मुम्बई का इतिहास

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चर्चगेट भवन, मुम्बई
Churchgate Building, Mumbai

मछुआरों की मूल जनजाति, कोली यहाँ के आरम्भिक ज्ञात निवासी थे, हालाँकि वृहद मुम्बई के कान्दीवली में पाए गए पुरापाषाण काल के पत्थर के औज़ार यहाँ पाषाण काल के दौरान मानव बस्ती की ओर संकेत करते हैं। प्राचीन यूनानी खगोलशास्त्री व भूगोलविज्ञानी टालेमी के समय में यह क्षेत्र हेप्टेनिशिया के रूप में जाना जाता था और यह 1000 वर्ष ई. पू. में फ़ारस व मिस्र के साथ समुद्री व्यापार का प्रमुख केन्द्र था। तीसरी शताब्दी ई. पू. में यह अशोक के साम्राज्य का हिस्सा था और छठी से आठवीं शताब्दी में यहाँ चालुक्यों का शासन रहा, जिन्होंने अपनी छाप घरपुरी (एलीफ़ेन्टा द्वीप) पर छोड़ी। मालाबार पाइन्ट पर बना वाकेश्वर मन्दिर सम्भवतः कोंकण तट के शिलाहर प्रमुखों के शासन (9वीं से 13वीं शताब्दी) के दौरान निर्मित किया गया था। दोगिरि के यादवों (1187-1318) के समय में इस द्वीप (जो बाम्बे द्वीप बना) पर महिकावती (माहिम) बस्ती की स्थापना हुई, जो 1924 में हिन्दुस्तान के ख़िलजी वंश के आक्रमणों के जवाब में बनाई गई। इन्हीं के वंशज वर्तमान मुम्बई में पाए जाते हैं और बहुत से स्थानों के नाम आज भी उसी युग से हैं। 1348 में आक्रमणकारी मुस्लिम सेनाओं ने इस द्वीप को जीत लिया और यह गुजरात राज्य का हिस्सा बन गया। माहिम को जीतने की पुर्तग़ाली कोशिश 1507 में असफल रही, लेकिन 1534 में गुजरात के शासक सुल्तान बहादुरशाह ने यह द्वीप पुर्तग़ालियों को सौंप दिया। 1661 में किंग चार्ल्स द्वितीय व पुर्तग़ाल के राजा की बहन कैथरीन आफ़ ब्रैगेंज़ा के विवाह के बाद यह ब्रिटिश नियंत्रण में आ गया। राजा ने इसे 1668 में ईस्ट इंडिया कम्पनी को सत्तांतरित कर दिया। शुरुआत में कलकत्ता (वर्तमान कोलकाता) व मद्रास (वर्तमान चेन्नई) की तुलना में बंबई कम्पनी की बहुत बड़ी सम्पत्ति ने होकर केवल पश्चिमी तट पर कम्पनी की पैर जमाए रखने में सहायता करता था।

मुख्य भूमि पर मुग़ल, मराठा व गुजरात के प्रादेशिक शासक अधिक शक्तिशाली थे। यहाँ तक कि ब्रिटिश नौसेना का मुग़लों, मराठों, पुर्तग़ालियों व डचों से कोई मुक़ाबला नहीं था। 19वीं शताब्दी के आरम्भ तक बाहरी घटनाओं ने शहर के तेज़ विकास में सहायता की। दिल्ली में मुग़ल शक्ति के पतन, मुग़ल-मराठा प्रतिद्वन्द्विता और गुजरात में मौजूद अस्थिरता ने कारीगरों व व्यापारियों को शरण लेने के लिए इस द्वीप पर जाने को मज़बूर किया और इस प्रकार मुम्बई का विकास शुरू हुआ। मराठा शक्ति के विनाश के साथ मुख्यभूमि से व्यापार व संचार स्थापित हुआ और उसका यूरोप तक विस्तार किया गया, जिससे समृद्धी की शुरुआत हुई। 1857 में पहली कताई व बुनाई मिल स्थापित की गई और 1860 तक मुम्बई भारत का विशालतम सूती वस्त्र बाज़ार बन गया। अमेरिकी नागरिक युद्ध (1861-65) और ब्रिटेन को किए जा रहे कपास की आपूर्ति रुक जाने से मुम्बई के व्यापार में उछाल आया। लेकिन नागरिक युद्ध के समाप्त होने के बाद कपास के दामों में भारी कमी आई तथा व्यापार में तेज़ी ख़त्म हो गई। तब तक हालाँकि अतःक्षेत्र खोले जा चुके थे और मुम्बई आयात व्यापार का मज़बूत केन्द्र बन चुका था।

