मन अब तो जाग -शिवदीन राम जोशी
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शीर्षक उदाहरण 1
मन अब तो जाग / शिवदीन राम जोशी
शीर्षक उदाहरण 3
शीर्षक उदाहरण 4
सांकल ज्ञान की तौरत है गजराज यो धूम मचावत है | अहिराज तुरंग कहूँ क्या कहूँ धमकावें तो मारने धावत है | शिवदीन कहें बस क्या चलि हैं पल एक में आँख घुरावत है | शुभ संतन का मन धन्य प्रभु नित गोविन्द का गुण गावत है ||
मानत ना मन मेरो कह्यो समझाय थक्यो अरे बार ही बारा | थोरी ही बात में,भोग के सुख को, पावत है दुःख अपरम्पारा | मन चंचल है हठ ठानी रह्यो प्रभु चीन्ह नहीं निज रूप पियारा | शिवदीन सुने न हरी चरचा फिर कैसे तिरे भव सिन्धु की धारा ||
चेत तो चेत चितार मना यह काम न आवे कोऊ सुत दारा | शिवदीन फंस्यो जिनके फंद में वही आन चिता पे करे मुख कारा | प्रीत नहीं कोई रीत नहीं सब देख के प्रेत कहे परिवारा | प्रीतम तो परमेश्वर है, मन तू जग से करता न किनारा ||
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टीका टिप्पणी और संदर्भ