गोंद

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गोंद प्राकृतिक कलिलीय पदार्थ हैं, जिनका कोई निश्चित गलनांक अथवा क्वथनांक नहीं होता। जल में ये अंशत: घुलते, विस्तारित होते और फूल जाते हैं, जिससे जेली या म्यूसिलेज सा पदार्थ बनता है। एल्कोहल सदृश कार्बनिक विलायकों में ये नहीं घुलते। ये काबोहाइड्रेट वर्ग के यौगिक हैं।

प्रकार

गोंद विभिन्न प्रकार के होते हैं। कुछ गोंद जैसे बबूल का गोंद, घट्टी, कराया और ट्रेगाकैंथ पेड़ों से रस के रूप में निकलते हैं, कुछ समुद्री घासों से प्राप्त होते हैं और कुछ बीजों से प्राप्त होते हैं। गोंदों के प्रकार सैकड़ों हैं और उनके उपयोग भी व्यापक हैं। कुछ आहार में, पकवान, मिठाई आदि बनाने में, कुछ औषधों में, कुछ चिपकाने में, कुछ छींट आदि की छपाई में, कुछ काग़ज़ और वस्त्र के निर्माण में, कुछ रेशम के सज्जीकरण में, कुछ धावनद्रव और प्रसाधन संभार इत्यादि अनेक वस्तुओं के निर्माण में प्रयुक्त होते हैं। बबूल के गोंद का ज्ञान 2,000 ई.पू. से है। पहली शताब्दी से इसके व्यापार का उल्लेख मिलता है। अफ़्रीका, भारत और ऑस्ट्रेलिया में यह इकट्ठा किया जाता है। इसका रंग हल्के ऐंबर से लेकर सफ़ेद तक होता है। विरंजक से यह सफेद बनाया जा सकता है। लगभग 20 हजार टन गोंद प्रति वर्ष इकट्ठा होता है। ट्रेगाकैंथ गोंद भी बहुत प्राचीन काल से ज्ञात है। ऐस्ट्रेलेगैस (Astralagas) पेड़ से ईरान, तुर्क देश और सीरिया में यह गोंद निकाला जाता है। यह अंशत: घुलता और अंशत: फूलकर गाढ़ा श्यान द्रव बनता है

रासायनिक गुण

पेड़ों से प्राप्त गोंद पोटासियम, कैलसियम और मैग्नीशियम के उदासीन लवण होते हैं। इनके जलविश्लेषण से अनेक शर्कराएँ, कुछ अम्ल और सेलूलोज़ प्राप्त हुए हैं। विभिन्न स्त्रोतों से प्राप्त गोंद एक से नहीं होते। एक स्त्रोत से प्राप्त गोंद रसायनत: प्राय: एक से होते हैं। वे एंज़ाइम क्रिया से अवश्य बनते हैं, पर एंज़ाइम कहाँ से आता और कैसे कार्य करता है, यह ठीक ठीक मालूम नहीं है। संभवत: कार्बोहाइड्रेटों पर बैक्टीरिया या कवकों की क्रिया से गोंद बनते हैं। रोगग्रस्त पेड़ों से गोंद अधिक प्राप्त होता है।[1]


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. गोंद (हिंदी) भारतखोज। अभिगमन तिथि: 19 जुलाई, 2014।

बाहरी कड़ियाँ

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