श्रेणी:भक्ति साहित्य
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- काटत बढ़हिं सीस समुदाई
- काटत सिर होइहि बिकल
- काटतहीं पुनि भए नबीने
- काटे सिर नभ मारग धावहिं
- काटे सिर भुज बार बहु
- काटें भुजा सोह खल कैसा
- काटेहिं पइ कदरी फरइ
- कादर भयंकर रुधिर सरिता
- कान नाक बिनु भगिनि निहारी
- कान मूदि कर रद गहि जीहा
- कानन्हि कनक फूल छबि देहीं
- काने खोरे कूबरे कुटिल
- काम कला कछु मुनिहि न ब्यापी
- काम कुसुम धनु सायक लीन्हे
- काम कोटि छबि स्याम सरीरा
- काम कोह कलिमल करिगन के
- काम कोह मद मान न मोहा
- काम कोह मद मोह नसावन
- काम क्रोध मद मत्सर भेका
- काम क्रोध मद लोभ
- काम क्रोध मद लोभ परायन
- काम क्रोध मद लोभ रत
- काम क्रोध लोभादि मद
- काम चरित नारद सब भाषे
- कामद भे गिरि राम प्रसादा
- कामरूप खल जिनस अनेका
- कामरूप जानहिं सब माया
- कामरूप सुंदर तन धारी
- कामिहि नारि पिआरि जिमि
- कारन कवन देह यह पाई
- कारन कवन भरतु बन जाहीं
- कारन कवन श्राप मुनि दीन्हा
- कारन तें कारजु कठिन
- काल कराल ब्याल खगराजहि
- काल कर्म गुन दोष सुभाऊ
- काल कवलु होइहि छन माहीं
- काल कोटि सत सरिस
- काल दंड गहि काहु न मारा
- काल धर्म नहिं ब्यापहिं ताही
- काल पाइ मुनि सुनु सोइ राजा
- काल बिबस पति कहा न माना
- कालकेतु निसिचर तहँ आवा
- कालरूप खल बन
- कालरूप तिन्ह कहँ मैं भ्राता
- कासीं मरत जंतु अवलोकी
- काह करौं सखि सूध सुभाऊ
- काह न पावकु जारि
- काहुँ न लखा सो चरित बिसेषा
- काहुहि दोसु देहु जनि ताता
- काहूँ बैठन कहा न ओही
- काहे ते हरि मोहिं बिसारो -तुलसीदास
- किंनर नाग सिद्ध गंधर्बा
- किंनर सिद्ध मनुज सुर नागा
- किए अमित उपदेस
- किए भृंग बहुरंग बिहंगा
- किए सुखी कहि बानी
- किएँ जाहिं छाया जलद
- किएहुँ कुबेषु साधु सनमानू
- किमि सहि जात अनख तोहि पाहीं
- कियउ निषादनाथु अगुआईं
- की तजि मान अनुज
- की तुम्ह हरि दासन्ह महँ कोई
- की भइ भेंट कि फिरि
- की मैनाक कि खगपति होई
- कीजिअ गुर आयसु अवसि
- कीट मनोरथ दारु सरीरा
- कीन्ह अनुग्रह अमित
- कीन्ह कवन पन कहहु कृपाला
- कीन्ह दंडवत तीनिउँ भाई
- कीन्ह निमज्जनु तीरथराजा
- कीन्ह निषाद दंडवत तेही
- कीन्ह प्रनामु चरन धरि माथा
- कीन्ह बिबिध तप तीनिहुँ भाई
- कीन्ह मोह बस द्रोह
- कीन्ह राम मोहि बिगत बिमोहा
- कीन्ह सप्रेम प्रनामु बहोरी
- कीन्हि प्रस्न जेहि भाँति भवानी
- कीन्हि प्रीति कछु बीच न राखा
- कीन्हि मातु मिस काल कुचाली
- कीन्हि सौच सब सहज
- कीन्हें प्राकृत जन गुन गाना
- कीन्हेहु प्रभु बिरोध तेहि देवक
- कीरति बिधु तुम्ह कीन्ह अनूपा
- कीरति भनिति भूति भलि सोई
- कीरति सरित छहूँ रितु रूरी
- कुंजर मनि कंठा कलित
- कुंडल मकर मुकुट सिर भ्राजा
- कुंद इंदु सम देह
- कुंद कली दाड़िम दामिनी
- कुंभकरन अस बंधु मम
- कुंभकरन कपि फौज बिडारी
- कुंभकरन मन दीख बिचारी
- कुंभकरन रन रंग बिरुद्धा
- कुंभकरन रावन द्वौ भाई
- कुअँरि मनोहर बिजय
- कुअँरु कुअँरि कल भावँरि देहीं
- कुपथ कुतरक कुचालि
- कुपथ माग रुज ब्याकुल रोगी
- कुबरिहि रानि प्रानप्रिय जानी
- कुबरीं करि कबुली कैकेई
