दुनिया की रीत निराली है। लोग प्रयासों को नहीं, परिणामों को देख शाबाशी देते हैं। पश्चाताप को नहीं, प्रायश्चित को सराहते हैं। खेती को नहीं, फ़सल को देखकर मुग्ध होते हैं। सुन्दरता की प्रशंसा फूल की होती है न कि बीज की। इसलिए कबीर के इस क़िस्से से हम यह समझ सकते हैं कि कबीर ने किसी को सफ़ाई नहीं दी कि वह स्त्री झूठ बोल रही है बल्कि उस स्त्री के मुख से ही सच कहलवा किया और वह भी पूर्णत: अहिंसक तरीक़े से। ...पूरा पढ़ें