कमाल अतातुर्क

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कमाल अतातुर्क उर्फ "मुस्तफ़ा कमाल पाशा" (1881-1938 ई.) को 'आधुनिक तुर्की का निर्माता' कहा गया है। साम्राज्यवादी शासक सुल्तान अब्दुल हमीद द्वितीय का तुर्की में पासा पलट कर वहाँ कमाल की सामाजिक, राजनीतिक व आर्थिक व्यवस्था कायम करने का जो क्रान्तिकारी कार्य कमाल अतातुर्क ने किया, उस ऐतिहासिक कार्य ने उनके नाम को सार्थक सिद्ध कर दिया था। कमाल अतातुर्क ने तुर्की सेना को अत्यंत आधुनिक ढंग से संगठित किया। उनके विशेष प्रयासों से ही तुर्क जाति आधुनिक जाति बनी।

जन्म तथा शिक्षा

मुस्तफ़ा कमाल पाशा का जन्म 1881 ई. में सलोनिका में एक किसान परिवार में हुआ था। 11 साल की उम्र में ही वह इतने दुर्दांत मान लिए गए थे कि उन्हें साधारण विद्यालय से निकाल देना पड़ा और वह सलोनिका में सैनिक विद्यालय के विद्यार्थी हो गए। वहाँ भी उनका वही स्वभाव बना रहा। पर उन्हें सैनिक विद्या में दिलचस्पी रही। 17 वर्ष की उम्र में मोनास्तीर के उच्च सैनिक विद्यालय में शिक्षा प्राप्त करने के बाद उन्हें सब-लेफ़्टिनेंट का पद देकर कुस्तुंतुनिया के 'स्टाफ़ कॉलेज' में भेज दिया गया।[1]

क्रांतिकारी दल के सदस्य

वहाँ वह अध्ययन के साथ-साथ बुरी संगत में घूमते रहे। कुछ काल तक उद्दंड जीवन बिताने के बाद वह 'वतन' नामक एक गुप्त क्रांतिकारी दल के सदस्य और थोड़े ही दिन में नेता बन गए। 'वतन' का उद्देश्य एक तरफ़ सुल्तान की तानाशाही और दूसरी तरफ़ विदेशियों के षड्यंत्रों को मिटाना था। एक दिन दल की बैठक हो रही थी कि एक गुप्तचर ने खबर दे दी और सबके सब षड्यंत्रकारी अफसर गिरप्तार करके जेल भेज दिए गए। प्रचलित क़ानून के अनुसार उन्हें मृत्युदंड दिया जा सकता था, पर दुर्बलचित्त सुल्तान को भय था कि कहीं ऐसा करने पर देश में विद्रोह न भड़क उठे, अत: उसने सबको क्षमादान करने का निश्चय किया। इस प्रकार कमाल छूट गए और द्रूज जाति के विद्रोह को दबाने के लिए दमिश्क भेजे गए। वहाँ कमाल ने अच्छा काम किया, पर कुस्तुंतुनिया लौटते ही उन्होंने 'वतन' दल का फिर से संगठन कर लिया।

स्थानांतरण

इस बीच उन्हें यह ज्ञात हुआ कि मकदूनिया में सुल्तान के विरुद्ध खुला विद्रोह होने वाला है। इस पर कमाल ने छुट्टी ले ली और वह जाफ़ा, मिस्र, एथेंस होते हुए वेश बदलकर विद्रोह के केंद्र सलोनिका पहुँचे। लेकिन वहाँ वह पहचान लिए गए। फिर वह ग्रीस होते हुए जाफ़ा भागे। पर तब तक उनकी गिरप्तारी का आदेश वहाँ पहुँच चुका था। 'अहमद बे' नामक एक अफसर पर कमाल अतातुर्क को पकड़ने का भार था, पर अहमद स्वयं वतन का सदस्य था, इसलिए उसने कमाल को गिरफ्तार करने बजाय उन्हें गाजा मोर्चे पर भेज दिया और यह रिपोर्ट भेज दी कि वह छुट्टी पर गए ही नहीं थे। यद्यपि कमाल अतातुर्क सलोनिका में बहुत थोड़े समय तक रह पाए थे, फिर भी वह समझ गए थे कि उसे ही विद्रोह का केंद्र बनना है, इसलिए बड़े प्रयत्नों के बाद 1908 में उन्होंने अपना स्थानांतरण वहाँ करा लिया।[1]

