क्रमांक
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शिलालेख
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अनुवाद
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1.
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सर्वत विजिततम्हि देवानं प्रियस पियदसिनो राञो
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देवों के प्रिय प्रियदर्शी राजा के विजित (राज्य) में सर्वत्र तथा
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2.
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एवमपि प्रचंतेसु यथा चोडा पाडा सतियपुतो केतलपुतो आ तंब-
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• ऐसे ही जो (उसके) अंत (प्रत्यंत) हैं यथा-चोड़ (चोल), पाँड्य, सतियपुत्र, केरलपुत्र (एवं) ताम्रपर्णी तक (और)
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3.
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पंणी अंतियोको योनराजा ये वा पि तस अंतियोकस सामीपं
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अतियोक नामक यवनराज, तथा जो भी अन्य इस अंतियोक के आसपास (समीप) राजा (हैं, उनके यहाँ) सर्वत्र
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4.
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राजनों सर्वत्र देवानंप्रियस प्रियदसिनो राञो द्वे चिकीछ कता
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देवों के प्रिय प्रियदर्शी राजा द्वारा दो (प्रकार की) चिकित्साएँ (व्यवस्थित) हुई-
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5.
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मनुस-चिकीछाच पशु-चिकिछा च [।] ओसुढानि च यानि मनुसोपगानि च।
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मनुष्य-चिकित्सा और पशु-चिकित्सा। मनुष्योपयोगी और
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6.
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पसोपगानि च यत नास्ति सर्वत्र हारापितानि च रोपापितानि च [।]
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पशु-उपयोगी जो औषधियाँ भी जहाँ-जहाँ नहीं हैं सर्वत्र लायी गयीं और रोपी गयीं।
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7.
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मूलानि च फलानि च यत यत नास्ति सर्वत्र हारापितानि च रोपापितानि च [।]
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इसी प्रकार मूल और फल जहाँ-जहाँ नहीं हैं सर्वत्र लाये गये और रोपे गये।
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8.
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पंथेसू कूपा च खानापिता ब्रछा च रोपापिता परिभोगाय पसु-मनुसानं [।]
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मार्गों (पथों) पर पशुओं (और) मनुष्यों के प्रतिभोगी (उपभोग) के लिए कूप (जलाशय) खुदवाये गये और वृक्ष रोपवाये गये।
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