन बीमारी) होना।



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