ग्रामीण विकास मंत्रालय
ग्रामीण विकास मंत्रालय भारत सरकार के मंत्रालयों में से एक है। सन 1974 के दौरान यह 'ग्रामीण विकास विभाग खाद्य और कृषि मंत्रालय' के अंग के रूप में अस्तित्व में आया था। मंत्रालय के नाम को समय-समय पर परिवर्तित भी किया गया। मार्च, 1995 के दौरान इस मंत्रालय का नाम बदलकर 'ग्रामीण क्षेत्र तथा रोजगार मंत्रालय' रखा गया था। यह मंत्रालय व्यायपक कार्यक्रमों का कार्यान्वमयन करके ग्रामीण क्षेत्रों में बदलाव लाने के उद्देशय से एक उत्प्रेरक मंत्रालय का कार्य करता आ रहा है। इन कार्यक्रमों का उद्देश्य गरीबी उन्मू्लन, रोजगार सृजन, अवसंरचना विकास तथा सामाजिक सुरक्षा आदि है।
अभिप्राय
'ग्रामीण विकास' का अभिप्राय एक ओर जहाँ लोगों का बेहतर आर्थिक विकास करना है, वहीं दूसरी ओर वृहत सामाजिक कायाकल्प भी करना है। ग्रामीण लोगों को आर्थिक विकास की बेहतर संभावनाएँ मुहैया कराने के उद्देश्य से ग्रामीण विकास कार्यक्रमों में लोगों की उत्तोत्तर भागीदारी सुनिश्चित करने, योजना का विकेन्द्रीकरण करने, भूमि सुधार को बेहतर ढ़ंग से लागू करने और ऋण प्राप्ति का दायरा बढ़ाने का प्रावधान किया गया है। प्रारंभ में कृषि उद्योग, संचार, शिक्षा, स्वास्थ्य तथा इससे संबंधित क्षेत्रों के विकास पर मुख्य बल दिया गया था, लेकिन बाद में यह महसूस किया गया कि त्वरित विकास केवल तभी संभव हो सकता है, जब सरकारी प्रयासों में बुनियादी स्तर पर लोगों की प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से भागीदारी हो। इसीलिए 31 मार्च, 1952 को समुदाय परियोजना प्रशासन के रूप में ज्ञात एक संगठन की योजना आयोग के अधीन स्थापना की गई, जिसका कार्य सामुदायिक विकास से संबंधित कार्यक्रमों का संचालन करना था। सामुदायिक विकास कार्यक्रम का उद्घाटन 2 अक्तूबर, 1952 को किया गया था और यह कार्यक्रम ग्रामीण विकास के इतिहास में एक महत्वपूर्ण कीर्तिमान था।
स्थापना
यह मंत्रालय दो विभागों से मिलकर बनता है- 'ग्रामीण विकास विभाग' और 'भूमि संसाधन विभाग'। अक्तूबर, 1974 के दौरान 'ग्रामीण विकास विभाग खाद्य और कृषि मंत्रालय' के अंग के रूप में यह मंत्रालय अस्तित्व में आया। 18 अगस्त, 1979 को 'ग्रामीण विकास विभाग' का दर्जा बढ़ा कर उसे 'ग्रामीण पुनर्गठन मंत्रालय' का नाम दिया गया। 23 जनवरी, 1982 को इस मंत्रालय का नामकरण 'ग्रामीण विकास मंत्रालय' किया गया। जनवरी, 1985 के दौरान 'ग्रामीण विकास मंत्रालय' को फिर से 'कृषि तथा ग्रामीण विकास मंत्रालय' के अधीन एक विभाग के रूप में बदल दिया गया, जिसे बाद में, सितम्बर, 1985 के दौरान 'कृषि मंत्रालय' का नाम दिया गया। 5 जुलाई, 1991 को इस विभाग को पुन: 'ग्रामीण विकास मंत्रालय' का दर्जा दिया गया। 2 जुलाई, 1992 को इस मंत्रालय के अधीन 'बंजर भूमि विकास विभाग' के नाम से एक और विभाग का गठन किया गया। मार्च, 1995 के दौरान इस मंत्रालय का पुन: नाम बदलकर 'ग्रामीण क्षेत्र तथा रोजगार मंत्रालय' रख दिया गया और इसमें तीन विभाग भी शामिल किये गये-
