विद्यानन्द
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आचार्य विद्यानन्द / Acharya Vidhyanand
- आचार्य विद्यानन्द उन सारस्वत मनीषियों में गणनीय हैं, जिन्होंने एक-से-एक विद्वत्तापूर्ण ग्रन्थों की रचना की हैं।
- इनका समय ई॰ 775-840 है।
- इन्होंने अपने समग्र ग्रन्थ प्राय: दर्शन और न्याय पर ही लिखे हैं, जो अद्वितीय और बड़े महत्त्व के हैं। ये दो तरह के हैं-
- टीकात्मक, और
- स्वतंत्र।
- टीकात्मक ग्रन्थ निम्न हैं-
- तत्त्वार्थश्लोकवार्तिक (साभाष्य),
- अष्टसहस्री (देवागमालंकार) और
- युक्त्यनुशासनालंकार।
- प्रथम टीका आचार्य गृद्धपिच्छ के तत्त्वार्थसूत्र पर पद्यवार्तिकों और उनके विशाल भाष्य के रूप में है।
- द्वितीय टीका आचार्य समन्तभद्र के देवागम (आप्तमीमांसा) पर गद्य में लिखी गयी अष्टसहस्री है।
- ये दोनों टीकाएँ अत्यन्त दुरूह, क्लिष्ट और प्रमेयबहुल हैं। साथ ही गंभीर और विस्तृत भी हैं।
- तीसरी टीका स्वामी समन्तभद्र के ही दूसरे तर्कग्रन्थ युक्त्यनुशासन पर रची गयी है।
- यह मध्यम परिमाण की है और विशद है।
- इनकी स्वतन्त्र कृतियाँ निम्न प्रकार हैं-
- विद्यानन्दमहोदय,
- आप्त-परीक्षा,
- प्रमाण-परीक्षा,
- पत्र-परीक्षा,
- सत्यशासन-परीक्षा और
- श्री पुरपार्श्वनाथस्तोत्र।
- इस तरह इनकी 9 कृतियाँ प्रसिद्ध हैं।
- इनमें 'विद्यानन्द महोदय' को छोड़कर सभी उपलब्ध हैं।
- सत्यशासनपरीक्षा अपूर्ण है, जिससे वह विद्यानन्द की अन्तिम रचना प्रतीत होती है।
- विद्यानन्द और उनके व्यक्तित्व एवं कृतित्व आदि पर विस्तृत विमर्श इस लेख के लेखक द्वारा लिखित आप्तपरीक्षा की प्रस्तावना तथा 'जैन दर्शन और प्रमाणशास्त्र परिशीलन<balloon title="पृ0 262-312" style=color:blue>*</balloon>' में किया गया है। वह दृष्टव्य है।