अनवर पाशा का शांति प्रयास

यहाँ अनवर के नेतृत्व में दो साल पहले ही 'एकता और प्रगति समिति' नाम से एक क्रांतिकारी दल की स्थापना हो चुकी थी। कमाल अतातुर्क फौरन इसके सदस्य बन गए, पर नेताओं से उनकी नहीं बनीं। फिर भी समिति का काम करते रहे। इस दल के एक नेता नियाज़ी ने केवल कुछ सौ आदमियों को लेकर तुर्की सरकार के विरुद्ध विद्रोह बोल दिया। हालांकि यह बड़ी मुर्खता की बात थी, पर देश तैयार था, इसलिए जो सेना उससे लड़ने के लिए भेजी गई, वह भी उससे जा मिली। इस प्रकार देश में अनवर का जय-जयकार हो गया। अब सह सम्मिलित सेना राजधानी पर आक्रमण करने की तैयारी कर रही थी। सुल्तान ने इन्हीं दिनों कुछ शासन सुधार भी किए। फिर भी विद्रोह की शक्तियाँ काम करती रहीं, पर जब विद्रोह सफल हो चुका, तब सुल्तान अब्दुल हमीद ने सेना के कुछ लोगों को यथेष्ट घूस देकर मिला लिया, जिससे सैनिकों ने विद्रोह करके अपने अफसरों को मार डाला और फिर एक बार इस्लाम, सुल्तान और खलीफ़ा की जय के नारे बुलंद हुए।

षड्यंत्र

इन दिनों अनवर बर्लिन में थे। वह जल्दी ही लौटे और उन्होंने अब्दुल हमीद को सिंहासनच्युत करके प्रतिक्रियावादियों के बीसियों नेताओं को फाँसी पर चढ़ा दिया और क्रांतिकारी समिति के हाथ में शक्ति आ गई। अब्दुल हमीद का भांजा सिंहासन पर नाममात्र के लिए बिठाया गया। अब कमाल अतातुर्क अनवर के विरुद्ध षड्यंत्र करते रहे, क्योंकि उनके विचार से अनवर अव्यावहारिक व्यक्ति थे, आदर्शवादी अधिक थे। अनवर ने इस समय होने वाले विदेशी आक्रमणों को भी प्रतिहत किया और इससे उनकी ख्याति और बढ़ी। इसके बाद अनवर ने अपने सर्व इस्लामी स्वप्न को सत्य करने के लिए कार्य आरंभ किया और उन्होंने इसके लिए सबसे पहला काम यह किया कि तुर्की सेना को संगठित करने का भार एक जर्मन जनरल को दिया। कमाल अतातुर्क ने इसके विरुद्ध आंदोलन किया कि यह तुर्की जाति का अपमान है। इस पर कमाल सैनिक दूत बनाकर सोफ़िया भेज दिए गए।

ग्रीक सेना से युद्ध

इसी बीच महायुद्ध छिड़ गया। इसमें अनवर सफल नहीं हो सके, पर कमाल अतातुर्क ने एक युद्ध में कुस्तुंतुनिया पर अधिकार करने की ब्रिटिश चाल को व्यर्थ कर दिया और उसके बाद उनकी जीत पर जीत होती चली गई। फिर भी महायुद्ध में तुर्की हार गया। कमाल दिन रात परिश्रम करके विदेशियों के विरुद्ध आंदोलन करते रहे। 1920 ई. में 'स्व्रो की संधि' की घोषणा हुई, पर इसकी शर्तें इतनी खराब थीं कि कमाल ने फौरन ही एक सेना तैयार कर कुस्तुंतुनिया पर आक्रमण की तैयारी की। इसी बीच ग्रीस ने तुर्की पर हमला कर दिया और स्मरना में सेना उतार दी जो कमाल अतातुर्क के प्रधान केंद्र अंगारा की तरफ़ बढ़ने लगी। अब कमाल अतातुर्क के लिए बड़ी समस्या पैदा हो गई, क्योंकि इस युद्ध में यदि वे हार जाते तो आगे कोई संभावना न रहती। उन्होंने बड़ी तैयारी के साथ युद्ध किया और धीरे-धीरे ग्रीक सेना को पीछे हटना पड़ा।[1]

