श्रेणी:भक्ति साहित्य
भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
उपश्रेणियाँ
इस श्रेणी की कुल 3 में से 3 उपश्रेणियाँ निम्नलिखित हैं।
"भक्ति साहित्य" श्रेणी में पृष्ठ
इस श्रेणी की कुल 6,343 में से 200 पृष्ठ निम्नलिखित हैं।
(पिछला पृष्ठ) (अगला पृष्ठ)ज
- जद्यपि नीति निपुन नरनाहू
- जद्यपि प्रगट न कहेउ भवानी
- जद्यपि प्रभु के नाम अनेका
- जद्यपि प्रभु जानत सब बाता
- जद्यपि भगिनी कीन्हि कुरूपा
- जद्यपि मनुज दनुज कुल घालक
- जद्यपि मैं अनभल अपराधी
- जद्यपि लघुता राम
- जद्यपि सब बैकुंठ बखाना
- जद्यपि सम नहिं राग न रोषू
- जन कहुँ कछु अदेय नहिं मोरें
- जन रंजन भंजन सोक भयं
- जनक कीन्ह कौसिकहि प्रनामा
- जनक पाटमहिषी जग जानी
- जनक बचन सुनि सब नर नारी
- जनक राज गुन सीलु बड़ाई
- जनक राम गुर आयसु पाई
- जनक सनेहु सीलु करतूती
- जनक सुकृत मूरति बैदेही
- जनकसुतहि समुझाइ करि
- जनकसुता कहुँ खोजहु जाई
- जनकसुता जग जननि जानकी
- जनकसुता तब उर धरि धीरा
- जनकसुता रघुनाथहि दीजे
- जनकसुता समेत प्रभु
- जनकसुता समेत रघुराई
- जननिहि बहुरि मिलि चली
- जननिहि बिकल बिलोकि भवानी
- जनम एक दुइ कहउँ बखानी
- जनम मरन सब दुख सुख भोगा
- जनम रंक जनु पारस पावा
- जनमत मरत दुसह दुख होई
- जनमीं प्रथम दच्छ गृह जाई
- जनमु सिंधु पुनि बंधु
- जनमे एक संग सब भाई
- जनहि मोर बल निज बल ताही
- जनि आचरजु करहु मन माहीं
- जनि जल्पना करि सुजसु नासहि
- जनि जल्पसि जड़ जंतु
- जनि डरपहु मुनि सिद्ध सुरेसा
- जनि लेहु मातु कलंकु
- जनु उछाह सब सहज सुहाए
- जनु कठोरपनु धरें सरीरू
- जनु धेनु बालक बच्छ तजि
- जनु बाजि बेषु बनाइ
- जनु राहु केतु अनेक नभ
- जन्म कोटि लगि रगर हमारी
- जन्म जन्म मुनि जतनु कराहीं
- जन्मभूमि मम पुरी सुहावनि
- जप जोग बिरागा तप
- जप तप नियम जोग निज धर्मा
- जप तप ब्रत दम संजम नेमा
- जप तप मख सम दम ब्रत दाना
- जपहिं नामु जन आरत भारी
- जपहु जाइ संकर सत नामा
- जब अति भयउ बिरह उर दाहू
- जब काहू कै देखहिं बिपती
- जब कीन्ह तेहिं पाषंड
- जब जदुबंस कृष्न अवतारा
- जब जब रामु अवध सुधि करहीं
- जब ते तुम्ह सीता हरि आनी
- जब ते राम कीन्ह तहँ बासा
- जब ते राम प्रताप खगेसा
- जब तें आइ रहे रघुनायकु
- जब तें उमा सैल गृह जाईं
- जब तें प्रभु पद पदुम निहारे
- जब तें रामु ब्याहि घर आए
- जब तें सतीं जाइ तनु त्यागा
- जब तेहिं कीन्हि राम कै निंदा
- जब न लेउँ मैं तब बिधि मोही
- जब प्रतापरबि भयउ
- जब मैं कुमति कुमत जियँ ठयऊ
- जब रघुनाथ कीन्हि रन क्रीड़ा
- जब रघुनाथ समर रिपु जीते
- जब रघुबीर दीन्हि अनुसासन
- जब लगि आवौं सीतहि देखी
- जब लगि जिऔं कहउँ कर जोरी
- जब सिय कानन देखि डेराई
- जब सो प्रभंजन उर गृहँ जाई
- जब हरि माया दूरि निवारी
- जबहिं जाम जुग जामिनि बीती
- जबहिं राम सब कहा बखानी
- जबहिं संभु कैलासहिं आए
- जम गन मुहँ मसि जग जमुना सी
- जमिहहिं पंख करसि जनि चिंता
- जमुन तीर तेहि दिन करि बासू
- जमुना उतरि पार सबु भयऊ
- जय कृपा कंद मुकुंद
- जय जय अबिनासी सब
- जय जय गिरिबरराज किसोरी
- जय जय जय रघुबंस
- जय जय सुरनायक जन
- जय दूषनारि खरारि
- जय धुनि बंदी बेद
- जय निर्गुन जय जय गुन सागर
