प्रयोग:Shilpi
ऋषिकेश पर्यटन गढ़वाल, उत्तरांचल में हिमालय पर्वतों के तल में बसा ॠषिकेश धार्मिक दृष्टि के अतिरिक्त अपने प्राकृतिक सौन्दर्य के लिए भी प्रसिद्ध है। सुबह के समय पहाड़ियों के पीछे से निकलता हुआ सूर्य, गंगा के बहते पानी की कलकल, कोहरे से ढकी पहाड़ी चोटियाँ, यह एक ऐसा अनुभव होता है जिसको महसूस किया जा सकता है। यहाँ पर बहती गंगा की ख़ूबसूरती तो देखती ही बनती है। यहाँ के प्रमुख पर्यटन स्थल इस प्रकार हैं।
लक्ष्मण झूला
ऋषिकेश से 5 किलोमीटर आगे एक झूला है, इस झूले को लक्ष्मण झूले के नाम से जाना जाता है। यह झूला लोहे के मोटे रस्सों से बंधा है।गंगा नदी के एक किनारे को दूसरे किनारे से जोड़ता यह झूला शहर की खास पहचान है। इसे सन् 1939 ई॰ में बनवाया गया था। कहा जाता है कि गंगा नदी को पार करने के लिए लक्ष्मण ने इस स्थान पर जूट का झूला बनवाया था।
राम झूला
शिवानंद आश्रम के सामने एक झूलेनुमा पुल बना हुआ है, जिसे राम झूले के नाम से जाना जाता हैं। स्वर्गाश्रम क्षेत्र में जाने हेतु यह गंगा के उस पार से इस पार ले जाने का रास्ता है। यह पुल भार भी झेल सकता है। दुपहिया वाहन इसके ऊपर से अक्सर निकलते देखे जा सकते हैं। जब हम इसके ऊपर चलते हैं तो यह हमें झूलता हुआ महसूस होता है। हिचकोले खाते हुए, इस झूले के ऊपर से नीचे बह रही गंगा का विहंगम दृश्य देखा जा सकता है।
त्रिवेणी घाट
ऋषिकेश में स्नान करने का यह प्रमुख घाट है जहाँ प्रात: काल में अनेक श्रद्धालु पवित्र गंगा नदी में डुबकी लगाते हैं। कहा जाता है कि इस स्थान पर हिन्दू धर्म की तीन प्रमुख नदियों गंगा, यमुना और सरस्वती का संगम होता है। इसी स्थान से गंगा नदी दायीं ओर मुड़ जाती है। त्रिवेणी घाट पर एक छोर है जहाँ पर शिवजी की जटा से निकलती गंगा की मनोहर प्रतिमा है तो दूसरी ओर अर्जुन को गीता ज्ञान देते हुए श्री कृष्ण की मनोहारी विशाल मूर्ति और एक विशाल गंगा माता का मन्दिर हैं। घाट पर चलते हुए दूसरी ओर की सीढ़ियाँ उतरते हैं तब यहाँ से गंगा के सुंदर रूप के दर्शन होते हैं। शाम को यहाँ पर भव्य आरती होती है और गंगा में दीप छोड़े जाते हैं उस समय काफ़ी भीड़ होती है।
स्वर्ग आश्रम
स्वामी विशुद्धानन्द द्वारा स्थापित यह आश्रम ऋषिकेश का सबसे प्राचीन आश्रम है। स्वामी जी को काली कमली वाले नाम से भी जाना जाता था। इस स्थान पर बहुत से सुन्दर मंदिर बने हुए हैं। यहाँ खाने पीने के अनेक रेस्तराँ हैं जहाँ सिर्फ शाकाहारी भोजन ही परोसा जाता है। आश्रम की आसपास हस्तशिल्प के सामान की बहुत सी दुकानें हैं।
वसिष्ठ गुफा
ऋषिकेश से 22 किमी. की दूरी पर 3000 साल पुरानी वसिष्ठ गुफा बद्रीनाथ-केदारनाथ मार्ग पर स्थित है। इस स्थान पर बहुत से साधुओं को विश्राम और ध्यान लगाए देखा जा सकता है। कहा जाता है यह स्थान भगवान राम और बहुत से राजाओं के पुरोहित वसिष्ठ का निवास स्थल था। वसिष्ठ गुफा में साधुओं को ध्यानमग्न मुद्रा में देखा जा सकता है। गुफा के भीतर एक शिवलिंग भी स्थापित है।
गीता भवन