- कुबलय बिपिन कुंत बन सरिसा
- कुमतिहि कसि कुबेषता फाबी
- कुमारव्यास
- कुमुख अकंपन कुलिसरद
- कुमुदबंधु कर निंदक हाँसा
- कुल कपाट कर कुसल करम के
- कुल कलंकु जेहिं जनमेउ मोही
- कुल रीति प्रीति समेत
- कुल समेत रिपु मूल बहाई
- कुलवंति निकारहिं नारि सती
- कुलशेखर
- कुलिस कठोर निठुर सोइ छाती
- कुलिस कठोर सुनत कटु बानी
- कुलिसहु चाहि कठोर अति
- कुस कंटक काँकरीं कुराईं
- कुस कंटक मग काँकर नाना
- कुस साँथरी निहारि सुहाई
- कुसल प्रस्न करि आसन दीन्हे
- कुसल प्रस्न कहि बारहिं बारा
- कुसल प्रानप्रिय बंधु
- कुसल मूल पद पंकज पेखी
- कुहू कुहू कोकिल धुनि करहीं
- कूजत पिक मानहुँ गज माते
- कूजहिं खग मृग नाना बृंदा
- कूबर टूटेउ फूट कपारू
- कृतकृत्य बिभो सब बानर ए
- कृतजुग त्रेताँ द्वापर
- कृतजुग सब जोगी बिग्यानी
- कृत्तिवास रामायण
- कृपा अनुग्रहु अंगु अघाई
- कृपा करिअ पुर धारिअ पाऊ
- कृपा कोपु बधु बँधब गोसाई
- कृपाँ भलाईं आपनी
- कृपादृष्टि करि बृष्टि
- कृपादृष्टि प्रभु ताहि बिलोका
- कृपासिंधु जब मंदिर गए
- कृपासिंधु प्रभु होहिं दुखारी
- कृपासिंधु बोले मुसुकाई
- कृपासिंधु मुनि दरसन तोरें
- कृपासिंधु लखि लोग दुखारे
- कृपासिंधु सनमानि सुबानी
- कृष्ण गीतावली -तुलसीदास
- केकि कंठ दुति स्यामल अंगा
- केवट कीन्हि बहुत सेवकाई
- केशव,कहि न जाइ -तुलसीदास
- केहरि कंधर चारु जनेऊ
- केहरि कंधर बाहु बिसाला
- केहरि कटि पट पीत धर
- केहि अवराधहु का तुम्ह चहहू
- केहि बिधि कहौं जाहु अब स्वामी
- केहि हेतु रानि रिसानि
- कै तापस तिय कानन जोगू
- कैकइ जठर जनमि जग माहीं
- कैकइ सुअन जोगु जग जोई
- कैकयनंदिनि मंदमति
- कैकयसुता सुनत कटु बानी
- कैकयसुता सुमित्रा दोऊ
- कैकेई कहँ नृप सो दयऊ
- कैकेई भव तनु अनुरागे
- कैकेई सुअ कुटिलमति राम
- कैकेई हरषित एहि भाँती
- को कहि सकइ प्रयाग प्रभाऊ
- को जान केहि आनंद बस
- को तुम्ह कस बन फिरहु अकेलें
- को तुम्ह तात कहाँ ते आए
- को तुम्ह स्यामल गौर सरीरा
- को प्रभु सँग मोहि चितवनिहारा
- को बड़ छोट कहत अपराधू
- को साहिब सेवकहि नेवाजी
- को हम कहाँ बिसरि तन गए
- कोउ कह ए भूपति पहिचाने
- कोउ कह जब बिधि रति मुख कीन्हा
- कोउ कह जिअत धरहु द्वौ भाई
- कोउ कह जौं भल अहइ बिधाता
- कोउ कह दूषनु रानिहि नाहिन
- कोउ कह रहन कहिअ नहिं काहू
- कोउ किछु कहई न कोउ किछु पूँछा
- कोउ बिश्राम कि पाव
- कोउ ब्रह्म निर्गुन ध्याव
- कोउ मुख हीन बिपुल मुख काहू
- कोउ सर्बग्य धर्मरत कोई
- कोक तिलोक प्रीति अति करिही
- कोट कँगूरन्हि सोहहिं कैसे
- कोटि कोटि गिरि सिखर प्रहारा
- कोटि बिप्र बध लागहिं जाहू
- कोटि बिरक्त मध्य श्रुति कहई
- कोटि मनोज लजावनिहारे
- कोटिन्ह काँवरि चले कहारा
- कोटिन्ह गहि सरीर सन मर्दा
- कोटिन्ह चक्र त्रिसूल पबारै
- कोटिन्ह चतुरानन गौरीसा
- कोटिन्ह बाजिमेध प्रभु कीन्हे
- कोटिन्ह मेघनाद सम
- कोटिहुँ बदन नहिं बनै
- कोदंड कठिन चढ़ाइ सिर
- कोप समाजु साजि सबु सोई
- कोपभवन सुनि सकुचेउ राऊ
- कोपि कपिन्ह दुर्घट गढ़ु घेरा
- कोपि कूदि द्वौ धरेसि बहोरी
- कोपि महीधर लेइ उपारी