प्रयोग:फ़ौज़िया2

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
यहाँ जाएँ:नेविगेशन, खोजें
  • ब्रह्मपुत्र नदी हिमालय में अपने उद्गम से लगभग 2,900 किमी बहकर यमुना के नाम से दक्षिण में बहती हुई गंगा नदी की मूल शाखा पद्मा के साथ मिलकर है और बाद में दोनों का मिश्रित जल बंगाल की खाड़ी में गिरता है।
  • ब्रह्मपुत्र नदी का उद्गम तिब्बत के दक्षिण में मानसरोवर के निकट चेमायुंग दुंग नामक हिमवाह से हुआ है।
  • अपने मार्ग में यह चीन के स्वशासी क्षेत्र तिब्बत, भारतीय राज्यों, अरुणाचल प्रदेशअसम और बांग्लादेश से होकर बहती है।
  • अपनी लंबाई के अधिकतर हिस्से में नदी महत्त्वपूर्ण आंतरिक जलमार्ग का कार्य करती है; फिर भी तिब्बल के पहाड़ों और भारत के मैदानी इलाक़ों में यह नौका चालक के योग्य नहीं है।
  • अपने निचले मार्ग में यह नदी सृजन और विनाश, दोनों ही करती है। साथ ही यह बड़ी मात्रा में उपजाऊ जलोढ़ मिट्टी जमा करती हैं। परंतु अक्सर विनाशकारी बाढ़ लाने वाली सिद्ध होती है।

ब्रह्मपुत्र के अन्य नाम

  • बांग्ला भाषा में जमुना के नाम से जानी जाती है।
  • चीनी में या-लू-त्सांग-पू चियांग या यरलुंग ज़ैगंबो जियांग कहते है।
  • तिब्बती में त्सांग-पो या सांपो के नाम से जानी जाती है।
  • मध्य और दक्षिण एशिया की प्रमुख नदी कहते है।
  • अरुणाचल प्रदेश|अरुणाचल में डिहं के नाम से जानी जाती है।
  • असम में ब्रह्मपुत्र कहते है।

