साहित्यिक उपनाम

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साहित्यिक उपनाम साहित्यकार के मूल नाम का अंशमात्र या इससे भिन्न वह नाम है, जिससे वह साहित्य जगत को अपना परिचय देता है। कवि द्वारा अपने उपनाम का प्रयोग रचना में 'छाप' के लिए भी किया जा सकता है। जैसे- 'रहीम' (अब्दुर्रहीम ख़ानख़ाना), 'तुलसी' इत्यादि के दोहों में हुआ है। अरबी शब्द 'तख़ल्लुस' उपनाम का समानार्थक है। कवि, कहानीकार, उपन्यासकार इत्यादि कोई भी साहित्यकार चाहे तो अपना उपनाम रख सकता है।

'छद्मनाम' और 'उपनाम'

'छद्मनाम' और 'उपनाम' में अन्तर है। 'छद्मनाम' में लेखक अपने नाम अर्थात् व्यक्तित्व को पूर्णत: गुप्त रखने के लिए किसी अन्य कल्पित नाम को रचयिता के रूप में प्रस्तुत करता है। प्राय: राजनीतिक कारणों से ऐसा होता है, परन्तु सामाजिक आदि अन्य कारण भी हो सकते हैं। कथाकार धनपतराय ने 'छद्मनाम' प्रेमचन्द अपनाया था, परन्तु भाग्यवश वे इसी नाम से विश्वप्रसिद्ध हो गए। बाद में छद्मता न रहने पर 'प्रेमचन्द' उपनाम हो गया और लेखक का मूल नाम विस्मृत-सा हो गया। 1932-33 ई. में राजनीतिक बन्दी सच्चिदानन्द हीरानन्द के वात्स्यायन की अनेक कविताएँ और कहानियाँ 'विशाल भारत' में चोरी-चोरी पहुँची और सम्पादक महोदय 'अज्ञेय' छद्मनाम देकर इन्हें प्रकाशित करते रहे। बहुत बाद में, जब 'अज्ञेय' के रूप में वे प्रसिद्धि के शिखर पर ही थे, उन्होंने अपने मूल नाम से ही समीक्षा, सम्पादन आदि का कार्य किया।

विशेषताएँ

  • उपनाम प्राय: छोटे, सरल, मधुर, भावप्रकाशक और आकर्षक होते हैं (जैसे- नीरज, रसनिधि, रत्नाकर) परन्तु वीरतापूर्ण भावों से ओत-प्रेत रचनाओं के रचयिता वैसे ही 'त्रिशूल' आदि नाम भी अपनाते हैं और हास्यपूर्ण रचनाओं के रचयिता हास्यपूर्ण उपनाम जैसे- चोंच, बेढब।
  • कभी-कभी कवि प्राप्त उपाधि को ही उपनाम बना लेता है (जैसे- भूषण)।
  • कभी-कभी साहित्यकार एक से अधिक उपनाम अपनाता है- विशेष उद्देश्य से, जैसे- गयाप्रसाद शक्ल की कविताएँ सामान्यत: 'सनेही' उपनाम से प्रकाशित हुईं, परन्तु राष्ट्रीय कविताएँ 'त्रिशूल' उपनाम से।
  • एक उपनाम अनेक साहित्यकारों का भी हो सकता है (जैसे- सुमन)।
  • कई बार उपनाम के साथ अपने रहने के नगर आदि का नाम जोड़ देने से उपनाम बड़ा तथा अधिक स्पष्ट हो जाता है (जैसे- काका हाथरसी, बेढब बनारसी)।
  • कभी-कभी उपनाम की प्रसिद्धि इतनी अधिक हो जाती है कि साहित्यकार का मूल नाम कालान्तर में विस्मृत ही हो जाता है (जैसे- रीतिकालीन महाकवि भूषण का)।
  • अनेक साहित्यकार उपनाम रखते ही नहीं (महादेवी वर्मा, धर्मवीर भारती)।
  • कुछ साहित्यकार अपना नाम और उपनाम जोड़कर लिखते हैं (जैसे- निरंकार देव 'सेवक') और कुछ साहित्यकार केवल उपनाम से ही अपनी रचनाएँ प्रकाशित करते हैं (जैसे- नीरज)।
  • माता-पिता आदि के दिए नाम और अपनी पसन्द से चुने गए उपनाम में प्राय: बड़ा अन्तर होता है। उपनाम का चयन साहित्यकार कभी, प्राकृतिक पदार्थों (सूर्य, चन्द्र, रात्रि, उषा, किरण, नदी, सागर, पुष्प, भ्रमर इत्यादि) से करता है, कभी विचार, भाव, राष्ट्रीयता, मनोवैज्ञानिक तत्वों इत्यादि से और कभी अपने नाम को ही कुछ आंशिक या पर्यायरूप में अपनाकर। निस्सन्देह उपनामों का अध्ययन एक रोचक कार्य है।
  • हिन्दी के प्रमुख साहित्यिक उपनामों की एक अति संक्षिप्त सूची यहाँ प्रस्तुत की जा रही है। आशा है उपयोगी होगी।



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