सदस्य वार्ता:सिद्धार्थ सिंह 'मुक्त'

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द्वैतवाद

वो दर्शन जो द्वैतवाद के नाम से प्रसिद्ध है सबसे अधिक लोकप्रिय विचारधारा है | वर्तमान विश्व में ९० प्रतिशत लोग इसी दर्शन को मानते हैं, जैसे ईसाई, इस्लाम तथा अनेक हिन्दू सम्प्रदाय | ये विचारधारा ईश्वर को विश्व के स्रष्टा तथा शासक मानती है | द्वैतवादियों का मानना है की विश्व में तीन चीजों का अस्तित्व है : ईश्वर, प्रकृति तथा जीवात्मा | ईश्वर, प्रकृति तथा जीवात्मा तीनों ही नित्य हैं परन्तु प्रकृति और जीवात्मा में परिवर्तन होते रहते हैं जबकि ईश्वर में कोई परिवर्तन नहीं होता अर्थात वो शाश्वत है | द्वैतवादी मानते हैं की ईश्वर सगुण है अर्थात उसमे गुण विद्यमान हैं, जैसे दयालुता, न्याय, शक्ति इत्यादि | साथ ही साथ ये मान्यता है की ईश्वर में अच्छे मानवीय गुण तो हैं परन्तु ख़राब गुण नहीं जैसे अंधकार के बिना प्रकाश | कुल मिलाकर द्वैतवादी मानवीय ईश्वर की पूजा करते हैं लेकिन ये मानते हुए की उसमे केवल शुभ मानवीय गुण हैं | परन्तु उनके सिद्धांत स्वविरोधी हैं, उदाहरण के लिए एक तरफ वो कहते हैं की ईश्वर ख़राब मानवीय गुणों से परे है वहीँ दूसरी तरफ ये भी मानते हैं की ईश्वर प्रसन्न होता है, अप्रसन्न होता है, पीड़ितों की पीड़ा देखकर दुखी होता है आदि, लेकिन वो ये स्पष्ट नहीं करते की वो अप्रसन्न क्यों होता है जबकि ये अच्छा मानवीय गुण नहीं है | द्वैतवाद में इसी तरह के और भी स्वविरोधी सिद्धांत देखने को मिलते हैं | फिर भी वो इस बात में गहरा विश्वास रखते हैं की ईश्वर अनंत शुभ गुणों का भंडार है | विश्व की रचना के सन्दर्भ में वो व्याख्या देते हैं की ईश्वर बिना उपादान कारणों के विश्व की रचना नहीं कर सकता | प्रकृति ही वह उपादान कारण है जिससे वो रचना करता है | दुनिया के अधिकांश धर्म द्वैतवादी हैं या कह सकते हैं की ऐसा होने के लिए विवश हैं क्योंकि सामान्य मनुष्य के लिए किसी अमूर्त चीज की कल्पना करना उतना ही कठिन है जितना किसी अनपढ़ के लिए गुरुत्वाकर्षण बल या विद्युत् बल की कल्पना करना | अधिकतर लोग सूक्ष्म सिद्धांतों को समझने के लिए अपने मष्तिष्क को उच्च स्तर तक ले जाने के बजाये उन सिद्धांतों को ही निम्न स्तर तक ले आते हैं और फिर उन्हें स्थूल रूप में ग्रहण करते हैं | यद्यपि ईश्वर विषयक सच्चाई कुछ और ही है, तथापि संपूर्ण विश्व में सामान्य लोगों का यही धर्म है | वे एक ऐसे ईश्वर में विश्वास रखते हैं जो उनसे अलग रहकर उनपर एक राजा की तरह शासन करता है तथा पूरी तरह से पवित्र और दयालु है | परन्तु यहाँ एक अत्यंत स्वाभाविक प्रश्न उठता है की उस दयालु राजा का संसार इतने कष्टों से क्यों भरा है | ये प्रश्न कुछ नई विचारधाराओं को जन्म देता है जिसकी चर्चा मै अगले भाग में करूँगा |