ब्रह्मपुत्र की उपनदियां

  • सुवनश्री
  • तिस्ता
  • तोर्सा
  • लोहित
  • बराक


प्राकृतिक विशेषताएँ

भू—आकृति

  • ब्रह्मपुत्र का उदगम स्थल चेमायुंगडंग हिमनद है, जो दक्षिण—पश्चिमी तिब्बत में मा—फ़ा—मूं (मापाम) झील से लगभग 97 किमी. दक्षिण—पूर्व में हिमालय की ढलानों को आच्छादित करता है। कूबी, आंगसी और चेमायुंगडंग वहाँ से उत्पन्न होने वाली तीन मुख्य धाराएँ हैं। नदी अपने उदगम स्थल से सामान्यतः पूर्वी दिशा में दक्षिण की ओर हिमालय की मुख्य पर्वत श्रेणी और उत्तर की ओर निएन—चिंग—तांग—कू—ला (न्येनचेन) पर्वतों के बीच क़रीब 1,126 किमी. तक प्रवाहित होती है।
  • नदी अपने पूरे ऊपरी मार्ग पर सामान्यतः त्सांगपो (शोधक) के नाम से जानी जाती है, और अपने मार्ग में कई जगहों पर अपने चीनी नाम से और अन्य स्थानीय तिब्बती नामों से भी जानी जाती है।
  • तिब्बत में त्सांग—पो कुछ उपनदियों को समाहित करती है, बाएँ तट की सबसे महत्वपूर्ण उपनदियाँ हैं, लो—कात्सांग—पू (रागा त्सांग--पो), जो जीह—का—त्से (शींगत्सी) के पश्चिम में नदी से जुड़ती है और ला—सा (की), जो तिब्बत की राजधानी ल्हासा के निकट से बहती है और चू—शुई में त्सांगपो से जुड़ती है। नी—यांग (ग्यामडा) नदी इस नदी से त्सी—ला (त्सेला दज़ोंग) में उत्तर की ओर जुड़ती है। दाएँ तट पर निएन—चू (न्यांग चू) नदी इस नदी से जीह—का—त्से पर मिलती है। तिब्बत में पाई (पे) से गुजरने के बाद, नदी अचानक उत्तर और पूर्वोत्तर की ओर मुड़ जाती है और ग्याला पेरी और नामचा बरखा (माउंट—ना—मू—चो—इर्ह--वा) के पहाड़ों के बीच उत्प्रवण जल प्रपातों की श्रृंखला में एक के बाद एक बड़ी संकरी घाटियों से रास्ता बनाती है। उसके बाद, यह नदी दक्षिण और दक्षिण—पश्चिम की ओर मुड़ती है और दीहांग नदी के रूप में पूर्वोत्तर भारत की असम घाटी में प्रवेश के लिए हिमालय के पूर्वी छोर से गुजरती है।
  • भारत में सादिया शहर के पश्चिम में दीहांग दक्षिण—पश्चिम की ओर मुड़ती है, इसमें दो पहाड़ी जलधाराएँ, लोहित और दिबांग मिलती है। संगम के बाद बंगाल की खाड़ी से क़रीब 1,448 किमी. पहले नदी ब्रह्मपुत्र के नाम से जानी जाती है। असम में इसका पाट सूखे मौसम के दौरान भी नदी में ख़ासा पानी रहता है और बरसात के मौसम में तो इसका पाट 8 किमी. से भी चौड़ा हो जाता है। जैसे—जैसे यह नदी घाटी के 724 किमी. लम्बे मार्ग में अपने घुमाबदार का अनुसरण करती है, इसमें सुबनसिरी, कामेंग, भरेली, धनसारी, मानस, चंपामती, सरलभंगा और संकोश नदियों सहित कई तेज़ी से बहती हिमालयी नदियाँ मिलती हैं। बुढ़ी दिहांग, दिसांग, दिखी और कोपीली पहाड़ियों और दक्षिण के पठार से आने वाली मुख्य उपनदियाँ हैं।
  • भारत में धुबुरी के नीचे गारो पहाड़ी के निकट दक्षिण में मुड़ने के बाद ब्रह्मपुत्र बांग्लादेश के मैदानी इलाक़े में प्रवेश करती है। बांग्लादेश में चिलमारी के निकट से बहने के पश्चात इसके दाएँ तट पर तिस्ता नदी इससे मिलती है और उसके बाद यह यमुना नदी के रूप में दक्षिण की ओर 241 किमी. लम्बा मार्ग तय करती है। (गायबंदा के दक्षिण में पुरानी ब्रह्मपुत्र मुख्य धारा का बायाँ तट छोड़ती है और जमालपुर और मायमेनसिंह के निकट से बहकर भैरब बाज़ार के निकट मेघना नदी में मिलती है) गंगा से संगम से पहले यमुना में बाएँ तट से बरल, अतरई और हुरसागर नदियों का जल आ मिलता है और इसके बाएँ तट पर विशाल धलेश्वरी नदी का निकासी मार्ग बन जाता है। धलेश्वरी की एक उपनदी बुढ़ी गंगा, ढाका से आगे निकलकर मुंशीगंज से ऊपर मेघना नदी में मिलती है।
  • ग्वालंदों घाट के उत्तर में यमुना गंगा से मिलती है, जिसके बाद पद्मा के रूप में उनका मिश्रित जल दक्षिण—पूर्व में 121 किमी. की दूरी तक बहता है। पद्मा मेघना नदी से संगम के लिए चाँदपुर के निकट पहुँचती है और तब मेघना नदीमुख और छोटे जलमार्गों द्वारा बंगाल की खाड़ी में प्रवेश करती है।

जलवायु

ब्रह्मपुत्र घाटी की जलवायु तिब्बत में पाई जाने वाली रूखी ठंडी और शुष्क परिस्थितियों से असम घाटी और बांग्लादेश में पाई जाने वाली आमतौर पर गर्म और आर्द्र परिस्थितियों तक विविध है। तिब्बत में शीत ऋतु अत्यधिक ठंडी होती है। जिसमें न्यूनतम तापमान ज़ीरो डिग्री से. नीचे रहता है। जबकि ग्रीष्म ऋतु सुहानी और उजली होती है। नदी घाटी हिमालय के मानसून क्षेत्र में स्थित है और यहाँ पर वर्षा अपेक्षाकृत कम है। ल्हासा में 400 मिमी वार्षिक वर्षा होती है।

