नरहरि पारिख
नरहरि पारिख (अंग्रेज़ी: Narhari Parikh ; जन्म- 7 अक्टूबर, 1891, अहमदाबाद, गुजरात; मृत्यु- 1957) भारत के स्वतंत्रता सेनानियों में से एक थे। वे राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी के निकट सहयोगी थे। महात्मा गाँधी ने अपनी वसीयत में महादेव देसाई और नरहरि पारिख को अपना ट्रस्टी नियुक्त किया था। वर्ष 1937 में प्रथम कांग्रेस मंत्रिमंडल बनने पर नरहरि पारिख को बुनियादी शिक्षा बोर्ड का अध्यक्ष नियुक्त बनाया गया। नरहरि पारिख को एक अच्छे लेखक के रूप में भी जाना जाता था। उन्होंने कई जीवनियाँ भी लिखी थीं।
जन्म तथा शिक्षा
नरहरि पारिख का जन्म 7 अक्टूबर, 1891 ई. को गुजरात के अहमदाबाद में हुआ था। उन्होंने 'गुजरात कॉलेज' से अपनी स्नातक की शिक्षा पूर्ण की और फिर मुम्बई से क़ानून की डिग्री प्राप्त की। महादेव देसाई तथा नरहरि पारिख प्रारम्भ से ही आपस में घनिष्ठ मित्र थे।[1]
गाँधीजी के अनुयायी
वर्ष 1915 में जब महात्मा गाँधी के दक्षिण अफ़्रीका से लौट कर भारत आये, तब महादेव देसाई तथा नरहरि पारिख उनसे मिलने पहुँचे और सदा के लिए उनके अनुयायी हो गए।
आन्दोलन तथा सज़ा
1917 में कुछ दिन तक महात्मा गाँधी के आश्रम में रहने के बाद नरहरि पारिख चंपारन पहुंचे, जहाँ गाँधीजी 'सत्याग्रह' करने वाले थे। 1928 ई. में उन्होंने सरदार पटेल के साथ 'बारदोली सत्याग्रह' में भाग लिया। घरसाना के 'नमक सत्याग्रह' में सम्मिलित होने पर नरहरि पारिख को लाठियों से पीटा गया और तीन वर्ष की कैद की सज़ा हुई।[1]
अध्यापन कार्य
जेल से छुटने पर नरहरि पारिख 'साबरमती आश्रम' में काका कालेलकर, किशोरी लाल मशरूवाला आदि के साथ राष्ट्रीय शाला में अध्यापक का काम करने लगे। वर्ष 1920 में जब 'गुजरात विद्यापीठ' की स्थापना हुई तो इन्हें आश्रम से वहाँ भेज दिया गया। वे बाद में वहाँ के उपकुलपति बनाये गए। इस बीच नरहरि पारिख ने प्रौढ़ शिक्षा के क्षेत्र में नए प्रयोग किए। 1937 में प्रथम कांग्रेस मंत्रिमंडल बनने पर पारिख को 'बुनियादी शिक्षा बोर्ड' का अध्यक्ष नियुक्त किया गया। 1940 में वे 'सेवाग्राम' के 'ग्राम सेवक विद्यालय' के प्राचार्य भी बनाये गए थे।
लेखक
महात्मा गाँधी के आगा ख़ाँ महल से छूटने के बाद नरहरि पारिख कुछ दिन तक उनके निजी सचिव भी रहे। एक अच्छे लेखक के रूप में नरहरि पारिख जाने जाते थे। उन्होंने किशोरी लाल मशरूवाला, महादेव देसाई और सरदार पटेल की जीवनियाँ लिखी थीं। 'महादेव भाई की डायरी' के संपादन का श्रेय भी उनको ही जाता है।[1]
निधन
गाँधीजी के इस निकट सहयोगी, अनुयायी तथा स्वतंत्रता सेनानी का निधन वर्ष 1957 में हुआ।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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