- जय रघुबंस बनज बन भानू
- जय राम रमारमनं समनं
- जय राम रूप अनूप निर्गुन
- जय राम सदा सुख धाम हरे
- जय राम सोभा धाम
- जय सगुन निर्गुन रूप रूप
- जय सच्चिदानंद जग पावन
- जय हरन धरनी भार
- जयति राम जय लछिमन
- जरउ सो संपति सदन
- जरठ भयउँ अब कहइ रिछेसा
- जरत बिलोकेउँ जबहि कपाला
- जरत सकल सुर बृंद
- जरहिं पतंग मोह बस
- जरहिं बिषम जर लेहिं उसासा
- जरा मरन दुख रहित
- जलज बिलोचन स्यामल गातहि
- जलदु जनम भरि सुरति बिसारउ
- जलनिधि रघुपति दूत बिचारी
- जलु पय सरिस बिकाइ
- जस कछु बुधि बिबेक बल मेरें
- जस जस सुरसा बदनु बढ़ावा
- जस दूलहु तसि बनी बराता
- जस मानस जेहि बिधि
- जसि बिबाह कै बिधि श्रुति गाई
- जसि रघुबीर ब्याह बिधि बरनी
- जसु तुम्हार मानस बिमल
- जहँ असि दसा जड़न्ह कै बरनी
- जहँ कहुँ फिरत निसाचर पावहिं
- जहँ जप जग्य जोग मुनि करहीं
- जहँ जस मुनिबर आयसु दीन्हा
- जहँ जहँ आवत बसे बराती
- जहँ जहँ कृपासिंधु बन
- जहँ जहँ जाहिं देव रघुराया
- जहँ जहँ तीरथ रहे सुहाए
- जहँ जहँ राम चरन चलि जाहीं
- जहँ जाहिं मर्कट भागि
- जहँ तहँ गईं सकल तब
- जहँ तहँ जूथ जूथ मिलि भामिनि
- जहँ तहँ थकित करि कीस
- जहँ तहँ धावन पठइ पुनि
- जहँ तहँ नर रघुपति गुन गावहिं
- जहँ तहँ नारि निछावरि करहीं
- जहँ तहँ भागि चले कपि रीछा
- जहँ तहँ भूधर बिटप उपारी
- जहँ तहँ लोगन्ह डेरा कीन्हा
- जहँ बैठें देखहिं सब नारी
- जहँ लगि जगत सनेह सगाई
- जहँ लगि रहे अपर मुनि बृंदा
- जहँ लगि साधन बेद बखानी
- जहँ लगिनाथ नेह अरु नाते
- जहँ लगिबेद कही बिधि करनी
- जहँ लजि कहे पुरान
- जहँ सिंसुपा पुनीत तर
- जहँ सिय रामु लखनु निसि सोए
- जहाँ जनक गुरु गति मति भोरी
- जहाँ बैठि मुनिगन सहित
- जा दिन तें मुनि गए लवाई
- जाइ कपिन्ह सो देखा बैसा
- जाइ दीख रघुबंसमनि
- जाइ देखि आवहु नगरु
- जाइ न बरनि मनोहरताई
- जाइ निकट पहिचानि तरु
- जाइ पुकारे ते सब
- जाइ मुनिन्ह हिमवंतु पठाए
- जाइ सुनहु तहँ हरि गुन भूरी
- जाउँ राम पहिं आयसु देहू
- जाकर नाम सुनत सुभ होई
- जाकी सहज स्वास श्रुति चारी
- जाके बल लवलेस तें
- जाके हृदयँ भगति जसि प्रीती
- जाकें डर अति काल डेराई
- जाकें बल बिरंचि हरि ईसा
- जागइ मनोभव मुएहुँ
- जागबलिक जो कथा सुहाई
- जागा निसिचर देखिअ कैसा
- जागिये कृपानिधान जानराय, रामचन्द्र -तुलसीदास
- जागे सकल लोग भएँ भोरू
- जाचक जन जाचहिं जोइ जोई
- जाचक लिए हँकारि दीन्हि
- जात पवनसुत देवन्ह देखा
- जातरूप मनि रचित अटारीं
- जाति पाँति कुल धर्म बड़ाई
- जाति पाँति धनु धरमु बड़ाई
- जाति हीन अघ जन्म महि
- जाति हुती सखी गोहन में -रहीम
- जातुधान अंगद पन देखी
- जातुधान बरूथ बल भंजन
- जान आदिकबि नाम प्रतापू
- जानउँ मैं तुम्हारि प्रभुताई
- जानउँ सदा भरत कुलदीपा
- जानकी जीवन की बलि जैहों -तुलसीदास
- जानकी लघु भगिनी सकल
- जानत परम दुर्ग अति लंका
- जानतहूँ अस प्रभु परिहरहीं
- जानतहूँ अस स्वामि बिसारी
- जानतहूँ पूछिअ कस स्वामी
- जानहिं तीनि काल निज ग्याना
- जानहिं दिग्गज उर कठिनाई
- जानहिं यह चरित्र मुनि ग्यानी
- जानहिं सानुज रामहि मारी
- जानहु तात तरनि कुल रीती
- जानहु मुनि तुम्ह मोर सुभाऊ
- जानहुँ रामु कुटिल करि मोही
- जाना चहहिं गूढ़ गति जेऊ