भूतयज्ञ

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
रविन्द्र प्रसाद (वार्ता | योगदान) द्वारा परिवर्तित 08:58, 21 जनवरी 2012 का अवतरण (''''भूतयज्ञ''' का अर्थ है कि, अपने अन्न में से दूसरे प्राण...' के साथ नया पन्ना बनाया)
(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ:नेविगेशन, खोजें

भूतयज्ञ का अर्थ है कि, अपने अन्न में से दूसरे प्राणियों के कल्याण के लिए कुछ भाग अर्पित करना। मनुस्मृति[1] में कहा गया है कि, कुत्ता, चींटी, कौआ, पतित, चांडाल, कुष्टी आदि के लिए भोजन निकालकर अलग रख देना चाहिए। ऐसा करने से मानव को मोक्ष की प्राप्ति होती है।

  • शास्त्रों में गाय को ग्रास देना भी बड़ा पुण्यकारी माना गया है।
  • श्राद्ध की ख़ास परंपराओं में ही 'भूतयज्ञ' भी प्रमुख है।
  • अलग-अलग योनियों को प्राप्त आत्माओं की तृप्ति के लिए भूतयज्ञ का बड़ा महत्व है, जिसमें 'पंचबलि कर्म' किया जाता है।
  • पंचबलि में भोजन के पाँच अलग-अलग हिस्से गाय, कुक्कुर यानी कुत्ता, कौआ, देवता व चींटियों के निमित्त निकालकर समर्पित किए जाते हैं।
  • श्राद्धपक्ष में भी इसी पंरपरा के मुताबिक श्वान यानी कुत्ते के लिए भोजन का ग्रास निकाला जाता है।


पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. मनुस्मृति 3/92

संबंधित लेख