काश्यपीय निकाय

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पालि परम्परा और सांची के अभिलेखों से ज्ञात होता है कि कश्यपगोत्रीय भिक्षु समस्त हिमवत्प्रदेश के निवासियों के आचार्य थे। चीनी भाषा में उपलब्ध 'विनयामातृका' नामक ग्रन्थ से भी उपर्युक्त कथन की पुष्टि होती है। इसीलिए काश्यपीय और हैमवत अभिन्न प्रतीत होते हैं। सुवर्षक और सद्धर्मवर्षक भी इन्हीं का नाम है। इस निकाय का हिमवत्प्रदेश में प्रचार सम्भवत: महाराज अशोक के काल में सम्पन्न हुआ, जब तृतीय संगीति के अनन्तर उन्होंने विभिन्न प्रदेशों में सद्धर्म के प्रचारार्थ धर्मदूतों को प्रेषित किया था।