महाजनपद

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
गोविन्द राम (वार्ता | योगदान) द्वारा परिवर्तित 12:49, 16 नवम्बर 2013 का अवतरण
(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ:नेविगेशन, खोजें
महाजनपद
महाभारतकालीन भारत का मानचित्र
महाभारतकालीन भारत का मानचित्र
विवरण भारत के सोलह महाजनपदों का उल्लेख ईसा पूर्व छठी शताब्दी से भी पहले का है।
उल्लेख बौद्ध और जैन धर्म के प्रारंम्भिक ग्रंथों में महाजनपद नाम के सोलह राज्यों का विवरण मिलता है।
शासन अधिकांशतः महाजनपदों पर राजा का ही शासन रहता था परन्तु गण और संघ नाम से प्रसिद्ध राज्यों में लोगों का समूह शासन करता था, इस समूह का हर व्यक्ति राजा कहलाता था।
अन्य जानकारी शासक किसानों, व्यापारियों और शिल्पकारों से कर तथा भेंट वसूल करते थे। संपत्ति जुटाने का एक उपाय पड़ोसी राज्यों पर आक्रमण कर धन एकत्र करना भी था।

प्रारंम्भिक भारतीय इतिहास में छठी शताब्दी ईसापूर्व को परिवर्तनकारी काल के रूप में महत्त्वपूर्ण माना जाता है। यह काल प्राय: प्रारंम्भिक राज्यों, लोहे के बढ़ते प्रयोग और सिक्कों के विकास के के लिए जाना जाता है। इसी समय में बौद्ध और जैन सहित अनेक दार्शनिक विचारधाराओं का विकास हुआ। बौद्ध और जैन धर्म के प्रारंम्भिक ग्रंथों में महाजनपद नाम के सोलह राज्यों का विवरण मिलता है। महाजनपदों के नामों की सूची इन ग्रंथों में समान नहीं है परन्तु वज्जि, मगध, कोशल, कुरु, पांचाल, गांधार और अवन्ति जैसे नाम अक्सर मिलते हैं। इससे यह ज्ञात होता है कि ये महाजनपद महत्त्वपूर्ण महाजनपदों के रूप में जाने जाते होंगे। अधिकांशतः महाजनपदों पर राजा का ही शासन रहता था परन्तु गण और संघ नाम से प्रसिद्ध राज्यों में लोगों का समूह शासन करता था, इस समूह का हर व्यक्ति राजा कहलाता था। भगवान महावीर और भगवान बुद्ध इन्हीं गणों से संबन्धित थे। वज्जि संघ की ही तरह कुछ राज्यों में ज़मीन सहित आर्थिक स्रोतों पर राजा और गण सामूहिक नियंत्रण रखते थे। स्रोतों की कमी के कारण इन राज्यों के इतिहास लिखे नहीं जा सके परन्तु ऐसे राज्य सम्भवतः एक हज़ार साल तक बने रहे थे।

राजधानी

हर एक महाजनपद की एक राजधानी थी जिसे क़िले से घेरा दिया जाता था। क़िलेबंद राजधानी की देखभाल, सेना और नौकरशाही के लिए भारी धन की ज़रूरत होती थी। सम्भवतः छठी शताब्दी ईसा पूर्व से ब्राह्मणों ने संस्कृत भाषा में धर्मशास्त्र ग्रंथों की रचना प्रारम्भ की। इन ग्रन्थों में राजा व प्रजा के लिए नियमों का निधार्रण किया गया और यह उम्मीद की जाती थी कि राजा क्षत्रिय वर्ण के ही होंगे। शासक किसानों, व्यापारियों और शिल्पकारों से कर तथा भेंट वसूल करते थे। संपत्ति जुटाने का एक उपाय पड़ोसी राज्यों पर आक्रमण कर धन एकत्र करना भी था। कुछ राज्य अपनी स्थायी सेनाएँ और नौकरशाही तंत्र भी रखते थे और कुछ राज्य सहायक-सेना पर निर्भर करते थे जिन्हें कृषक वर्ग से नियुक्त किया जाता था।

सोलह महाजनपद

भारत के सोलह महाजनपदों का उल्लेख ईसा पूर्व छठी शताब्दी से भी पहले का है। ये महाजनपद थे-

  1. कुरु- मेरठ और थानेश्वर; राजधानी इन्द्रप्रस्थ
  2. पांचाल- बरेली, बदायूं और फ़र्रुख़ाबाद; राजधानी अहिच्छत्र तथा कांपिल्य
  3. शूरसेन- मथुरा के आसपास का क्षेत्र; राजधानी मथुरा
  4. वत्सइलाहाबाद और उसके आसपास; राजधानी कौशांबी
  5. कोशल - अवध; राजधानी साकेत और श्रावस्ती
  6. मल्लज़िला देवरिया; राजधानी कुशीनगर और पावा (आधुनिक पडरौना)
  7. काशी- वाराणसी; राजधानी वाराणसी
  8. अंग - भागलपुर; राजधानी चंपा
  9. मगध – दक्षिण बिहार, राजधानी गिरिव्रज (आधुनिक राजगृह)।
  10. वृज्जि – ज़िला दरभंगा और मुजफ्फरपुर; राजधानी मिथिला, जनकपुरी और वैशाली
  11. चेदि - बुंदेलखंड; राजधानी शुक्तिमती (वर्तमान बांदा के पास)।
  12. मत्स्य - जयपुर; राजधानी विराट नगर
  13. अश्मक – गोदावरी घाटी; राजधानी पांडन्य।
  14. अवंति - मालवा; राजधानी उज्जयिनी
  15. गांधार- पाकिस्तान स्थित पश्चिमोत्तर क्षेत्र; राजधानी तक्षशिला
  16. कंबोज – कदाचित आधुनिक अफ़ग़ानिस्तान; राजधानी राजापुर।

इनमें से क्रम संख्या 1 से 7 तक तथा संख्या 11,ये आठ जनपद अकेले उत्तर प्रदेश में स्थित थे। काशी, कोशल और वत्स की सर्वाधिक ख्याति थी।


पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

संबंधित लेख