लक्ष्मण झूला पार करते ही गीता आश्रम है जिसे 1950 ई. में बनवाया गया था। यह अपनी दर्शनीय दीवारों के लिए प्रसिद्ध है। यहाँ रामायण और महाभारत के चित्रों से सजी दीवारें इस स्थान को आकर्षण बनाती हैं। यहाँ एक आयुर्वेदिक डिस्पेन्सरी और गीताप्रेस गोरखपुर की एक शाखा भी है। प्रवचन और कीर्तन मंदिर की नियमित क्रियाएँ हैं। शाम को यहाँ भक्ति संगीत का आनंद लिया जा सकता है। तीर्थयात्रियों के ठहरने के लिए यहाँ सैकड़ों कमरे हैं।
योग केन्द्र
यह विश्वप्रसिद्द योग केन्द्र है एवं कई विख्यात आश्रमों का घर है। यहाँ पहुँचने पर मंदिरों के लंबी कतारें दिखाई देना प्रारंभ हो जाता है। लक्ष्मण झूला, रामझूला, गीता भवन ये स्थान ऋषिकेश से थोडी दूर जिसका नाम "मुनि की रेती" है पर स्थित हैं। यहीं से कुछ मिनट की दूरी पर पतित पावन गंगा के दर्शन होते हैं। एक पक्के बँधे हुए विशाल घाट पर सीढ़ियाँ चढ़कर जब ऊपर आते है तब गंगामैया के दर्शन होते हैं।
मंदिर व मठ
ऋषिकेश में अनेक मंदिर व मठ हैं। सबका वर्णन किया जाना यहाँ संभव नहीं है। मगर उक्त स्थानों के अलावा सत्यनारायण मंदिर, स्वर्गाश्रम, शिवानन्द आश्रम, काली कमलीवाला पंचायती क्षेत्र देखने योग्य है, जिनकी जीवन पद्धति, सिद्धांत, जनकल्याण का भाव, भक्ति प्रवाह अतुलनीय है। ऋषिकेश कुल मिलाकर आत्म चेतना का केन्द्र है, जो न केवल ज्ञान और भक्ति का अलख जगाता है बल्कि भविष्य का पथ प्रदर्शक भी है। यहाँ माया कुंद नामक जगह है जहाँ पर हनुमानजी का मन्दिर है तथा यहाँ मन्दिर की नीति नियमों के साथ रहना पड़ता है एवं यहाँ शाम को सुंदर आरती होती है।
नीलकंठ महादेव मंदिर
लगभग 5500 फीट की ऊँचाई पर स्वर्ग आश्रम की पहाड़ी की चोटी पर नीलकंठ महादेव मंदिर स्थित है। कहा जाता है कि भगवान शिव ने इसी स्थान पर समुद्र मंथन से निकला विष ग्रहण किया था।
भरत मंदिर
यह ऋषिकेश का सबसे प्राचीन मंदिर है जिसे 12 शताब्दी में आदि गुरू शंकराचार्य ने बनवाया था। यह मन्दिर बहुत ही सुंदर है। भगवान राम के छोटे भाई भरत को समर्पित यह मंदिर त्रिवेणी घाट के निकट ओल्ड टाउन में स्थित है। मंदिर का मूल रूप 1398 में तैमूर आक्रमण के दौरान क्षतिग्रस्त कर दिया गया था। हालांकि मंदिर की बहुत सी महत्वपूर्ण चीजों को उस हमले के बाद आज तक संरक्षित रखा गया है। मंदिर के अंदरूनी गर्भगृह में भगवान विष्णु की प्रतिमा एकल शालिग्राम पत्थर पर उकेरी गई है। आदि गुरू शंकराचार्य द्वारा रखा गया श्रीयंत्र भी यहाँ देखा जा सकता है।
अय्यपा मन्दिर
ऋषिकेश में इसी तरह अय्यपा मन्दिर जो कि बहुत दर्शनीय है। यह दिल्ली से महज 225 किमी की दूरी पर है। यहीं से 25 किमी की दूरी पर हरिद्वार है जहाँ रेल एवं बस सेवा प्रचुर मात्रा में हैं यहाँ पर पर्यटक वर्षभर आते रहते हैं और यहाँ ठहरने के लिए होटल, आश्रम, एवं धर्मशाला हैं
कैलाश निकेतन मंदिर
लक्ष्मण झूले को पार करते ही कैलाश निकेतन मंदिर है। 12 खंड़ों में बना यह विशाल मंदिर ऋषिकेश के अन्य मंदिरों से भिन्न है। इस मंदिर में सभी देवी देवताओं की मूर्तियाँ स्थापित हैं।