घाटी के भारतीय और बांग्लादेशी हिस्स में मानसूनी जलवायु कुछ हद तक भिन्न है। ग्रीष्म ऋतु सामान्य से छोटी होती है और औसत तापमान धुबुरी, असम में 26 डिग्री से. से ढाका में 29 डिग्री से. तक रहता है। वर्षा अपेक्षाकृत अधिक है और नमी वर्ष भर काफ़ी ज़्यादा रहती है। 1,778 और 3,810 मिमी के बीच की वार्षिक वर्षा मुख्यतः जून और शुरूआती अक्तूबर माह के बीच होती है, मार्च से मई तक हल्की बारिश होती है।

जल विज्ञान

  • नदी के मार्ग में निरंतर बदलाव ब्रह्मपुत्र के जल विज्ञान में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। इनमें सबसे आश्चर्यजनक बदलाव तिस्ता नदी के पूर्व की ओर मुड़ने और फलस्वरूप यमुना की नई नहर का विकास था, जो 1787 में तिस्ता में आई अपेक्षाकृत विशाल बाढ़ से उत्पन्न हुआ था। तिस्ता का पानी अचानक पूर्व की ओर एक पुराने परित्याक्त मार्ग की ओर मुड़ गया था। जिसके फलस्वरूप नदी मायेमेनसिंह ज़िले में बहादुरबाद घाट के सामने ब्रह्मपुत्र से मिली। 18वीं शताब्दी के अंत तक ब्रह्मपुत्र मायमेनसिंह नगर से होकर गुज़रती थी और भैरब बाज़ार के पास मेघना नदी में मिलती थी (वर्तमान में पुरानी ब्रह्मपुत्र धारा का मार्ग)। उस समय यमुना नदी का मार्ग (अब मुख्य ब्रह्मपुत्र धारा) कोनाई—जेनाई नामक एक छोटी—सी धारा हुआ करता था। जो सम्भवतः पुरानी ब्रह्मपुत्र से अलग हुई नहर थी। 1787 की तिस्ता में आई बाढ़ के अधिक शक्तिशाली होने पर ब्रह्मपुत्र कोनाई—जेनाई के निकट एक नई नहर काटने लगी और 1810 के बाद वह धीरे—धीरे यमुना के नाम से ज्ञात मुख्यधारा में बदल गई।
  • गंगा और ब्रह्मपुत्र के निचले मार्गों के किनारे और मेघना के तटों पर इन क्रियाशील नदियों के मार्गों के हटने और बदलने के कारण धरती में निरंतर क्षरण और रेत का जमाव होता रहता है। जून से सितम्बर के मानसून के महीनों में बहुत बड़ा इलाक़ा बाढ़ से घिर जाता है। 1787 से यमुना ने अनेक बार मार्ग बदला है और नदी कभी भी लगातार दो वर्षो तक एक जगह पर नहीं टिकी। मौसम के साथ नदी में टापू और ज़मीन के नए अवसादित टुकड़े (चार) प्रकट होकर गायब हो जाते हैं। बांग्लादेश की अर्थव्यवस्था में ये 'चार' अतिरिक्त खेती के क्षेत्रों के रूप में महत्वपूर्ण हैं।
  • तिब्बत में ब्रह्मपुत्र का पानी साफ़ है, क्योंकि प्रवाह के साथ बहुत कम रेत बहती है, किन्तु जैसे ही नदी असम घाटी में प्रवेश करती है, रेत की मात्रा बढ़ जाती है। बारिश में भीगी हिमालयी ढलान से नीचे उतरने वाली उत्तरी उपनदियों में गति और पानी की मात्रा के कारण बहने वाली मिट्टी की मात्रा उन उपनदियों के मुक़ाबले ज़्यादा है, जो दक्षिण की ओर पुराने पठार की चट्टानों को पार करती है। असम में ब्रह्मपुत्र की गहरी धारा उत्तरी तट के मुक़ाबले दक्षिणी तट पर ज़्यादा रहती है। मिट्टी से लदी उत्तरी उपनदियों द्वारा नहर को दक्षिण की ओर धकेलने से यह प्रवृत्ति और बलवती होती है।
  • नदी की एक और महत्वपूर्ण जल वैज्ञानिक ख़ूबी इसकी बाढ़ की प्रतृत्ति है। भारत और बांग्लादेश में ब्रह्मपुत्र द्वारा वाहित पानी की मात्रा बहुत अधिक है, बरसात के मौसम में पानी का बहाव 14,200 क्यूबिक मीटर प्रति सेकेंड अनुमानित है। असम घाटी उत्तर, पूर्व और दक्षिण में पहाड़ी श्रृंखलाओं से घिरी हुई है और यहाँ पर वर्ष में 2,540 मिमी से अधिक वर्षा होती है। जबकि बंगाल के मैदानों में 1,778 से 2,540 मिमी की भारी वर्षा तिस्ता, तोरसा और जलढाका नदियों के भारी बहाव से बढ़ जाती है। ब्रह्मपुत्र घाटी में वृहद बाढ़, 1950 के असम भूकम्प से जुड़े भूस्खलन लगभग प्रतिवर्ष की घटनाएँ हो गई हैं। इसके अतिरिक्त बंगाल की खाड़ी से अंदर की ओर आते हुए उष्णकटिबंधीय चक्रवातों के साथ ज्वार—भाटे की लहरें नदीमुख क्षेत्र में समय—समय पर भारी तबाही मचाती हैं।

वनस्पति एवं प्राणी जीवन

असम का बहुत बड़ा भूभाग साल (राल देने वाले बहुमूल्य लकड़ी के पेड़) के जंगलों से घिरा है और विशाल बाढ़ से मैदानों के पानी भरे क्षेत्रों (झीलों) और दलदलों में लम्बे सरकंडों के जंगल उग जाते हैं। असम घाटी के आसपास की बस्तियों में कई फलों के पेड़, जैसे केले, पपीते, आम और कटहल उगाए जाते हैं। हर जगह बाँस के झुरमुट प्रचुर मात्रा में हैं।

असम में दलदलों का सबसे उल्लेखनीय पशु एक सींग वाला गैंडा है, जो अब विश्व के दूसरे भागों से लुप्त हो चुका है। काज़ीरंगा राष्ट्रीय उद्यान घाटी में गैंडों और दूसरे वन्य जीव, जिनमें हाथी, बाघ, तेंदुए, जंगली भैंसे और हिरन सम्मिलित हैं, को आश्रय प्रदान करता है। मछलियों की बहुत सी क़िस्मों में बेतकी, पबड़ा, रूही, चीतल और म्रिगल शामिल है। 1928 में स्थापित, 360 वर्ग किमी. में फैला मानस सेंचुरी ऐंड टाइगर रिज़र्व प्रोजेक्ट टाइगर के अंतर्गत आ गया है। यह अभ्यारण्य सभी भारतीय उद्योनों में सबसे आकर्षक माना जाता है। यहाँ पर वन्य जीवन के साथ ही समृद्ध पक्षी—जीवन भी विशिष्ट और प्रचुर है। इसी तरह वन्य जीव बरनाड़ी अभ्यारण्य (1980 में स्थापित) और गरमपान अभ्यारण्य (1952 में स्थापित) में तेंदुओं, शेरों, हाथियों, दृढ़लोमी खरगोशों और शूद्र शूकरों को देखा जा सकता है।

जनजीवन

ब्रह्मपुत्र घाटी के विभिन्न हिस्सों में रह रहे लोगों की उत्पत्ति और संस्कृति विविधतापूर्ण है। हिमालयी परकोटे के उत्तर में रहने वाले तिब्बती बौद्ध धर्म का पालन करते हैं और तिब्बती भाषा बोलते हैं। ये पशुपालन में संलग्न हैं और नदी से लिए गए सिंचाई जल से घाटी के खेतों में कृष करते हैं।

असमी लोग मंगोलियाई—तिब्बती, आर्य और बर्मी मूल का मिला—जुला समूह है। उनकी भाषा बांग्ला भारत में पश्चिम बंगाल राज्य और बांग्लादेश में बोली जाने वाली भाषा से मिलती—जुलती है।

19वीं सदी के अंत से अब तक बांग्लादेश के बंगाल मैदान से प्रवासियों का भारी संख्या में लाटी में प्रवेश हुआ है। जहाँ वह लगभग ख़ाली ज़मीनों, विशेष रूप से निचले बाढ़ के मैदानों को जोतने के लिए बस गए हैं। बंगाल मैदान में नदी उन क्षेत्रों से प्रवाहित होती है, जिसमें बंगाली सघन रूप से बसे हुए हैं और उपजाऊ घाटी में कृषि करते हैं। मैदान के पर्वतीय किनारों पर गारो, खासी और हाजोग नामक पहाड़ी जनजातियाँ निवास करती हैं।

