लैला मजनूं
लैला मजनूं अरबी संस्कृति में एक ऐतिहासिक प्रेमकथा है। अरबी संस्कृति में दुखांत प्रेम कहानियों की पूरी श्रृंखला है, जिनमें कैस-लुबना, मारवा-अल मजनूं अल फरांसी, अंतरा-अबला, कुथैर-अजा, लैला-मजनूं की कहानियां प्रमुख हैं। लैला-मजनूं की प्रेम कहानी नई नहीं है। अरब के बानी आमिर जनजाति का था यह कवि यानी मजनूं। लैला भी इसी जाति से आती थीं। लैला के पिता के विरोध के कारण इनका विवाह नहीं हो सका और लैला किसी और की पत्नी हो गई। मजनूं पागल हो गए, इसी पागलपन में उन्होंने कई कविताएं रचीं। लैला पति के साथ ईराक चली गई, जहां कुछ ही समय बाद बीमार होकर उनकी मृत्यु हो गई। मजनूं भी कुछ समय बाद मौत की गोद में चले गए। अरब और हबीब लोक साहित्य से लेकर फ़ारसी साहित्य तक यह प्रेम कथा कई रूपों में सामने आई। आम लोग इसे निजामी के पर्सियन संस्करण से ही जानते हैं। कहा जाता है कि रोमियो जूलियट की कहानी लैला-मजनूं का ही लैटिन संस्करण है।
प्रसिद्धि
लैला मजनूं की प्रेम कहानी किसी काल्पनिक कहानी से कम नहीं। लेकिन यह सच है। सदियों से लैला मजनूं की दास्तान सुनी और सुनाई जाती है और आज भी यह कहानी अमर है। यह उस दौर की कहानी है जब प्रेम को बर्दाश्त नहीं किया जाता था और प्रेम को एक सामाजिक बुराई की तरह देखा जाता था। लैला मजनूं का प्रेम लंबे समय तक चला और आखिर इसका अंत दुखदायी हुआ। दोनों जानते थे कि वे कभी एक साथ नहीं रह पाएंगे। इसीलिए उन्होंने मौत को गले लगा लिया। एक दूसरे के लिए प्रेम की इस असीम भावना के साथ दोनों सदा के लिए इस दुनिया से दूर चले गए। उनके प्रेम की पराकाष्ठा यह थी कि लोगों के उन दोनों के नाम के बीच में ’और’ लगाना भी मुनासिब नहीं समझा एवं दोनो हमेशा ’लैला-मजनूं’ के रूप में ही पुकारे गए। बाद में प्यार करने वालों के लिए यह बदनसीब प्रेमी युगल एक आदर्श बन गया। प्रेम में गिरफ्तार हर लड़की को लैला कहा जाने लगा और प्यार में दर-दर भटकने वाले आशिक को मजनूं की संज्ञा दी जाने लगी।[1]
लैला मजनूं की मजार
लैला और मजनूं को भारतीय रोमियो जूलियट कहा जाता है। प्रेमी जोड़ों को भी यहां लैला मजनूं के नाम से पुकारा जाता है। एक दूसरे के प्रेम में आकंठ डूबे लैला मजनूं ने प्रेम में विफल होने के बाद अपनी जान दे दी थी। जमाने की रुसवाईयों के बावजूद सुनने में थोड़ा अजीब लगता है कि दोनो की मजारें बिल्कुल पास पास हैं। राजस्थान के गंगानगर जिले में अनूपगढ से 11 किमी की दूरी पर स्थित यह मजार लोगों को प्रेम का अमर किस्सा बयान करती प्रतीत होती है। खास बात यह है कि भारत-पाकिस्तान बॉर्डर के नजदीक स्थित यह मजार हिन्दू मुस्लिम और भारत पाकिस्तान के भेद से बहुत ऊपर उठ चुकी है। यहां हिंदू भी आकर सर झुकाते हैं और मुस्लिम भी। भारतीय भी आते हैं और पाकिस्तानी भी। सार यह है कि प्रेम धर्म और देशों की सीमाओं से सदा सर्वदा मुक्त रहा है। आज़ादी से पूर्व भारत और पाकिस्तान एक ही थे। यह देश मुस्लिम देशों की सीमाओं से लगा हुआ था। विभाजन के बाद भारत और पाकिस्तान दो देश बन गए और इन दोनों देशों को परस्पर दुश्मन के तौर पर देखा गया। राजस्थान पंजाब और कश्मीर की सीमाएं पाकिस्तान से लगती हैं और समय समय पर सीमा पर तनाव की खबरें भी आती हैं। लेकिन दुश्मनी की इसी सीमा पर राजस्थान में एक स्थान ऐसा भी है जहां नफरत के कोई मायने नहीं हैं। जहां सीमाएं कोई अहमियत नहीं रखती है। यह स्थान राजस्थान के गंगानगर जिले की अनूपगढ तहसील के करीब है, जहां लैला मजनूं की मजारें प्रेम का संदेश हवाओं में महकाती हैं। अनूपगढ के बिजनौर में स्थित ये मजारें पाकिस्तान की सीमा से महज 2 किमी अंदर भारत में हैं। स्थानीय लोगों की मान्यता है कि अपने प्रेम को बचाने समाज से भागे इस प्रेमी जोड़े ने राजस्थान के इसी बिजनौर गांव में शरण ली और यहीं अंतिम सांस भी ली। इस स्थल को मुस्लिम लैला मजनूं की मजार कहते हैं और हिंदू इसको लैला मजनूं की समाधि कहते हैं।[1]
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ 1.0 1.1 लैला मजनूं की मजार (हिंदी) pinkcity। अभिगमन तिथि: 23 अगस्त, 2013।