कीटोन
कीटोन वे कार्बनिक यौगिक हैं, जिनमें कार्बनिक समूह होता है और जिनका सामान्य सूत्र R-CO-R होता है। यदि R तथा R एक ही मूलक हो तो कीटोन को सरल कीटोन और यदि R तथा R विभिन्नमूलक हों तो उसे मिश्रित कीटोन कहते हैं। वे कीटोन जिनमें दो कार्बनिल समूह होते हैं द्वि-कीटोन कहलाते हैं। कुछ चक्रीय कीटोन, जिनमें, कार्बन की संख्या अधिक होती हैं, जैसे- सिवेटोन या मसकोन, सुगंधित पदार्थ बनाने के काम आते हैं।
प्रयोग
सरल कीटोन का सबसे साधारण उदाहरण ऐसीटोन है, जो कार्बाइट नामक विस्फोटक पदार्थ बनाने में विलायक के रूप में प्रयुक्त होता है। मिश्रित कीटोन का साधारण उदाहरण ऐसीटोफीनोन है, जो हिपनोन के नाम से नींद लाने वाली दवा के रूप में प्रयुक्त होता है।[1]
बनाने की विधियाँ
- द्वितीयक ऐलकोहलों के आक्सीकरण से
- उष्मा या उत्प्रेरकों की सहायता से द्वितीयक ऐलकोहलों के विहाइड्रोजनीकरण से
- कार्बनिक अम्लों के कैल्सियम लवणों के शुष्क आसवन करने से। इसके लिए थोरिआ, जिरकोनिआ या मैंगनस आक्साइड का 400-450 से. उपयोग होता है
- ऐसीटिलीन यौगिकों को तन सल्फयुरिक अम्ल तथा मरक्यूरिक सल्फेट की उपस्थिति में जलयोजित करने से - R-C=CH-RCOCH3
- नाइट्राइल, एस्टर या अम्ल क्लोराइड पर ग्रीनयार्ड अभिकर्मक की क्रिया से
- कार्बनिक यौगिकों में उपस्थित -CH2- मूलक का -CO- में सिलीनियम डाइऑक्साइड या क्रोमिक अम्ल द्वारा आक्सीकरण करने से
- फ्रीडेल क्राफ़्ट की अभिक्रिया से
- अम्ल क्लोराइडों के रोजेनमुंड विधि द्वारा अवकरण से
- श्रृंखला के बीच एक ही कार्बन में संसुक्त दो हैलोजन परमाणु वाले यौगिकों के जल विश्लेषण से
सामान्य अभिक्रियाएँ
कार्बनिल समूह कीटोनों के अतिरिक्त ऐल्डिहाइडों में भी होता है। अंतर केवल इतना है कि ऐल्डिहाइडों में R के स्थान पर हाइड्रोजन होता है। इसीलिए इन दो वर्गों के यौगिक आपस में पर्याप्त समानता प्रदर्शित करते हैं। सोडियम तथा एल्कोहल द्वारा अवकरण करने पर कार्बनिल >CO, समूह द्वितीयक ऐलकोहल >CHOH, में बदल जाता है। कीटोन के कैथोड अवकरण से प्राप्त पदार्थ पिनेकोल कहलाते हैं। जिंक या ऐल्यूमिनियम संरस[2] तथा हाइड्रोक्लोरिक अम्ल कार्बनिक समूह का - CH2- में अवकरण कर देते हैं। ऐल्यूमिनियम ऐल्कासाइड, लिथियम या ऐल्यूमिनियम हाइड्राइड या सोडियम बोरोहाइड्राइड जैसे कुछ नए अपचायक कार्बनिल समूह का तो >CHOH में अवकरण कर देते हैं, परंतु यौगिक में उपस्थित अन्य अवकृत हो सकने वाले समूहों पर इनका कुछ प्रभाव नहीं होता। कीटोनों का ऑक्सीकरण करने से अम्लों के मिश्रण प्राप्त होते हैं, पर प्रत्येक अम्ल में कार्बन परमाणुओं की संख्या कीटोन कम होती है। सोडियम बाइसल्फाइट या हाइड्रोजन सायनाइड के साथ ये योगशील यौगिक बनाते हैं। फेनिल हाइड्राज़ीन (या इसके व्युत्पन्न), हाइड्राक्सिल ऐमिन, सेमिकार्बाज़ाइड आदि पदार्थों के साथ अभिक्रिया करके कीटोन हाइड्रोजोन, आक्सिम या सेमिकार्बाज़ोन बनाते हैं।[1]
समूह
वे कीटोन, जिनमें दो कार्बनिल समूह होते हैं, द्वि-कीटोन कहलाते हैं। यदि ये पास पास हुए, जैसे- द्विऐसीटिल CH3 COCO CH3 में, तो इनको ऐल्फा द्विकीटोन कहते हैं। यदि इनके बीच में एक कार्बन हुआ, जैसे- ऐसीटिल ऐसीटोन CH3 CO CH2 CO CH3 में तो इनको बीटा-द्वि-कीटोन कहते हैं और यदि बीच में दो कार्बन हुए, जैसे- ऐसीटोनील ऐसीटोन CH3 CO CH2 CH2 CO CH3 में तो इनको गामा-द्वि-कीटोन कहते हैं। बीटा-द्वि-कीटोन तथा बीटा-किटोनिक-एस्टर, जैसे- ऐसीटोऐ-सीटिक एस्टर, अनेक प्रकार के कार्बनिक यौगिकों के संश्लेषण में विशेष महत्व रखते हैं।
कुछ चक्रीय कीटोन, जिनमें कार्बन की संख्या अधिक होती हैं, जैसे- सिवेटोन या मसकोन, सुगंधित पदार्थ बनाने के काम आते हैं। मसकोन में मुश्क की गंध होती है। वनस्पति वर्ग से प्राप्त कुछ कीटोन विशेष महत्व रखते हैं। ऐसे कुछ कीटोन पाईथ्रोम[3] से तथा डेरिस इलिप्टिका[4] से प्राप्त होते हैं और इनका उपयोग कीटाणु नाशक पदार्थों के रूप में किया जाता है।[1]
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