छान्दोग्य उपनिषद अध्याय-1 खण्ड-8

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  • इस खण्ड में बताया है कि तीन ऋषि उद्गीथ सम्बन्धी विद्या में पारंगत थे।
  • शालवान पुत्र शिलक, चिकितायन के पुत्र दालभ्य और जीवल के पुत्र प्रवाहण।
  • एक बार परस्पर चर्चा करते हुए शिलक ने पूछा—'साम की गति (आश्रय) क्या है?'

दालभ्य ने उत्तर दिया-'स्वर।'
शिलक- स्वर की गति क्या है?'
दालभ्य-'प्राण।'
शिलक-'प्राण की गति क्या है?'
दालभ्य-'अन्न।'
शिलक-'अन्न की गति क्या है?'
दालभ्य-'जल।'

  • इसी प्रकार प्रश्न पूछने पर जल की गति 'स्वर्ग, ' स्वर्ग की गति पूछने पर दालभ्य ने कहा कि स्वर्ग से बाहर साम को किसी अन्य आश्रम में नहीं रखा जा सकतां साम की स्वर्ग-रूप में ही स्तुति की गयी है, परन्तु शिलक इससे सन्तुष्ट नहीं हुआ।
  • तब दालभ्य के पूछने पर शिलक ने कहा-'यह लोक।' परन्तु शिलक के उत्तर से प्रवाहण सन्तुष्ट नहीं हुआ।
  • तब इस लोक की गति के बारे में प्रवाहण से प्रश्न पूछा गया।


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