श्रेणी:सगुण भक्ति
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- इन्ह कै दसा न कहेउँ बखानी
- इन्ह कै प्रीति परसपर पावनि
- इन्ह सम कोउ न भयउ जग माहीं
- इन्हहि देखि बिधि मनु अनुरागा
- इन्हहि बिलोकत अति अनुरागा
- इरिषा परुषाच्छर लोलुपता
- इष्टदेव मम बालक रामा
- इहाँ अर्धनिसि रावनु जागा
- इहाँ उहाँ दुइ बालक देखा
- इहाँ कुम्हड़बतिया कोउ नाहीं
- इहाँ देवतन्ह अस्तुति कीन्ही
- इहाँ न पच्छपात कछु राखउँ
- इहाँ पवनसुत हृदयँ बिचारा
- इहाँ प्रात जागे रघुराई
- इहाँ बिचारहिं कपि मन माहीं
- इहाँ बिभीषन मंत्र बिचारा
- इहाँ बिभीषन सब सुधि पाई
- इहाँ भानुकुल कमल दिवाकर
- इहाँ राम अंगदहि बोलावा
- इहाँ संभु अस मन अनुमाना
- इहाँ साप बस आवत नाहीं
- इहाँ सुबेल सैल रघुबीरा
- इहाँ सेतु बाँध्यों अरु
- इहाँ हरी निसिचर बैदेही
ई
उ
- उग्र बचन सुनि सकल डेराने
- उघरहिं बिमल बिलोचन ही के
- उज्ज्वलनीलमणि
- उठि कर जोरि रजायसु मागा
- उठि बहोरि कीन्हिसि बहु माया
- उठी रेनु रबि गयउ छपाई
- उठे लखनु निसि बिगत
- उठे लखनु प्रभु सोवत जानी
- उत पचार दसकंधर
- उत रावन इत राम दोहाई
- उतर देत छोड़उँ बिनु मारें
- उतरि कहेउ प्रभु पुष्पकहि
- उतरि ठाढ़ भए सुरसरि रेता
- उतरु देइ सुनि स्वामि रजाई
- उतरु न आव बिकल बैदेही
- उतरु न आवत प्रेम
- उतरु न देइ दुसह रिस रूखी
- उत्तम कुल पुलस्ति कर नाती
- उत्तर दिसि सरजू बह
- उदउ करहु जनि रबि रघुकुल गुर
- उदर माझ सुनु अंडज राया
- उदासीन अरि मीत हित
- उदासीन नित रहिअ गोसाईं
- उदित अगस्ति पंथ जल सोषा
- उदित उदयगिरि मंच पर
- उपजइ राम चरन बिस्वासा
- उपजहिं एक संग जग माहीं
- उपजा ग्यान बचन तब बोला
- उपजे जदपि पुलस्त्यकुल
- उपजेउ सिव पद कमल सनेहू
- उपदेशामृत
- उपदेसु यहु जेहिं तात
- उपबरहन बर बरनि न जाहीं
- उपमा न कोउ कह दास
- उपरोहित जेवनार बनाई
- उपरोहितहि कहेउ नरनाहा
- उपरोहितहि भवन पहुँचाई
- उभय घरी अस कौतुक भयऊ
- उभय बीच श्री सोहइ कैसी
- उभय भाँति तेहि आनहु
- उभय भाँति देखा निज मरना
- उमा अवधबासी नर
- उमा करत रघुपति नरलीला
- उमा कहउँ मैं अनुभव अपना
- उमा काल मर जाकीं ईछा
- उमा जे राम चरन रत
- उमा जोग जप दान तप
- उमा दारु जोषित की नाईं
- उमा न कछु कपि कै अधिकाई
- उमा बिभीषनु रावनहि
- उमा महेस बिबाह बराती
- उमा रमा ब्रह्मादि बंदिता
- उमा राम की भृकुटि बिलासा
- उमा राम गुन गूढ़
- उमा राम सम हत जग माहीं
- उमा राम सुभाउ जेहिं जाना
- उमा संत कइ इहइ बड़ाई
- उयउ अरुन अवलोकहु ताता
- उर अनुभवति न कहि सक सोऊ
- उर अभिलाष निरंतर होई
- उर आनत तुम्ह पर कुटिलाई
- उर उमगेउ अंबुधि अनुरागू
- उर दहेउ कहेउ कि धरहु
- उर धरि उमा प्रानपति चरना
- उर धरि रामहि सीय समेता
- उर मनि माल कंबु कल गीवा
- उर माझ गदा प्रहार घोर
- उर लात घात प्रचंड
- उर सीस भुज कर चरन
- उहाँ दसानन जागि करि
- उहाँ दसानन सचिव हँकारे
