हिंडोन नदी

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हिंडोन नदी या 'हिंडन नदी' उत्तर भारत में प्रवाहित होने वाली यमुना नदी की सहायक नदी है। इस नदी का उद्गम सहारनपुर ज़िले में निचले हिमालय क्षेत्र की ऊपरी शिवालिक पर्वत श्रेणियों में है। पौराणिक ग्रंथों में 'हरनंदी' के नाम से प्रचलित यह नदी अब 'हिंडोन' या 'हिंडन' नाम से जानी जाती है। यह नदी दो नदियों के संगम (काली नदी और कृष्णा नदी) से बनी है। महाभारत कालीन लाक्षागृह से लेकर देश के स्वतंत्रता संग्राम तक की यह नदी साक्ष्य रही है।

सहायक नदियाँ

कुछ मध्य कालीन ग्रंथों में जिस नदी को हरनंदी नाम से सम्बोधित किया गया है, उसका नाम समय के साथ बदलकर हिंडन पड़ गया। हिंडन नदी हजारों वर्षों से बह रही है। यह नदी दो अलग-अलग नदियों के समागम से बनी है। मूलरूप से यह सहारनपुर के पास बेहट इलाके की कुछ छोटी पहाडि़यों के बीच से पानी के स्रोत के रुप में निकलती है। किंतु इसके अतिरिक्त इस नदी को गाज़ियाबाद तक के सफर में दो और सहायक नदियाँ मिल जाती हैं। इनमें से एक मुजफ़्फ़रनगर के पास से प्रवाहित होने वाली काली नदी और दूसरी कृष्णा नदी के नाम से जानी जाती है। कृष्णा नदी भी सहारनपुर के पास की एक पहाड़ी से ही निकलती है। यह नदी शामली और बागपत के एक बड़े हिस्से से होकर गुजरती है। बागपत और मुजफ़्फ़रनगर से प्रवाहित होते हुए कृष्णा और काली नदी का संगम 'वारनावत' (वर्तमान में बरनावा) के पास होता है। बरनावा ज़िला बागपत में एक गाँव का नाम है। महाभारत कालीन ग्रंथों में इसका उल्लेख है। वहीं से इस नदी का नाम 'हिंडन' पड़ा है।[1]

लाक्षागृह के अवशेष

महाभारत काल में जहाँ पांडवों को मारने के लिए लाक्षागृह का निर्माण किया गया था, उसी जगह का नाम वारनावत है। कई ग्रंथों में उल्लेख है कि वारनावत में ही पांडवों को मारने के लिए कौरवों ने साजिश के तहत वहाँ लाक्षागृह बनवाया था। किंतु इस साजिश का पता पांडवों को हो गया। पांडव तो वहाँ से सुरंग के रास्ते सुरक्षित निकल गये, किंतु वहाँ आकर रुके पाँच भील लाक्षागृह में जलकर भस्म हो गए। ग्रंथों में जिक्र है कि सभी पांडवों ने लाक्षागृह से बचने के लिए एक सुरंग बनवाई थी। इसी सुरंग से पांडव पास के वन क्षेत्र में जा निकले। महाभारत हुए हज़ारों वर्ष व्यतीत हो चुके हैं, फिर भी जहाँ लाक्षागृह बनाया गया था, वहाँ अब कई मंजिल ऊँचा मिट्टी का टीला बना हुआ है। यहाँ अब संस्कृत का विश्वविद्यालय संचालित होता है। किंतु इस जगह आज भी महाभारत कालीन समय के अवशेष मिलते हैं। जिस सुरंग का प्रयोग कर पांडव यहाँ से सुरक्षित निकले थे, वह सुरंग अब भी मौजूद है। मगर सुरंग में मिट्टी भर जाने के कारण अब उसका मुँह कुछ छोटा हो गया है।

क्रांति की साक्षी

भारत की आज़ादी के लिए मेरठ से 1857 में चिंगारी उठी थी। जून, 1857 में देश के क्रांतिकारियों और अंग्रेज़ सेना के बीच हिंडन नदी पर ही युद्ध लड़ा गया। हिंडन नदी के तट पर हुई उस जंग में कई अंग्रेज़ भी मारे गए थे। यहाँ शहीदों की याद में एक शहीद स्मारक भी बनाया गया है।

प्रदूषण की समस्या

हिंडन नदी ने शहर को दो हिस्सों में बांटा हुआ है। दिल्ली की ओर के हिस्से को टीएचए और गाज़ियाबाद मुख्य शहर में अलग-अलग किया हुआ है। पहले इस नदी पर सहारनपुर से लेकर गाज़ियाबाद तक एक भी पुल नहीं था। देश की आज़ादी के बाद इस नदी पर गाज़ियाबाद में पहला पुल वर्ष 1952 में बनाया गया। एक समय हिंडन नदी का पानी शीशे के समान चमकता था, मगर अब हिंडन नदी के पानी में वह चमक नहीं रह गई है। कई शहरों का दूषित जल अपने आप में समेट कर हिंडन नदी अब अपनी यात्रा पूरी कर रही है। उपेक्षा की मार झेल रही हिंडन नदी का पानी अब प्रदूषित होकर काला हो रहा है।[1]


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. 1.0 1.1 हिंडोन नदी (हिन्दी)। । अभिगमन तिथि: 16 सितम्बर, 2012।

बाहरी कड़ियाँ

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