1869 में स्वेज़ नहर के खुलने के साथ ही मुम्बई में समृद्धि आई, हालाँकि जनसंख्या बढ़ने के साथ-साथ झुग्गियों और अस्वच्छ स्थितियों में भी कई गुना वृद्धि हुई। 1896 में यहाँ प्लेग का प्रकोप फैला और नए क्षेत्रों में बस्तियाँ बसाने व कामगार वर्ग के लिए आवास की व्यवस्था करने के लिए सिटी इंप्रूवमेंट ट्रस्ट की स्थापना की गई। 525 हेक्टेयर क्षेत्र को घेरने के लिए तटबन्ध बनाने की महत्त्वाकांक्षी योजना का 1918 में प्रस्ताव किया गया, लेकिन द्वितीय विश्व युद्ध के बाद भारत में अपने क़िस्म की पहली दोतरफ़ा सड़क नेताजी सुभाष मार्ग, जो नरीमन प्वाइंट से मालाबार प्वाइंट तक है, के बन जाने तक यह पूरा नहीं हो सका। युद्ध के बाद के वर्षों में उपनगरीय क्षेत्रों में आवासीय इकाइयों के विकास की शुरुआत हुई और नगर निगम के माध्यम से मुम्बई नगर के प्रशासन को वृहत मुम्बई के उपनगरों तक विस्तारित किया गया। यह शहर भूतपूर्व बाम्बे प्रेज़िडेन्सी व बाम्बे राज्य की राजधानी रह चुका है और 1960 में इसे महाराष्ट्र राज्य की राजधानी बनाया गया। 19वीं सदी के अन्त व 20 शताब्दी के आरम्भ में मुम्बई भारतीय राष्ट्रवादी और क्षेत्रीय राजनीतिक गतिविधियों का केन्द्र था। 1885 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस (स्वतंत्रता प्राप्ति तक भारत समर्थक और ब्रिटिश विरोधी भावनाओं का केन्द्रीय दल) का पहला अधिवेशन इस नगर में हुआ, जिसके बाद 1942 के अधिवेशन में कांग्रेस ने 'भारत छोड़ो' प्रस्ताव पारित किया, जिससे भारत की पूर्ण स्वतंत्रता की माँग की गई थी। 1956 से 1960 तक मुम्बई में मुम्बई राज्य के ब्रिटिश उपनिवेशवाद से विरासत में मिले द्विभाषीय (मराठी--गुजराती) स्वरूप के ख़िलाफ़ व्यापक विरोध प्रदर्शन हुए और इसके बाद विभाजन हुआ, जिससे गुजरात व महाराष्ट्र के आधुनिक राज्यों का निर्माण हुआ।

बिजनेस केपिटल ऑफ इंडिया

मुम्बई को पहले बॉम्बे के नाम से जाना जाता था। मुम्बई शहर को बिजनेस केपिटल ऑफ इंडिया के नाम से भी जाना जाता है। यहां देश के प्रमुख वित्तीय और संचार केन्द्र है। भारत का सबसे बड़ा शेयर बाज़ार, जिसका विश्व में तीसरा स्थान है, मुम्बई में ही स्थित है। मुम्बई भारत के पश्चिमी समुद्र तट पर स्थित है। यह अरबियन समुद्र के सात द्वीपों का एक हिस्सा है। मुम्बई सामान्य रूप से सात द्वीपों जिनके नाम कोलाबा, माजागांव, ओल्ड वूमन द्वीप, वाडाला, माहीम, पारेल और माटूंगा-सायन पर स्थित है। सन् 1661 में इंग्लैंड के महाराजा चार्ल्‍स ने पुर्तग़ाल की राजकुमारी कैटरीना डे ब्रिगेंजा से शादी की थी। शादी में दहेज के रूप में चार्ल्‍स को बम्बई शहर मिला था, जो वर्तमान समय में मुम्बई के नाम से जाना जाता है। लेकिन सन् 1668 में मुम्बई ईस्ट इंडिया कम्पनी के हाथों में चला गया। सन् 1868 में महारानी विक्टोरिया ने शहर के प्रशासन को ईस्ट इंडिया कम्पनी से वापस ले लिया।[1] इन्हें भी देखें: मुम्बई इतिहास (तिथिक्रम)


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. मुम्बई (हिन्दी) (ए.एस.पी) यात्रा सलाह डॉट कॉम। अभिगमन तिथि: 25 मार्च, 2011

बाहरी कड़ियाँ

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