राणा कुम्भा

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
रविन्द्र प्रसाद (वार्ता | योगदान) द्वारा परिवर्तित 06:58, 18 अप्रैल 2012 का अवतरण (''''राणा कुम्भा''' मेवाड़ के एक महान योद्धा व सफल शासक थ...' के साथ नया पन्ना बनाया)
(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ:नेविगेशन, खोजें

राणा कुम्भा मेवाड़ के एक महान योद्धा व सफल शासक थे। 1418 ई. में लक्खासिंह की मृत्यु के बाद उसका पुत्र मोकल मेवाड़ का राजा हुआ, किन्तु 1431 ई. में उसकी मृत्यु हो गई और उसका उत्तराधिकारी 'राणा कुम्भा' हुआ। राणा कुम्भा स्थापत्य का बहुत अधिक शौकीन था। मेवाड़ में निर्मित 84 क़िलों में से 32 क़िलों का निर्माण उसने करवाया था। इसके अतिरिक्त और भी बहुत सी इमारतें तथा मन्दिरों आदि का निर्माण भी उसने करवाया। 1473 ई. में राणा कुम्भा के पुत्र उदयसिंह ने उसकी हत्या कर दी।

  • राणा कुम्भा ने अपने प्रबल प्रतिद्वन्द्वी मालवा के शासक हुसंगशाह को परास्त कर 1448 ई. में चित्तौड़ में एक ‘कीर्ति स्तम्भ’ की स्थापना की।
  • स्थापत्य कला के क्षेत्र में उसकी अन्य उपलब्धियों में मेवाड़ में निर्मित 84 क़िलों में से 32 क़िले हैं, जिसे राणा कुम्भा ने बनवाया था।
  • मध्यकालीन भारत के शासकों में राणा कुम्भा कि गिनती एक महान शासक के रूप में होती थी।
  • वह स्वयं एक अच्छा विद्वान तथा वेद, स्मृति, मीमांसा, उपनिषद, व्याकरण, राजनीति और साहित्य का ज्ञाता था।
  • कुम्भा ने चार स्थानीय भाषाओं में चार नाटकों की रचना की तथा जयदेव कृत 'गीत गोविन्द' पर 'रसिक प्रिया' नामक टीका भी लिखी।
  • उसने कुम्भलगढ़ के नवीन नगर एवं क़िलों में अनेक शानदार इमारतें बनवायीं।
  • 'अत्री' और 'महेश' को कुम्भा ने अपने दरबार में संरक्षण प्रदान किया, जिन्होंने प्रसिद्ध 'विजय स्तम्भ' की रचना की थी।
  • राणा कुम्भा ने बसन्तपुर नामक स्थान को पुनः आबाद किया।
  • अचलगढ़, कुम्भलगढ़, सास बहू का मन्दिर तथा सूर्य मन्दिर आदि का भी निर्माण भी उसने करवाया।


पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख