लूटनीति मंथन करि -काका हाथरसी
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लूटनीति मंथन करि -काका हाथरसी
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कवि | काका हाथरसी |
मूल शीर्षक | 'लूटनीति मंथन करि' |
प्रकाशक | डायमंड पॉकेट बुक्स |
ISBN | 81-7182-156-0 |
देश | भारत |
भाषा | हिन्दी |
शैली | हास्य |
विशेष | इस पुस्तक में काका हाथरसी ने विभिन्न विषयों पर अपने विचारों को दोहों के रूप में व्यक्त किया है। |
लूटनीति मंथन करि हिन्दी के प्रसिद्ध हास्य कवि काका हाथरसी द्वारा सम्पादित है। इस पुस्तक में काकाजी ने विभिन्न विषयों पर अपने विचारों को दोहों के रूप में व्यक्त किया है। इनमें हास्य तो पर्याप्त मात्रा में है ही, इसके साथ ही व्यंग्य का रोचक समावेश भी इसमें है।
- काका हाथरसी जीवित किंवदंती थे। उनका व्यक्तित्व तथा उनकी सोच हास्य रस में पगी हुई थी। यह उनकी आसान शैली का ही कमाल था, जिसने लाखों लोगों को उनका दीवाना बनाया।
- हिन्दी के प्रसार-प्रचार में काका हाथरसी की अदृश्य किंतु प्रबल भूमिका रही थी, जिसको उनके समकालीन कवि एवं साहित्यकारों ने भी स्वीकार किया है।
- पुस्तक 'लूटनीति मंथन करि' में काका हाथरसी ने विभिन्न विषयों पर अपने विचार दोहों के रूप में व्यक्त किए हैं।
- काकाजी द्वारा प्रयुक्त दोहे अपने आप में किसी फ़लसफ़े से कम नहीं हैं और उनकी प्रगतिवादी सोच की झलक देते हैं। इनमें हास्य तो है ही, साथ-साथ व्यंग्य का भी रोचक पुट है।
- दोहों के माध्यम से काका हाथरसी ने आज की राजनीति तथा सामान्य जीवन में व्याप्त आचरण की अशुद्धता पर जमकर चोट की है। ये दोहे काकाजी की सशक्त लेखनी और शैली की प्रभावात्मकता का पुष्ट प्रमाण हैं।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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