- 'ग्रामीण रोजगार तथा गरीबी उन्मूलन विभाग'
- 'ग्रामीण विकास विभाग'
- 'बंजर भूमि विकास विभाग'
उद्देश्य
सन 1999 में 'ग्रामीण क्षेत्र तथा रोजगार मंत्रालय' का फिर से नाम बदलकर 'ग्रामीण विकास मंत्रालय' रखा गया। यह मंत्रालय व्यायपक कार्यक्रमों का कार्यान्वमयन करके ग्रामीण क्षेत्रों में बदलाव लाने के उद्देशय से एक उत्प्रेरक मंत्रालय का कार्य करता आ रहा है। इन कार्यक्रमों का उद्देश्य गरीबी उन्मू्लन, रोजगार सृजन, अवसंरचना विकास तथा सामाजिक सुरक्षा है। समय के साथ-साथ कार्यक्रमों के कार्यान्वअयन में प्राप्त अनुभव के आधार पर तथा गरीब लोगों की जरूरतों का ध्यान रखते हुए, कई कार्यक्रमों में संशोधन किये गये और नये कार्यक्रम लागू किये गए। इस मंत्रालय का मुख्य उद्देश्य ग्रामीण गरीबी को दूर करना तथा ग्रामीण आबादी, विशेष रूप से गरीबी रेखा से नीचे जीवन यापन कर रहे लोगों को बेहतर जीवन स्तर मुहैया करना है। इन उद्देश्यों की पूर्ति ग्रामीण जीवन और कार्यकलापों के विभिन्न क्षेत्रों से संबंधित कार्यक्रमों को तैयार करके, उनका विकास करके तथा उनका कार्यान्वयन करके की जाती है। इस बात को सुनिश्चित करने के उद्देश्य से कि आर्थिक सुधारों का लाभ समाज के सभी वर्गों को मिले, ग्रामीण क्षेत्रों में जीवन स्तर के लिए महत्वपूर्ण सामाजिक तथा आर्थिक अवसंरचना के पांच कारकों की पहचान की गई-
- स्वास्थ्य
- शिक्षा
- पेयजल
- आवास
- सड़कें
इन क्षेत्रों में किये जा रहे प्रयासों को और बढ़ाने के लिए सरकार ने 'प्रधानमंत्री ग्रामीण योजना' (पीएमजीवाई) शुरू की और 'ग्रामीण विकास मंत्रालय' को 'प्रधानमंत्री योजना' (पीएमजीवाई) के निम्नलिखित भागों को कार्यान्वित करने का दायित्व सौंपा-
- पेयजल आपूर्ति
- आवास निर्माण
- ग्रामीण सड़कों का निर्माण करना
गरीबी उन्मूलन कार्यक्रम
नौवीं योजना अवधि के दौरान कई गरीबी उन्मूलन कार्यक्रमों का पुनर्गठन किया गया, ताकि ग्रामीण क्षेत्रों में रह रहे गरीब लोगों को लाभ देने के लिए कार्यक्रमों की दक्षता बढ़ाई जा सके। 'एकीकृत ग्रामीण विकास कार्यक्रम' (आईआरडीपी), ग्रामीण क्षेत्रों में महिला और बाल विकास कार्यक्रम (डीडब्यूद सीआरए), ग्रामीण दस्तकारों को बेहतर औजारों की आपूर्ति से संबंधित कार्यक्रम (एसआईटीआरए), स्व-रोजगार के लिए ग्रामीण युवाओं के प्रशिक्षण से संबद्ध कार्यक्रम (टीआरवाईएसईएम), गंगा कल्याण योजना (जीकेवाई) तथा मिलियन कूप स्कीम (एमडब्यूक एस) का विलय समग्र स्व-रोजगार योजना में किया गया, जिसे स्वर्णजयंती ग्राम स्वय-रोजगार योजना (एसजीएसवाई) का नाम दिया गया।
