मन के भरम न टूटे -शिवदीन राम जोशी
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मन के भरम न टूटे, देखो ! मन के भरम न टूटे | काम क्रोध अरु लोभ मोह मद, मत्सरता नहीं छूटे || छिन-छिन पल-पल घडी-घडी,आयु बीते स्वांस अनूठे || तू मन मूरख कबहूँ न सोचे, छोड़े न झगड़े झूंठे | ज्योति हृदय में प्रगटत ही तू, जान बूझ कर रूठे || सत्य ज्योति से ज्योति जगाले, रवि किरणें ज्यो फूटे | राम नाम सुमरण धन सांचो, फिर लोहा क्यों कूटे || सतगुरु पारस पाकर अनहद , आनंद क्यों नहीं लूटे | शिवदीन कहे मन मस्तो हाथी, बँधे न कबहू खूंटे ||
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
बाहरी कड़ियाँ
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