नाथूराम प्रेमी
नाथूराम प्रेमी (अंग्रेज़ी: Nathuram Premi ; जन्म- 26 नवम्बर, 1881, मध्य प्रदेश; मृत्यु- 30 जनवरी, 1960, महाराष्ट्र) प्रसिद्ध लेखक, कवि, भाषाविद और सम्पादक थे। वे अपनी रचनाएँ 'प्रेमी' उपनाम नाम से लिखते थे। नाथूराम जी ने संस्कृत, बंगला, मराठी और गुजराती भाषाओं का अच्छा ज्ञान प्राप्त किया। उन्होंने मौलिक ग्रंथों के प्रकाशन के साथ-साथ भारतीय भाषाओं, विशेषत: बंगला के मूर्धन्य साहित्यकारों की रचनाओं के अनुवाद प्रकाशित करके हिन्दी के भंडार को भरने का सराहनीय कार्य सम्पन्न किया था।
जन्म तथा शिक्षा
नाथूराम प्रेमी का जन्म 26 नवम्बर, सन 1881 ई. में मध्य प्रदेश के सागर ज़िले में 'देवरी' नामक स्थान पर हुआ था। इनके पिता का नाम टुंडेलाल मोदी था, जो लेन-देन का कार्य करते थे। अपने स्कूली दिनों में नाथूराम जी कक्षा के मॉनीटर थे। एक समय पिता के लेन-देन के काम में इतना घाटा हुआ कि साहूकर ने चूल्हे में चढ़ा दाल का बर्तन तक कुर्की में उठा लिया। इस गरीबी में पले नाथूराम प्रेमी ने प्रशिक्षण लेकर गाँव की अध्यापकी से अपना व्यावसायिक जीवन आरंभ किया। उस समय उन्हें सात रुपए मासिक वेतन मिलता था।
- विवाह
नाथूराम जी का विवाह 'रामा देवी' से सम्पन्न हुआ था, जो निकट के गाँव सरखेड़ा, ज़िला सागर की रहने वाली थीं।
कविता का शौक़
आगे के दिनों में नाथूराम प्रेमी को अमीर अली मीर के संपर्क में आने का अवसर मिला। इससे उनके अंदर कविता करने का शौक़ पैदा हुआ। वे 'प्रेमी' के उपनाम से कविताएँ लिखने लगे, जो 'रसिक मित्र', 'काव्य सुधाकर' आदि पत्रों में प्रकाशित हुईं। लेकिन उनका कवि रूप अल्पकालिक रहा। वे 'मुंबई प्रांतिक दिगंबर जैन सभा' में लिपिक रूप में काम करने के लिए मुंबई चले गए। यहाँ प्रेमी जी को विकास का प्रचुर अवसर मिला। उन्होंने संस्कृत, बंगला, मराठी और गुजराती भाषाओं का ज्ञान प्राप्त किया। 'जैन मित्र' नामक पत्र के संपादक भी वही थे। फिर स्वाभिमान पर चोट आते देखकर वे संस्था से अलग हो गए।[1]
प्रकाशन कार्य
उस समय मुंबई में 'जैन ग्रंथ रत्नाकर कार्यालय' नामक एक जैन संस्था साहित्य का प्रकाशन करती थी। यहाँ से 'जैन हितैषी' नामक मासिक पत्रिका भी प्रकाशित होती थी। नाथूराम प्रेमी इस संस्था में काम करने लगे। इस बीच उन्हें विविध प्रकार की पुस्तकें पढ़ने का अवसर मिला। उन्हीं में एक पुस्तक थी "स्वाधीनता"। यह जॉन स्टुअर्ट मिल के प्रसिद्ध ग्रंथ 'लिबर्टी' का महावीर प्रसाद द्विवेदी द्वारा किया हुआ अनुवाद था। नाथूराम जी जैन समाज की रूढ़ियाँ कम करने के लिए इस ग्रंथ की प्रतियाँ उसमें वितरित करना चाहते थे। यह ज्ञात होने पर कि पुस्तक उपलब्ध नहीं है, महावीर प्रसाद द्विवेदी से अनुमति लेकर उन्होंने स्वयं इसे प्रकाशित करने का निश्चय किया। इस प्रकार 'स्वाधीनता' के प्रकाशन के साथ 24 सितंबर, 1921 ई. को 'हिन्दी ग्रंथ रत्नाकर माला' का आरंभ हुआ। इस प्रकाशन संस्थान ने मौलिक ग्रंथों के प्रकाशन के साथ-साथ भारतीय भाषाओं, विशेषत: बंगला के मूर्धन्य साहित्यकारों की रचनाओं के अनुवाद प्रकाशित करके हिन्दी के भंडार को भरने का स्तुत्य कार्य किया।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ भारतीय चरित कोश |लेखक: लीलाधर शर्मा 'पर्वतीय' |प्रकाशक: शिक्षा भारती, मदरसा रोड, कश्मीरी गेट, दिल्ली |लिंक:- [422]
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