स्थानीय लोगों की जरूरतों और उनकी आकांक्षाओं को ध्यान में रखते हुए पंचायती राज संस्थाओं का सहयोग इस कार्यक्रम के कार्यान्वयन में लिया गया। ये संस्थाएँ योजना तथा उसके कार्यान्वयन के विकेन्द्रीकृत विकास का रूप हैं। मंत्रालय राज्य सरकारों से जोर देकर यह कह रहा है कि वे पंचायती राज संस्थाओं को अपेक्षित प्रशासनिक तथा वित्तीय शक्तियाँ शीघ्र दें, जैसा कि भारत के 73वें संविधान संशोधन में कहा गया है। 25 दिसम्बर, 2002 को पेयजल क्षेत्र के अधीन 'स्व-जलधारा' नामक नया कार्यक्रम शुरू किया गया, जिसके अधीन पेयजल परियोजनाएँ तैयार करने, उन्हें कार्यान्वित करने, उनका संचालन करने तथा उनका रख-रखाव करने की शक्तियाँ पंचायतों को देने का प्रावधान है। पंचायती राज संस्थाओं का विकास प्रक्रिया में और सहयोग लेने के उद्देश्य से प्रधानमंत्री द्वारा 27 जनवरी, 2003 को 'हरियाली' नामक एक नया कार्यक्रम शुरू किया गया। हरियाली नामक कार्यक्रम शुरू करने का उद्देश्य बंजर भूमि विकास कार्यक्रमों अर्थात 'आईडब्यूडीपी', 'डीपीएपी' और 'डीडीपी' के कार्यान्वयन में पंचायती राज संस्थाओं का सहयोग प्राप्त करना है।
ग्रामीण महिलाओं का सशक्तिकरण
ग्रामीण महिलाओं का सशक्तिकरण ग्रामीण भारत के विकास के लिए महत्वपूर्ण है। महिलाओं को विकास की मुख्य धारा में लाना भारत सरकार का मुख्य दायित्व रहा है। इसलिए गरीबी उन्मूलन कार्यक्रमों में महिलाओं के योगदान का भी प्रावधान किया गया है, ताकि समाज के इस वर्ग के लिए पर्याप्त निधियों की व्यवस्था की जा सके। संविधान (73वाँ) संशोधन अधिनियम, 1992 में महिलाओं के लिए चुनिन्दा पदों के आरक्षण की व्यावस्था है। भारतीय संविधान में आर्थिक विकास तथा सामाजिक न्याय से संबंधित विभिन्न कार्यक्रमों को तैयार करके निष्पादित करने का दायित्व पंचायतों को सौंपा है, और कई केन्द्र प्रायोजित योजनाएँ पंचायतों के जरिये कार्यान्वित की जा रही हैं। इस प्रकार पंचायतों की महिला सदस्यों और महिला अध्यक्षों, जो बुनियादी रूप से पंचायतों की नई सदस्या हैं, को अपेक्षित कौशल प्राप्त करना होगा और उन्हें नेतृत्व का निर्वाह करने तथा निर्णय में सहभागी होने के लिए अपनी उचित भूमिकाओं को निभाने हेतु उचित प्रशिक्षण देना होगा। पंचायती राज संस्थाओ के चुनिंदा प्रतिनिधियों को प्रशिक्षण देने का दायित्व बुनियादी रूप से राज्य सरकारों, संघ राज्य क्षेत्र प्रशासनों का है। ग्रामीण विकास मंत्रालय राज्यों, संघ राज्य क्षेत्रों को भी कुछ वित्तीय सहायता मुहैया कराता है, ताकि प्रशिक्षण कार्यक्रमों के स्तर को बेहतर बनाया जा सके और पंचायती राज संस्थाओं के चुने हुए सदस्यों और कार्यकर्ताओं के लिए क्षमता निर्माण की पहल हो सके।
