मधुशाला
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- हरिवंश राय बच्चन हिन्दी काव्य प्रेमियों के सबसे अधिक प्रिय कवि रहे हैं, ये महानायक अमिताभ बच्चन जी के बाबूजी (पिता) है। उन्होनें बहुत सी कविताएं और रचनायें लिखीं जिनमें से मुख्य हैं मधुशाला, निशा निमंत्रण, सतरंगिनी, खादी के फूल, दो चट्टानें, आरती और अंगारे, मधुबाला, मधुकलश, प्रणय पत्रिका आदि। उन्होने हिन्दी कविता के इतिहास में एक बहुत ही जबरदस्त रचना लिख डाली जो आज भी कला प्रेमियों के दिलों मे राज करती हैं वह रचना है 'मधुशाला'। पहली बार सन 1935 में मधुशाला के प्रकाशन के साथ ही हरिवंश राय बच्चन का नाम शायद हिन्दी के सबसे लोकप्रिय कवियों में शुमार हो गया। उनकी 'मधुशाला' आज भी लोकप्रियता के सर्वोच्च शिखर पर विराजमान है। इतने प्रसिद्ध होने के बाद मधुशाला के साल दर साल नए संसकरण छपते गये। अब तक इसके अनेक संस्करणों की कई लाख प्रतियाँ करोड़ों पाठकों तक पहुँच चुकी हैं।
- महाकवि पंत ने कहा था - 'मधुशाला की मादकता अक्षय है।' 'मधुशाला' में हाला, प्याला, मधुबाला और मधुशाला के चार प्रतीकों के माध्यम से कवि ने अनेक क्रांतिकारी, मर्मस्पर्शी, रागात्मक एवं रहस्यपूर्ण भावों को वाणी दी। बच्चन जी ने बडे धैर्य और सच्चाई के साथ सीधी-सादी भाषा और शैली में सहज कल्पनाशीलता और जीवन्त बिम्बों से सजाकर सँवारकर अनूठे गीत हिन्दी को दिये। मधुशाला की खूबी है कि यह सिर्फ शराब-सौंदर्य की बातें नहीं करती बल्कि यह जीवन, सौंदर्य, उसकी सार्थकता और उसकी नश्वरता के बारे में भी बताती है। कुछ खास रूबाइयों को खुद मन्ना डे ने और अमिताभ ने स्वयं भी कई जगहों पर गाया। इसमें एक एक नपे तुले शब्दों का प्रयोग किया गया और वो भी इतने इत्मीनान से की बस, सुनने वाला सुनता ही रह जाता हैं, चाहे वो पीने वाला हो या ना भी हो, हां बस कविता की थोडी सी समझ होना जरूरी हैं।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
बाहरी कड़ियाँ
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