अर्थव्यवस्था

सिंचाई और बाढ़ नियंत्रण

1954 के बाद बाढ़ नियंत्रण योजनाएँ और तटबंधों का निर्माण प्रारम्भ किए गए थे, बांग्लादेश में यमुना नदी के पश्चिम में दक्षिण तक बना ब्रह्मपुत्र तटबंध बाढ़ को नियंत्रित करने में सहायक सिद्ध होता है। तिस्ता बराज परियोजना, सिंचाई और बाढ़, दोनों की सुरक्षा योजना है। ब्रह्मपुत्र या असम घाटी से बहुत थोड़ी विद्युत पैदा की जाती है। जबकि उसकी अनुमानित क्षमता काफ़ी है। अकेले भारत में ही यह लगभग हो सकती है 12,000 मेगावाट है। असम में कुछ जलविद्युत केन्द्र बनाए गए हैं। जिनमें से सबसे उल्लेखनीय 'कोपली हाइडल प्रोजेक्ट' है और अन्य का निर्माण कार्य जारी है।

नौ—संचालन और परिवहन

तिब्बत में ला—त्जू (ल्हात्से दज़ोंग) के पास नदी लगभग 644 किमी. के एक नौकायन योग्य जलमार्ग से मिलती है। चर्मावृत नौकाएँ (पशु—चर्म और बाँस से बनी नौकाएँ) और बड़ी नौकाएँ समुद्र तल से 3,962 मीटर की ऊँचाई पर इसमें यात्रा करती हैं। त्सांगपो पर कई स्थानों पर झूलते पुल बनाए गए हैं।

असम और बांग्लादेश के भारी वाले क्षेत्रों में बहने के कारण ब्रह्मपुत्र सिंचाई से ज़्यादा अंतःस्थलीय नौ—संचालन के लिए महत्वपूर्ण है। नदी ने पंश्चिम बंगाल और असम के बीच पुराने समय से एक जलमार्ग बना रखा है। यद्यपि यदा—कदा राजनीतिक विवादों के कारण बांग्लादेश जाने वाला यातायात अस्त—व्यस्त हुआ है। ब्रह्मपुत्र बंगाल के मैदान और असम से समुद्र से 1,126 किमी. की दूरी पर डिब्रगढ़ तक नौकायन योग्य है। सभी प्रकार के स्थानीय जलयानों के साथ ही यंत्रचालित लान्च और स्टीमर भारी भरकम कच्चा माल, इमारती लकड़ी और कच्चे तेल को ढोते हुए आसानी से नदी मार्ग में ऊपर और नीचे चलते हैं।

1962 में असम में गुवाहाटी के पास सड़क और रेल, दोनों के लिए साराईघाट पुल बनने तक ब्रह्मपुत्र नदी मैदानों में अपने पूरे मार्ग पर बिना पुल के थी। 1987 में तेज़पुर के निकट एक दूसरा कालिया भोमौरा सड़क पुल आरम्भ हुआ। ब्रह्मपुत्र को पार करने का सबसे महत्वपूर्ण और बांग्लादेश में तो एकमात्र आधन नौकाएँ ही हैं। सादिया, डिब्रगढ़, जोरहाट, तेज़पुर, गुवाहाटी, गोवालपारा और धुबुरी असम में मुख्य शहर और नदी पार करने के स्थान हैं। बांग्लादेश में महत्वपूर्ण स्थान हैं, कुरीग्राम, राहुमारी, चिलमारी, बहादुराबाद घाट, फूलचरी, सरीशाबाड़ी, जगन्नाथगंज घाट, नागरबाड़ी, सीरागंज और गोउंडो घाट, अन्तिम रेल बिन्दु बहादुराबाद घाट, फूलचरी, जगन्नाथगंज घाट, सिराजगंज और गोवालंडो घाट पर स्थित है।

अध्ययन और अन्वेषण

ब्रह्मपुत्र का ऊपरी मार्ग 18वीं शताब्दी में ही खोज लिया गया था। हालाँकि 19वीं शताब्दी तक यह लगभग अज्ञात ही था। असम में 1886 में भारतीय सर्वेक्षक किंथूप (1884 में प्रतिवेदित) और जे.एफ़. नीढ़ैम की खोज ने त्सांग्पो नदी को ब्रह्मपुत्र के ऊपरी मार्ग के रूप में स्थापित किया। 20वीं शताब्दी के प्रथम चतुर्थांश में कई ब्रिटिश अभियानों ने त्सांग्पो की धारा के प्रतिकूल जाकर तिब्बत में जिह—का—त्से तक नदी के पहाड़ी दर्रों की खोज की।