जगनिक

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
यहाँ जाएँ:नेविगेशन, खोजें

जगनिक कालिंजर के चन्देल शासक परमाल[1] (1165-1203 ई.) के आश्रयी भाट[2] थे। राजा परमाल के सामन्त और सहयोगी महोबा के प्रसिद्ध वीर आल्हा-ऊदल को नायक मानकर जगनिक ने 'आल्हाखण्ड' नामक ग्रन्थ की रचना की थी।[3]

  • जगनिक द्वारा रचित 'आल्हाखण्ड' को 'आल्हा' नाम से प्रसिद्धि प्राप्त हुई।
  • जनता ने 'आल्हा' को बहुत पसंद किया और इसे अपनाया। उत्तर भारत में इसका इतना प्रचार हुआ कि धीरे-धीरे मूल काव्य ही संभवत: लुप्त हो गया।
  • विभिन्न बोलियों में इसके भिन्न-भिन्न स्वरूप मिलते हैं। अनुमान है कि मूल ग्रंथ बहुत बड़ा रहा होगा।
  • वर्ष 1865 ई. में फ़र्रुख़ाबाद के कलक्टर सर चार्ल्स इलियट ने 'आल्ह खण्ड' नाम से इसका संग्रह कराया, जिसमें कन्नौजी भाषा की बहुलता थी।
  • 'आल्ह खण्ड' जन समूह की निधि है। रचना काल से लेकर आज तक इसने भारतीयों के हृदय में साहस और त्याग का मंत्र फूँका है।


पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. परमार्दिदेव
  2. कवि
  3. जगनिक/परिचय (हिन्दी) कविता कोश। अभिगमन तिथि: 04 नवम्बर, 2014।

संबंधित लेख