भारत में यूरोपीय व्यापार का प्रारम्भ

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
रविन्द्र प्रसाद (वार्ता | योगदान) द्वारा परिवर्तित 13:22, 10 जून 2012 का अवतरण (''''भारत''' में यूरोप से विदेशियों का आगमल प्राचीन काल ...' के साथ नया पन्ना बनाया)
(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ:नेविगेशन, खोजें

भारत में यूरोप से विदेशियों का आगमल प्राचीन काल से ही हो रहा था। यहाँ की व्यापारिक सम्पदा से आकर्षित होकर समय-समय पर अनेक यूरोपीय जातियों का आगमन होता रहा। 15वीं शताब्दी में हुई भौगोलिक खोजों ने संसार के विभिन्न देशों में आपसी सम्पर्क स्थापित कर लिया। इसी प्रयास के अन्तर्गत कोलम्बस स्पेन से भारत के समुद्री मार्ग की खोज में निकला और चलकर अमेरिका पहुँच गया। 'बार्थोलेम्यू डायज' 1487 ई. में 'आशा अन्तरीप' पहुँचा। 17 मई, 1498 को वास्कोडिगामा ने भारत के पश्चिमी तट पर स्थित बन्दरगाह कालीकट पहुँच कर भारत के नये समुद्र मार्ग की खोज की। कालीकट के तत्कालीन शासक जमोरिन ने वास्कोडिगामा का स्वागत किया। जमोरिन का यह व्यापार उस समय भारतीय व्यापार पर अधिकार जमाये हुए अरब के व्यापारियों को पसन्द नहीं आया।

पुर्तग़ालियों का आगमन

आधुनिक काल में भारत आने वाले यूरोपीय के रूप के पुर्तग़ाली सर्वप्रथम रहे। पोप अलेक्जेण्डर षष्ठ ने एक आज्ञा पत्र द्वारा पूर्वी समुद्रों में पुर्तग़ालियों को व्यापार करने का एकाधिकार प्रदान कर दिया। प्रथम पुर्तग़ीज तथा प्रथम यूरोपीय यात्री वास्कोडिगामा 90 दिन की समुद्री यात्रा के बाद 'अब्दुल मनीक' नामक गुजरात के पथ प्रदर्शक की सहायता से 1498 ई. में कालीकट (भारत) के समुद्री तट पर उतरा।

वास्कोडिगामा के भारत आगमन से पुर्तग़ालियों एवं भारत के मध्य व्यापार के क्षेत्र में एक नये युग का शुभारम्भ हुआ। वास्कोडिगामा के भारत आने से और भी पुर्तग़ालियों का भारत आने का क्रम जारी हो गया। पुर्तग़ालियों के भारत आने के दो प्रमुख उद्देश्य थे-

  1. अरबों और वेनिस के व्यापारियों का भारत से प्रभाव समाप्त करना।
  2. भारत में ईसाई धर्म का प्रचार करना।

दुर्ग की स्थापना

9 मार्च, 1500 को 13 जहाज़ों के एक बेड़े का नायक बनकर 'पेड्रों अल्वारेज केब्राल' जलमार्ग द्वारा लिस्बन से भारत के लिए रवाना हुआ। वास्कोडिगामा के बाद भारत आने वाला यह दूसरा पुर्तग़ाली यात्री था। पुर्तग़ाली व्यापारियों ने भारत में कालीकट, गोवा, दमन, दीव एवं हुगली के बंदरगाहों में अपनी व्यापारिक कोठियाँ स्थापित कीं। पूर्वी जगत के काली मिर्च और मसालों के व्यापार पर एकाधिकार प्राप्त करने के उद्देश्य से पुर्तग़ालियों ने 1503 ई. में कोचीन (भारत) में अपने पहले दुर्ग की स्थापना की।

1505 ई. में 'फ़्राँसिस्कों द अल्मेड़ा' भारत में प्रथम पुर्तग़ाली वायसराय बन कर आया। उसने सामुद्रिक नीति[1] को अधिक महत्व दिया तथा हिन्द महासागर में पुर्तग़ालियों की स्थिति को मजबूत करने का प्रयत्न किया। 1509 में अल्मेड़ा ने मिस्र, तुर्की और गुजरात की संयुक्त सेना को पराजित कर दीव पर अधिकार कर लिया। इस सफलता के बाद हिन्द महासागर पुर्तग़ाली सागर के रूप में परिवर्तित हो गया। अल्मेड़ा 1509 ई. तक भारत में रहा।


पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. नीले पानी की नीति

संबंधित लेख