राष्ट्रपति का पद

इस बीच फ़्राँस और रूस ने भी कमाल अतातुर्क को गुप्त रूप से सहायता देना शुरू किया। थोड़े दिनों में ही ग्रीक निकाल बाहर किए गए। ग्रीकों को भगाने के बाद ही अंग्रेज़ों के हाथ से बाकी हिस्से निकालने का प्रश्न था। देश कमाल अतातुर्क के साथ था, इसके अतिरिक्त ब्रिटेन अब लड़ने के लिए तैयार नहीं था। इस कारण यह समस्या भी सुलझ गई। कमाल ने देश को प्रजातंत्र घोषित किया और स्वयं प्रथम राष्ट्रपति बने।

मुल्लाओं का विरोध

अब राज्य लगभग निष्कंटक हो चुका था, पर मुल्लाओं की ओर से उनका विरोध हो रहा था। इस पर कमाल ने सरकारी अखबारों में इस्लाम के विरुद्ध प्रचार शुरू किया। अब तो धार्मिक नेताओं ने उनके विरुद्ध फ़तवे जारी कर दिए और यह कहा कि- "कमाल ने अंगारा में स्त्रियों को पर्दे से निकाला और और देश में आधुनिक नृत्य का प्रचार किया है, जिसमें पुरुष स्त्रियों से सटकर नाचते हैं। इसका अंत होना चहिए।" हर मस्जिद से यह आवाज उठाई गई। तब कमाल अतातुर्क ने 1924 ई. के मार्च में खिलाफत प्रथा का अंत करते हुए और तुर्की को धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र घोषित करते हुए एक विधेयक रखा। अधिकांश संसद सदस्यों ने इसका विरोध किया, पर कमाल ने उन्हें धमकाया। इस पर विधेयक पारित हो गया। लेकिन भीतर-भीतर मुल्लाओं के विद्रोह की आग सुलगती रही। कमाल अतातुर्क के कई भूतपूर्व साथी मुल्लाओं के साथ मिल गए। इन लोगों ने विदेशी पूँजीपतियों से धन भी लिया। कमाल अतातुर्क ने एक दिन इनके मुख्य नेताओं को गिरफ्तार पर फाँसी पर चढ़ा दिया।

सुधार कार्य

कमाल अतातुर्क ने देखा कि केवल फाँसी पर चढ़ाने से काम नहीं चलेगा, देश को आधुनिक रूप से शिक्षित करना है तथा पुराने रीति रिवाजों को ही नहीं, पहनावे आदि को भी समाप्त करना है। कमाल अतातुर्क ने हमला तुर्की टोपी पर किया। इस पर विद्रोह हुए, पर कमाल ने सेना भेज दी। इसके बाद इन्होंने इस्लामी क़ानूनों को हटाकर उनके स्थान पर एक नई संहिता स्थापित की, जिसमें स्विटज़रलैंड, जर्मनी और इटली की सब अच्छी बातें शामिल थीं। बहुविवाह ग़ैर-क़ानूनी घोषित कर दिया गया। इसके साथ ही पतियों से यह कहा गया कि वे अपनी पत्नियों के साथ ढोरों की तरह-व्यवहार न करके बराबरी का बर्ताव रखें। प्रत्येक व्यक्ति को वोट का अधिकार दिया गया। सेवाओं में घूस लेना निषिद्ध कर दिया गया और घूसखोरों को बहुत कड़ी सजाएँ दी गईं। पर्दा उठा दिया गया और पुरुष पुराने ढंग के परिच्छेद छोड़कर सूट पहनने लगे। इससे भी बड़ा सुधार यह था कि अरबी लिपि को हटाकर रोमन लिपि की स्थापना की गई। कमाल अतातुर्क स्वयं सड़कों पर जाकर रोमन वर्णमाला पढ़ाते रहे।[1]

निधन

इसके साथ ही कमाल अतातुर्क ने तुर्की सेना को अत्यंत आधुनिक ढंग से संगठित किया। इस प्रकार तुर्क जाति उनके कारण आधुनिक जाति बनी। 1938 ई. के नवम्बर में मुस्तफ़ा कमाल अतातुर्क की मृत्यु हुई तो आधुनिक तुर्की के निर्माता के रूप में उनका नाम संसार में चमक चुका था।



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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. 1.0 1.1 1.2 1.3 कमाल अतातुर्क (हिन्दी)। । अभिगमन तिथि: 14 जुलाई, 2014।

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