गोपीनाथ मोहंती
गोपीनाथ मोहंती (अंग्रेज़ी: Gopinath Mohanty ; जन्म- 20 अप्रैल, 1914, नागबलि, उड़ीसा; मृत्यु- 20 अगस्त, 1991) उड़िया भाषा के प्रसिद्ध साहित्यकार थे। वर्ष 1930 से 1938 के बीच का समय इनके लेखक जीवन का निर्माण काल माना जाता है। गोपीनाथ मोहंती को 1973 में उनके योगदान के लिए 'ज्ञानपीठ पुरस्कार' से सम्मानित किया गया था। बाद में 1981 में भारत सरकार द्वारा इन्हें साहित्य एवं शिक्षा के क्षेत्र में 'पद्म भूषण' से पुरस्कृत किया गया।
जन्म
गोपीनाथ मोहंती का जन्म 20 अप्रैल, सन 1914 को उड़ीसा के एक छोटे-से ग्राम नागबलि में हुआ था, जो महानदी के किनारे अवस्थित है। इनके पिता सूर्यनाथ मोहंती एक विलक्षण व्यक्ति थे। गोपीनाथ मोहंती को अपने पिता का साथ अधिक समय तक नहीं मिला। जब गोपीनाथ मात्र 12 वर्ष की अवस्था के ही थे, तभी पिता उन्हें अनाथ छोड़कर चल बसे। लेकिन वे बालक गोपीनाथ की प्रकृति और जीवन के प्रति उसकी दृष्टि को उतने समय में ही दिशा रूप दे गए।
शिक्षा
जब तक पिता जीवित रहे, गोपीनाथ मोहंती की स्कूल की पढ़ाई सोनपुर में चली। पिता की मृत्यु के बाद वह भाई के पास पटना चले गए। यहीं से 1930 में उन्होंने मैट्रिक की परीक्षा उत्तीर्ण की। फिर वे कटक गए और 'रैवेंशॉ कॉलेज' से 1936 में अंग्रेज़ी में एम.ए. की डिग्री प्राप्त की।
भाषा भंडार में वृद्धि
गोपीनाथ मोहंती ने 1923 में उस समय गांव छोड़ दिया था, जब पिता नौकरी के लिए सोनपुर गए थे। उसके बाद वह थोड़े-थोड़े दिनों के लिए कभी-कभार ही गांव आए, किंतु नागबलि और आसपास के ग्रामीण परिवेश में बिताया हुआ छुटपन का काल उनकी चेतना पर सदा के लिए अंकित हो गया था, जो उनके उपन्यासों के लिए एक अद्भुत ढांचा प्रस्तुत करता रहा। इसी काल की एक अन्य बड़ी देन यह हुई कि ग्रामीण और कुलीन, दोनों समाजों में उठने-बैठने के फलस्वरूप उनकी भाषा का विपुल भंडार ही नहीं बढ़ा, बल्कि उसमें बोलचाल की रंगत और मुहावरेदारी की छटा भी आ गई।
लेखन
1930 से 1938 के बीच का समय गोपीनाथ मोहंती के लेखक जीवन का निर्माण काल माना जा सकता है। तीन प्रभावों की छाप उन पर पड़ रही थी। दो पश्चिम के और एक भारत का। मार्क्स व रूसी क्रांति और फ़्रॉयड पश्चिम के प्रभाव थे तथा महात्मा गाँधी व राष्ट्रीय आंदोलन भारत का प्रभाव था। गोपीनाथ गंभीर व व्यापक अध्ययन में लगे रहते थे। रोम्यां रोलां और मैक्सिम गोर्की उन्हें विशेष प्रिय व प्रभावित करते थे। वे उन दिनों साहित्यिक विधा-रूप में नए-नए प्रयोग किया करते और प्रचलित रूमानी अभिरुचियों का खुला विरोध करते थे। गोपीनाथ मोहंती ने 1936 में एकाग्र भाव से लिखना प्रारंभ किया और दो वर्ष उनके प्रथम उपन्यास 'मन गहिरर चाष' को पूरा करने में लगे।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
बाहरी कड़ियाँ
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