- उहाँ निसाचर रहहिं ससंका
- उहाँ राम लछिमनहि निहारी
- उहाँ रामु रजनी अवसेषा
- उहाँ सकोपि दसानन सब
ए
- ए कपि सब सुग्रीव समाना
- ए दारिका परिचारिका
- ए दोऊ दसरथ के ढोटा
- ए प्रिय सबहि जहाँ लगि प्रानी
- ए महि परहिं डासि कुस पाता
- ए सब राम भगति के बाधक
- ए सब लच्छन बसहिं जासु उर
- एक अनीह अरूप अनामा
- एक एक ब्रह्मांड महुँ
- एक एक सन मरमु न कहहीं
- एक एक सों मर्दहिं
- एक कलप एहि हेतु
- एक कलप सुर देखि दुखारे
- एक कलस भरि आनहिं पानी
- एक कहत मोहि सकुच
- एक कहहिं ऐसिउ सौंघाई
- एक कहहिं भल भूपति कीन्हा
- एक कहहिं हम बहुत न जानहिं
- एक कीन्हि नहिं भरत भलाई
- एक जनम कर कारन एहा
- एक दुष्ट अतिसय दुखरूपा
- एक देखि बट छाँह
- एक नखन्हि रिपु बपुष बिदारी
- एक निमेष बरष सम जाई
- एक पिता के बिपुल कुमारा
- एक बहोरि सहसभुज देखा
- एक बात नहिं मोहि सोहानी
- एक बान काटी सब माया
- एक बार अतिसय सब
- एक बार आवत सिव संगा
- एक बार करतल बर बीना
- एक बार कालउ किन होऊ
- एक बार गुर लीन्ह बोलाई
- एक बार चुनि कुसुम सुहाए
- एक बार जननीं अन्हवाए
- एक बार त्रेता जुग माहीं
- एक बार प्रभु सुख आसीना
- एक बार बसिष्ट मुनि आए
- एक बार भरि मकर नहाए
- एक बार भूपति मन माहीं
- एक बार रघुनाथ बोलाए
- एक बार हर मंदिर
- एक बिधातहि दूषनु देहीं
- एक ब्याधि बस नर
- एक राम अवधेस कुमारा
- एक रूप तुम्ह भ्राता दोऊ
- एक लालसा बड़ि उर माहीं
- एक सखी सिय संगु बिहाई
- एक समय सब सहित समाजा
- एक सराहहिं भरत सनेहू
- एकउ जुगुति न मन ठहरानी
- एकटक सब सोहहिं चहुँ ओरा
- एकहि एक सकइ नहिं जीती
- एकहिं बार आस सब पूजी
- एकु एकु निसिचर गहि
- एकु छत्रु एकु मुकुटमनि
- एकु मनोरथु बड़ मन माहीं
- एकु मैं मंद मोहबस
- एतना कपिन्ह सुना जब काना
- एतना करहु तात तुम्ह जाई
- एतना कहत नीति रस भूला
- एतना मन आनत खगराया
- एतनेइ कहेहु भरत सन जाई
- एवमस्तु करि रमानिवासा
- एवमस्तु कहि कपट मुनि
- एवमस्तु कहि रघुकुलनायक
- एवमस्तु तुम्ह बड़ तप कीन्हा
- एवमस्तु मुनि सन कहेउ
- एहि अवसर चाहिअ परम
- एहि अवसर मंगलु परम
- एहि कर फल पुनि बिषय बिरागा
- एहि कर होइ परम कल्याना
- एहि के हृदयँ बस जानकी
- एहि तन कर फल बिषय न भाई
- एहि ते अधिक धरमु नहिं दूजा
- एहि तें कवन ब्यथा बलवाना
- एहि दुख दाहँ दहइ दिन छाती
- एहि प्रकार गत बासर सोऊ
- एहि प्रकार बल मनहि देखाई
- एहि प्रकार भरि माघ नहाहीं
- एहि बधि बेगि सुभट सब धावहु
- एहि बिधि अमिति जुगुति मन गुनऊँ
- एहि बिधि आइ बिलोकी बेनी
- एहि बिधि उपजै लच्छि
- एहि बिधि कथा कहहिं बहु भाँती
- एहि बिधि करत पंथ पछितावा
- एहि बिधि करत प्रलाप कलापा
- एहि बिधि कहि कहि बचन
- एहि बिधि गयउ कालु बहु बीती
- एहि बिधि गर्भसहित सब नारी
- एहि बिधि जग हरि आश्रित रहई
- एहि बिधि जनम करम हरि केरे
- एहि बिधि जल्पत भयउ बिहाना
- एहि बिधि जाइ कृपानिधि
- एहि बिधि दाह क्रिया सब कीन्ही