सांची-सांची कह रह्यो -शिवदीन राम जोशी

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सांची-सांची कह रह्यो- शिवदीन राम जोशी

काशी में संन्यासी होय वासी हों उजार हुँ को,

           निरगुन उपासी होय जोग साध रहे बन में ।

तापते चौरासी धुनी केते वह सिद्ध मुनि,

           शिवदीन कहे सुनी यही भस्म लगा तन में । 

एते सब प्रपंच केते बने हुए परमहंस,

           ग्यान के बिना से जांको ध्यान जाय धन में ।

जब लग है स्वांग सकल सांचा से राच्यो नहिं,

           कैसे हो उमंग राम बस्यो नांहीं मन में ।
   





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