गोमेध
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गोमेध एक विशेष प्रकार का यज्ञ है। इस यज्ञ में गौ (गाय) का आलंभन[1] किया जाता है, अत: इसके लिये 'गवालंभ' शब्द भी प्रयुक्त होता है। पहले अनेक अवसरों पर 'गो' या 'वृष' का वध किया जाता था।[2] मधुपर्क में गौवध भी बहुधा कहा गया है।[3]
- श्राद्ध में भी गौवध का प्रसंग है। शूलगव में भी वृषवध उल्लिखित हुआ है।[4]बाद में ये कर्म कलिवर्ज्य मान लिए गए।[5]
- 'गोमेध' या 'गोसव' के विशिष्ट विवरण अनेकत्र हैं, जिससे यह निश्चित होता है कि प्राचीन काल में यज्ञ में गौवध वैध रूप से किया जाता था। बाद में हानि देखकर क्रमश: यह प्रथा त्याज्य हो गई।
- 'चरकसंहिता' सदृश प्रामाणिक ग्रंथ में यज्ञीय गौवध पर कहा गया है कि- "पृष्घ्रा ने पहले गौवध किया था"।[6]
- गोमेध और पशु यज्ञसंबंधी विशिष्ट तथ्य इतिहास तथा पुराणों में हैं और पूर्वव्याख्याकारों ने उसे 'गौपशु' का साक्षात् वध ही माना है।
- एक गोसव नामक एकाह सोमयज्ञ है।[7]इस यज्ञ का विचित्र वर्णन है। वत्सर पर्यंत इस कर्म को करने वाला पशुव्रत पदवाच्य होता है।[8]गोसव संबंधी विवरण यज्ञतत्वप्रकाश में द्रष्टव्य है।[9]
इन्हें भी देखें: अश्वमेध यज्ञ, पंच महायज्ञ, वाजपेय एवं राजसूय यज्ञ
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