राधाकृष्णदास

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राधाकृष्णदास (जन्म- 1865, वाराणसी, उत्तर प्रदेश; मृत्यु- 1902) 'आधुनिक हिन्दी साहित्य के पितामह' कहे जाने वाले भारतेन्दु हरिश्चन्द्र के फुफेरे भाई थे। हिन्दी साहित्य में इन्हें मुख्यत: एक नाटककार के रूप में जाना जाता है।[1]

  • वाराणसी में जन्में बाबू राधाकृष्णदास अपने फुफेरे भाई भारतेन्दु जी के काफ़ी निकट थे, जिस कारण भारतेंदु जी की इन पर विशेष कृपा थी।
  • भारतेन्दु हरिश्चन्द्र की निकटता होने के कारण ही राधाकृष्णदास हिन्दी लेखन की ओर अग्रसर हुए।
  • ‘दुःरिभी बाला’ राधाकृष्णदास की पहली रचना थी। 'निःसहाय हिन्दू', 'महारानी पद्मावती’ तथा 'प्रताप नाटक' आदि इनकी अन्य रचनाएँ हैं।
  • राधाकृष्णदास को हिन्दी साहित्य में मुख्यतः एक नाटककार की हैसियत से जाना जाता है।
  • 'निःसहाय हिन्दू' इनका मौलिक उपन्यास है। 'रहिमन विलास’ नामक पुस्तक में ‘कुण्डलियों’ की रचना अद्वितीय है।
  • गोपालचन्द्र 'गिरिधरदास' तथा ‘भारतेन्दु की जीवनी’ इन्हें उत्कृष्ट जीवनी लेखक के रूप में स्थापित करती है।
  • इतिहास की दृष्टि से इनकी ‘हिन्दी भाषा के सामयिक पत्रों का इतिहास’ रचना प्रमुख है।
  • राधाकृष्णदास ‘नागरी प्रचारिणी सभा’ की स्थापना के प्रमुख सहयोगी तथा उसके अध्यक्ष थे।
  • वर्ष 1906 में ये ‘नागरी प्रचारिणी पत्रिका’ के सम्पादक भी रहे थे।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. काशी कथा, साहित्यकार (हिन्दी)। । अभिगमन तिथि: 10 जनवरी, 2014।

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