मंत्रालय के विभाग
मंत्रालय दो अंतर्राष्ट्रीय संगठनों अर्थात 'सेंटर ऑन इंटीग्रेटिड रूरल डेवलेपमेंट ऑफ़ एशिया एंड पेसिफ़िक' (सीआईआरडीएपी) तथा 'एफ़्रो-एशियन रूरल डेवलेपमेंट ऑर्गनाइजेशन' (एएआरडीओ) के लिए नोडल विभाग है। मंत्रालय के निम्नालिखित तीन विभाग हैं-
- ग्रामीण विकास विभाग
- भूमि संसाधन विभाग
- पेयजल और स्वच्छता विभाग
संचालित कार्यक्रम
'ग्रामीण विकास विभाग' द्वारा स्व-रोजगार सृजन योजना तथा मजदूरी रोजगार योजना, ग्रामीण गरीबों के लिए मकानों के प्रावधान और लघु सिंचाई साधन योजना, बेसहारा लोगों के लिए सामाजिक सहायता योजनाओं और ग्रामीण सड़क निर्माण योजना का क्रियान्वयन किया जाता है। इसके अलावा, इस विभाग द्वारा डीआरडीए प्रशासन, पंचायती राज संस्थाओं, प्रशिक्षण तथा अनुसंधान, मानव संसाधन विकास, स्वैच्छिक कार्य विकास आदि के लिए सहायक सेवाएँ एवं अन्य गुणवत्ता संसाधन उपलब्ध कराए जाते हैं, ताकि कार्यक्रमों का समुचित कार्यान्वयन हो सके। ग्रामीण विकास विभाग द्वारा संचालित मुख्य कार्यक्रम इस प्रकार हैं-
- महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (महात्मा गांधी नरेगा)
- प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना (पीएमजीएसवाई)
- इंदिरा आवास योजना तथा स्वर्णजयंती ग्राम स्वग-रोजगार योजना (एसजीएसवाई)
- बंजर भूमि का विकास
भूमि संसाधन विभाग द्वारा देश में बंजर भूमि का विकास करके बायोमास उत्पादन बढ़ाने से संबंधित योजनाओं का कार्यान्वन किया जाता है। इस विभाग द्वारा सहायता सेवाएँ तथा अन्य गुणवत्ता युक्त कार्य भी किये जाते हैं, जैसे- भूमि सुधार, राजस्व पद्धति की बेहतरी तथा भू-अभिलेख। यह विभाग देश में मरू क्षेत्रों और सूखे प्रवण क्षेत्रों का विकास भी करता है। भूमि संसाधन विभाग के मुख्य कार्यक्रम इस प्रकार हैं-
- राष्ट्रीय भू-अभिलेख आधुनिकीकरण कार्यक्रम (एनएलआरएमपी)
- एकीकृत वाटर शेड प्रबंधन कार्यक्रम (आईडब्यू्एमपी)
इनका उद्देश्य अवक्रमित भूमि की बंजर भूमि में मिट्टी तथा नमी संरक्षण और उत्पादकता को बढ़ाना है, ताकि लोगों की आय को बढ़ाया जा सके। पेयजल तथा सफाई व्यवस्था का प्रावधान और ग्रामीण गरीबों को सफाई सुविधाएँ देने का प्रावधान पेयजल आपूर्ति विभाग के मुख्य कार्यकलाप हैं। पेयजल आपूर्ति विभाग के मुख्य कार्यक्रम इस प्रकार हैं-
- सम्पूर्ण स्वच्छता अभियान (टीएससी)
- राष्ट्रीय ग्रामीण पेयजल कार्यक्रम (एनआरडीडब्यूभपी)
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