मुद्राराक्षस

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मुद्राराक्षस चौथी शती के उत्तरार्द्ध एवं पांचवी शती ई. के पूर्वार्द्ध में संस्कृत का एक ऐतिहासिक नाटक है। इसके रचनाकार विशाखदत्त थे। इस नाटक में इसमें इतिहास और राजनीति का सुन्दर समन्वय प्रस्तुत किया गया है। विशाखदत्त ऐतिहासिक प्रवृत्ति के लेखक हैं। इनके नाटक वीर रस प्रधान हैं। 'मुद्राराक्षस' में प्रेमकथा, नायिका, विदूषक आदि का अभाव है तथा इस दृष्टि से यह संस्कृत साहित्य में अपना अलग स्थान रखता है। इस ग्रंथ के चरित्र-चित्रण में विशेष निपुणता का प्रदर्शन मिलता है।

  • विशाखदत्त के इस नाटक में चाणक्य और चन्द्रगुप्त मौर्य संबंधी ख्यात वृत्त के आधार पर चाणक्य की राजनीतिक सफलताओं का अपूर्व विश्लेषण मिलता है।
  • 'मुद्राराक्षस' की रचना पूर्ववर्ती संस्कृत-नाट्य परंपरा से सर्वथा भिन्न रूप में हुई। लेखक ने भावुकता, कल्पना आदि के स्थान पर जीवन-संघर्ष के यथार्थ अंकन पर बल दिया है।
  • इस महत्त्वपूर्ण नाटक को हिन्दी में सर्वप्रथम अनूदित करने का श्रेय भारतेंदु हरिश्चंद्र को प्राप्त है। यद्यपि कुछ अन्य लेखकों ने भी 'मुद्राराक्षस' का अनुवाद किया, किंतु जो ख्याति भारतेंदु हरिश्चंद्र के अनुवाद को प्राप्त हुई, वह किसी अन्य को नहीं मिल सकी।
  • इस नाट्य कृति में इतिहास और राजनीति का सुन्दर समन्वय प्रस्तुत किया गया है। इसमें नन्द वंश के नाश, चन्द्रगुप्त मौर्य के राज्यारोहण, राक्षस के सक्रिय विरोध, चाणक्य की राजनीति विषयक सजगता और अन्ततः राक्षस द्वारा चन्द्रगुप्त के प्रभुत्व की स्वीकृति का उल्लेख हुआ है।
  • 'मुद्राराक्षस' में साहित्य और राजनीति के तत्त्वों का मणिकांचन योग मिलता है, जिसका कारण सम्भवतः यह है कि विशाखदत्त का जन्म राजकुल में हुआ था। वे सामन्त बटेश्वरदत्त के पौत्र और महाराज पृथु के पुत्र थे।
  • 'मुद्राराक्षस' की कुछ प्रतियों के अनुसार विशाखदत्त महाराज भास्करदत्त के पुत्र थे।
  • संस्कृत की भाँति हिन्दी में भी 'मुद्राराक्षस' के कथानक को लोकप्रियता प्राप्त हुई है, जिसका श्रेय भारतेन्दु हरिश्चन्द्र को है।
  • इस नाटक के रचना काल के विषय में तीव्र मतभेद हैं, अधिकांश विद्धान इसे चौथी-पाँचवी शती की रचना मानते हैं, किन्तु कुछ ने इसे सातवीं-आठवीं शती की कृति माना है।


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